लखनऊ : लखनऊ विश्वविद्यालय व संबद्ध डिग्री कॉलेज में 2007 से बंद चल रहे छात्र संघ चुनाव की बहाली की मांग (Students started indefinite hunger strike) को लेकर छात्र अब अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं. छात्र बीते 17 दिनों से धरना दे रहे थे. बुधवार की सुबह 11:00 बजे से छात्रों ने विश्वविद्यालय परिषद के मुख्य गेट पर स्थित सरस्वती प्रतिमा पर आमरण अनशन शुरू कर दिया. धरना दे रहे छात्रों की बस एक ही मांग है कि विश्वविद्यालय प्रशासन चुनाव कराने की डेट जारी करे. वहीं विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि 'छात्र संघ बहाली के लिए सरकार को निर्णय लेना है. धरने पर बैठे सभी छात्रों की मौजूदा स्थिति के बारे में अवगत करा दिया गया है, वहीं दूसरी तरफ छात्रों के आमरण अनशन पर बैठने से विश्वविद्यालय का माहौल गर्म हो गया है. विश्वविद्यालय प्रशासन भूख हड़ताल पर बैठे छात्रों को समझने की कोशिश कर रहा है, लेकिन छात्र अपनी मांग को लेकर अड़े हुए हैं. ज्ञात हो कि लखनऊ विश्वविद्यालय व संबंद्ध डिग्री कॉलेज में साल 2007 से छात्र संघ चुनाव पर रोक लगी हुई है. विश्वविद्यालय में अंतिम बार छात्र संघ चुनाव साल 2006 में हुआ था.
तीन दिन पहले ही भूख हड़ताल की सूचना दी थी : दो हफ्ते से अधिक समय तक छात्र संघ चुनाव बहाली को लेकर धरना प्रदर्शन करने के बाद जब विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों की बात नहीं मानी तो उन्होंने भूख हड़ताल करने का निर्णय लिया. प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे छात्र नेता विंध्यवासिनी शुक्ला ने बताया कि 'वह 207 दिनों से विश्वविद्यालय व जुड़े डिग्री कॉलेज में छात्र चुनाव कराने को लेकर अभियान चला रहे थे, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने हर बार उनको सिर्फ आश्वासन देकर मामले को दबाने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि इस शैक्षणिक सत्र में जैसे ही नया सेशन शुरू हुआ हमने एक बार फिर से कुलपति को छात्र चुनाव कराने की मांग से जुड़ा ज्ञापन सौंपा, लेकिन उन्होंने इस बार भी केवल आश्वासन देखकर ही पल्ला झाड़ लिया, जिससे मजबूर होकर हमने शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन शुरू किया.
उन्होंने कहा कि अब जब हमारी मांगों पर 17 दिन बाद भी कोई विचार नहीं हुआ तो 27 अक्टूबर को हमने विश्वविद्यालय प्रशासन को भूख हड़ताल शुरू करने की सूचना दी थी और कहा था कि अगर 31 अक्टूबर तक विश्वविद्यालय प्रशासन निर्णय नहीं लेता है तो वह 1 नवंबर से भूख हड़ताल शुरू करेंगे. विंध्यवासिनी शुक्ला ने बताया कि हमारी मांग छात्र चुनाव की है. विश्वविद्यालय द्वारा लिखित में दिया जाए कि विश्वविद्यालय चुनाव करना चाहता है. आंदोलन के बाद भी जब उन्होंने कोई निर्णय लिया तो हमने भूख हड़ताल शुरू की है. हम भूख हड़ताल के लिए तब तक बाध्य होंगे, जब तक विश्वविद्यालय हमारे संवैधानिक अधिकारों को लेकर निर्णय नहीं लेता है.'
2007 से प्रदेश में नहीं हुआ है छात्र संघ चुनाव : 2007 में जब यूपी में बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनी थी, तब मुख्यमंत्री रहीं मायावती ने प्रदेश में छात्र चुनाव को प्रतिबंध लगा दिया था. उस समय सरकार ने छात्र संघ चुनाव में हिंसा का हवाला देते हुए इस पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन काफी लंबे चले संघर्ष के बाद साल 2012 में विश्वविद्यालय प्रशासन ने दोबारा से छात्रसंघ चुनाव कराने की तैयारी की डेट जारी की थी, लेकिन उस समय एक छात्र नेता हेमंत सिंह की उम्र को लेकर हुए विवाद के बाद यह पूरा मामला हाईकोर्ट पहुंच गया था.
इस मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव के मामलों को भी इसी के साथ जोड़ दिया था. इस मामले की सुनवाई करीब 7 साल तक चली, साल 2019 में हाईकोर्ट ने छात्र नेता हेमंत सिंह की याचिका को खारिज करते हुए विश्वविद्यालय व प्रदेश सरकार को लिंगदोह समिति की सिफारिश के अनुसार प्रदेश के विश्वविद्यालय और डिग्री कॉलेज में छात्र संघ चुनाव कराने की सहमति दे दी थी. हाईकोर्ट से लगे स्टेट के हटने के बाद भी साल 2019 से अब तक प्रदेश में छात्र संघ चुनाव को लेकर कोई भी निर्देश शासन व विश्वविद्यालय की तरफ से नहीं जारी किया गया था. सरकार ने शासन चुनाव को ठंडे बस्ते में डाल दिया था.