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लखनऊ: आराम करने की उम्र में कुली मुजीबुल्ला कर रहे मजदूरों की सेवा

उम्र के जिस पड़ाव में लोग अपने घरों में आराम से रहना चाहते हैं, उस उम्र में लोगों की सेवा भाव में 80 साल के कुली मुजीबुल्लाह मिसाल पेश कर रहे हैं. देखिए खास रिपोर्ट...

मानवता की मिसाल.
मानवता की मिसाल.
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Published : Jun 3, 2020, 2:57 PM IST

लखनऊ: कोरोना काल में जब लोग घर से बाहर निकलने से भी डर रहे हैं, उस समय 80 साल के बुजुर्ग कुली मुजीबुल्लाह अपने घर से पैदल ही 7 किलोमीटर चलकर चारबाग रेलवे स्टेशन आते हैं. जब रेलवे स्टेशन पर आने वाली ट्रेनों से यात्री उतरते हैं तो वे हाथों-हाथ उनका सामान अपने सिर पर रख लेते हैं. ये बुजुर्ग कुली सामान ढोने के एवज में किसी भी यात्री से पैसा भी नहीं लेते हैं. कहते हैं कि अल्लाह और राम का दिया हुआ सब कुछ है. सभी की सेवा करनी है. उनकी इस मानवता के सभी कायल हो गए हैं.

मानवता की मिसाल.
1947 में जब देश आजाद हुआ तो उसी साल मुजीबुल्लाह का लखनऊ में जन्म हुआ. आज भी 80 साल से ऊपर के हो गए हैं. 50 साल से मजीबुल्लाह कुली का काम कर रहे हैं. चारबाग रेलवे स्टेशन पर आने-जाने वाले यात्रियों का सामान ढोते हैं, लेकिन कोरोना काल में ट्रेनें बंद हैं. ऐसे में श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से जो मजदूर आ रहे हैं, उनकी मुफ्त में ही सेवा करने में लग गए हैं. उनका सूफियाना अंदाज भी लोगों को अपनी तरफ खूब आकर्षित कर रहा है.

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मस्तमौला रहने वाले मुजीबुल्लाह अल्लाह को भी मानते हैं और राम को भी. रहीम और कबीर के भक्त हैं. शेरो-शायरी भी करते हैं और सभी का दिल भी बहलाते हैं. वह कहते हैं कि 'सारे दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर, जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फकीर'. कहते हैं कि वह 50 साल से कुलीगिरी कर रहे हैं. जब सब कुछ सही था तो ट्रेनों में सब चलते थे, तब उन्हीं लोगों से पैसे मिलते थे. अच्छी आजीविका होती थी. अब जब महामारी कोरोना का वक्त आ गया. ऐसे में लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं. लोग परेशान हैं. बच्चे यहां उतरते हैं उनके पास सामान ज्यादा होता है. कोई बुजुर्ग हैं उनको भी दिक्कत होती है. उनका सामान ट्रॉली पर लादकर बाहर तक पहुंचाते हैं.

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मुजीबुल्लाह ने कहा कि हमेशा से सभी की सेवा करता हूं और करता रहूंगा. मुजीबुल्लाह कहते हैं कि जब तक मैं यहां नहीं आ पाया मुझे बहुत कष्ट होता था. जब मैं यहां आ जाता हूं तो मुझमें एक नई जवानी आ जाती है. हम लोगों के समय अपनी उम्र में मैंने सूखा भी देखा था. अब इस समय हर चीज मुहैया है, लेकिन एक कोरोना आया है. इससे त्राहि-त्राहि मची है. इस समय मेरे दिल में और ज्यादा सेवा भाव जाग गया है. मुफ्त में सेवा कर रहे मुजीबुल्लाह से जब पूछा गया कि घर का खर्चा कैसे चलता है. इस पर उन्होंने कहा कि सब कुछ मिल रहा है. खर्चा चल रहा है. यहां पर दो-तीन बार 1000 मिले, पांच दफा राशन भी मिला है.

लखनऊ: कोरोना काल में जब लोग घर से बाहर निकलने से भी डर रहे हैं, उस समय 80 साल के बुजुर्ग कुली मुजीबुल्लाह अपने घर से पैदल ही 7 किलोमीटर चलकर चारबाग रेलवे स्टेशन आते हैं. जब रेलवे स्टेशन पर आने वाली ट्रेनों से यात्री उतरते हैं तो वे हाथों-हाथ उनका सामान अपने सिर पर रख लेते हैं. ये बुजुर्ग कुली सामान ढोने के एवज में किसी भी यात्री से पैसा भी नहीं लेते हैं. कहते हैं कि अल्लाह और राम का दिया हुआ सब कुछ है. सभी की सेवा करनी है. उनकी इस मानवता के सभी कायल हो गए हैं.

मानवता की मिसाल.
1947 में जब देश आजाद हुआ तो उसी साल मुजीबुल्लाह का लखनऊ में जन्म हुआ. आज भी 80 साल से ऊपर के हो गए हैं. 50 साल से मजीबुल्लाह कुली का काम कर रहे हैं. चारबाग रेलवे स्टेशन पर आने-जाने वाले यात्रियों का सामान ढोते हैं, लेकिन कोरोना काल में ट्रेनें बंद हैं. ऐसे में श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से जो मजदूर आ रहे हैं, उनकी मुफ्त में ही सेवा करने में लग गए हैं. उनका सूफियाना अंदाज भी लोगों को अपनी तरफ खूब आकर्षित कर रहा है.

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मस्तमौला रहने वाले मुजीबुल्लाह अल्लाह को भी मानते हैं और राम को भी. रहीम और कबीर के भक्त हैं. शेरो-शायरी भी करते हैं और सभी का दिल भी बहलाते हैं. वह कहते हैं कि 'सारे दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर, जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फकीर'. कहते हैं कि वह 50 साल से कुलीगिरी कर रहे हैं. जब सब कुछ सही था तो ट्रेनों में सब चलते थे, तब उन्हीं लोगों से पैसे मिलते थे. अच्छी आजीविका होती थी. अब जब महामारी कोरोना का वक्त आ गया. ऐसे में लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं. लोग परेशान हैं. बच्चे यहां उतरते हैं उनके पास सामान ज्यादा होता है. कोई बुजुर्ग हैं उनको भी दिक्कत होती है. उनका सामान ट्रॉली पर लादकर बाहर तक पहुंचाते हैं.

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मुजीबुल्लाह ने कहा कि हमेशा से सभी की सेवा करता हूं और करता रहूंगा. मुजीबुल्लाह कहते हैं कि जब तक मैं यहां नहीं आ पाया मुझे बहुत कष्ट होता था. जब मैं यहां आ जाता हूं तो मुझमें एक नई जवानी आ जाती है. हम लोगों के समय अपनी उम्र में मैंने सूखा भी देखा था. अब इस समय हर चीज मुहैया है, लेकिन एक कोरोना आया है. इससे त्राहि-त्राहि मची है. इस समय मेरे दिल में और ज्यादा सेवा भाव जाग गया है. मुफ्त में सेवा कर रहे मुजीबुल्लाह से जब पूछा गया कि घर का खर्चा कैसे चलता है. इस पर उन्होंने कहा कि सब कुछ मिल रहा है. खर्चा चल रहा है. यहां पर दो-तीन बार 1000 मिले, पांच दफा राशन भी मिला है.

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