अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि पैनल की रिपोर्ट देखने के बाद अगर वो कहता है कि मध्यस्थता से हल निकलना मुश्किल है तो कोर्ट 25 जुलाई से मुद्दे पर रोज़ाना सुनवाई करेगा. अयोध्या मामले में कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल को मार्च में आठ हफ्ते का समय दिया था. मगर पैनल के कहने पर 6 मई को समय समाप्त होने से पहले ही 15 अगस्त तक समय को आगे बढ़ा दिया गया. अब 18 जुलाई को इस रिपोर्ट के आने के साथ ही कोर्ट इस बात पर भी विचार करेगा कि मामले पर रोज़ाना सुनवाई होगी या नहीं.
ये है पूरा मामला-
हिंदू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इस मामले को लेकर गठित की गई मध्यस्थता टीम की तरफ से कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है. साथ ही इस मामले को लेकर अपील की कोर्ट इस पर जल्द सुनवाई करे. सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील पर विचार करने का आश्वासन दिया था. अब कोर्ट ने अपनी आधिकारिक साइट पर नोटिस जारी किया है..जिसके मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में विशारद की अर्जी पर विचार किया जाएगा.. पीठ में न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण, एस ए बोबडे, और एस. अब्दुल नजीर भी रहेंगे.
आखिर क्या है विवाद-
1885 के फरवरी माह में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में याचिका दायर की कि अयोध्या में मंदिर बनाने का आदेश दिया जाए. मगर याचिका को खारिज कर दिया गया. 23 दिसंबर 1949 को असली विवाद शुरू हुआ जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में मिली. हिंदुओं ने कहा कि भगवान राम प्रकट हुए हैं. वहीं मुस्लिमों ने रात में मूर्तियां रखने का आरोप लगाया. मामला फिर कोर्ट में पहुंचा मगर सुलझने की बजाय और उलझता गया.
1984 में विश्व हिंदू परिषद ने विवादित ढांचे पर मंदिर बनाने के लिए एक कमेटी गठित की और यू. सी. पांडे की याचिका पर फैजाबाद के तत्कालीन जिला जज के. एम. पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति दी. साथ ही ताला हटाने का भी आदेश दे दिया. जिसको लेकर बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन हुआ. 6 दिसंबर 1992 को देश के कोने कोने से यहां हजारों लोग पहुंचे और इस विवादित ढांचे को धराशायी कर दिया. जिसके बाद 3 अप्रैल 1993 को अयोध्या अधिनियम के अंतर्गत 'निश्चित क्षेत्र का अधिग्रहण' बिल पास हुआ.
1992 को बाबरी विध्वंस की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 30 सितंबर 2010 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसमें विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांट कर एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया गया. मगर 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट इस फैसले पर रोक लगा दी.
कब कब हुई मध्यस्थता-
लंबे वक्त तक कोर्ट से बाहर चली मध्यस्थता की प्रक्रिया पर सभी देश वासियों की नज़र टिकी है इस मामले पर जब ETV Bharat ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी से बात की तो उन्होंने कहा-
"इस पूरी प्रकिया को कॉन्फिडेंशियल रखा गया है और इसके बारे में कुछ ज़्यादा नही कहा जा सकता क्योंकि पूरे पैनल ने हम लोगों से बात करी जिसके बाद दूसरे पक्ष से बात की गई है ऐसे में सिर्फ एक बैठक जॉइंट की गई थी लिहाजा यह नहीं कहा जा सकता कि हमारी बातों पर दूसरे पक्ष ने क्या राय बनाई है"
- 1986 को कांची काम कोटि के शंकराचार्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष अली मियां नदवी के बीच मध्यक्षता हुई मगर ये निफल हो गई.
- 1990: पीएम चंद्रशेखर ने दोनों समुदायों के बीच मध्यक्षता करने की कोशिश की.
- जून 2002: पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में अयोध्या प्रकोष्ठ स्थापित कर हिंदू और मुस्लिम नेताओं के साथ बातचीत करने के लिए पार्टी के वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को नियुक्त किया.
- 2010 में निर्मोही अखाड़ा और एबीवीपी ने हाशिम अंसारी के साथ बातचीत शुरू की.
- अप्रैल 2015 में स्वामी चक्रपाणि के बाद फिर से वार्ता शुरू हुई, अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष ने मोहम्मद हाशिम अंसारी के प्रतिनिधित्व वाले मुस्लिम लिटिगेंट्स से मुलाकात की.
- 16 नवंबर 2017 को आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर इस विवाद को सुलझाने की पहल कर आगे आए और कइ पक्षों से मुलाकात भी की.
- कोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश एफ एम इब्राहिम कलीफुल्ला के नेतृत्व में मध्यस्थों के एक पैनल को नियुक्त किया, जिसमें आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के साथ ही श्रीराम पंचू को भी इस पैनल में शामिल किया गया.
सुप्रीम कोर्ट अपना रुख साफ करते हुए पहले ही कह चुका है कि अगर मध्यस्थता समिति भूमि विवाद को हल करने में असमर्थ रहती है तो कोर्ट आने वाली 25 जुलाई से इस पूरे मामले पर रोज़ाना सुनवाई करेगा.