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हादसों से शहर में हर ओर थम रही सांसों की डोर

सड़क दुर्घटनाओं के बढ़ते आंकड़े चिंता का सबब बनते जा रहे हैं. ETV भारत ने सड़क दुर्घटनाओं में पैदल लोगों की बढ़ती मृत्यु दर को नियंत्रित करने के लिए किस तरह के उपाय होने चाहिए, इस पर जिम्मेदारों से बात की. देखें ये खास रिपोर्ट-

नहीं थम रहीं सड़क दुर्घटनाएं.
नहीं थम रहीं सड़क दुर्घटनाएं.
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Published : Feb 15, 2021, 9:45 PM IST

लखनऊ: सड़क दुर्घटनाओं के बढ़ते आंकड़े चिंता का सबब बनते जा रहे हैं. दो पहिया और चार पहिया वाहनों से तो सड़क दुर्घटनाओं में लोग असमय काल के गाल में समा ही रहे थे, अब पैदल लोगों की जानमाल का नुकसान भी होने लगा है. सड़क हादसों में इस तरह की मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है. आलम यह है कि साल 2019-20 के बीच उत्तर प्रदेश में हजारों पैदल लोग सड़क दुर्घटना में अपनी जान से हाथ धो चुके हैं.

जिम्मेदार मानते हैं कि यातायात नियमों का पालन न करना ही मौत का सबसे बड़ा कारण बनता है. पैदल लोगों की मौत के पीछे सबसे बड़ी वजह ओवर स्पीडिंग के साथ ही ड्रंकन ड्राइविंग होती है. लखनऊ में यातायात विभाग सड़क हादसों में पैदल लोगों की जान बचा सके, इसके लिए विभिन्न तरह की योजनाएं बनाने में जुट गया है. इनमें रोड बम्प्स और पेलिकन साइन शामिल हैं. ETV भारत ने सड़क दुर्घटनाओं में पैदल लोगों की बढ़ती मृत्यु दर को नियंत्रित करने के लिए किस तरह के उपाय होने चाहिए, इस पर जिम्मेदारों से बात की.

नहीं थम रहीं सड़क दुर्घटनाएं.

ब्राजीलिया मॉडल पर हो रहा काम

राजधानी समेत उत्तर प्रदेश में ब्राजीलिया मॉडल पर तेजी से काम हो रहा है. इस मॉडल के तहत साल 2050 तक यातायात व्यवस्थाओं में सुधार कर दुर्घटनाओं के आंकड़े को आधा करना है. सहायक अपर पुलिस आयुक्त यातायात (एडीसीपी ट्रैफिक) सुरेश चंद रावत बताते हैं कि 2015 में ब्राजील में सड़क हादसों में कमी लाने के लिए एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित हुआ था. सदस्य राष्ट्र के रूप में भारत भी शामिल हुआ था. उसी में हादसों पर चिंता व्यक्त करते हुए तमाम निष्कर्ष निकाले गए. सरकार ने नियमावली में बदलाव कर कड़े नियम कानून लागू किए हैं, जिनको इंप्लीमेंट कराया जा रहा है. वर्ष 2050 तक दुर्घटनाओं के आंकड़े को 50 फीसद तक लाने पर पूरा जोर दिया जा रहा है.

सड़क पर मुस्तैद है ट्रैफिक पुलिस कर्मी.
सड़क पर मुस्तैद है ट्रैफिक पुलिस कर्मी.
बना रहे रोड बंप, लगा रहे पेलिकन साइन

एडीसीपी ट्रैफिक सुरेश चंद रावत बताते हैं कि जब रोड समतल होती है, तो दो पहिया और चार पहिया वाहन स्पीड से फर्राटा भरते हुए निकलते हैं. इस दौरान अगर कोई पैदल यात्री अचानक सड़क पर आ जाता है, तो कंट्रोल करना मुश्किल होता है. इससे दुर्घटना में जान चली ही जाती है. पैदल यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर यातायात विभाग शहर के 25 ऐसे स्थान जहां पर ज्यादा एक्सीडेंट होते हैं, वहां रोड बंप बनाने की तैयारी कर रहा है. इसके अलावा ट्रैफिक पार करते समय यात्रियों की सुरक्षा के लिए कई चौराहों पर पेलिकन साइन लगाने की भी योजना है. इस बात पर भी विचार चल रहा है कि 10 से 15 सेकंड का एक स्लॉट सिर्फ पैदल यात्रियों को ही रोड क्रॉस करते समय दिया जाए, जिससे इन लोगों को सुरक्षित सड़क पार कराया जा सके और जान बचाई जा सके.

सड़क पार करती महिलाएं.
सड़क पार करती महिलाएं.
क्या है रोड बंप

सड़क के बीच में एक उर्ध्वाधर सिरा बनाया जाता है, जिससे वाहन की स्पीड को कंट्रोल किया जा सके. रोड बंप का फायदा यह होता है कि दो पहिया या चार पहिया वाहन चालक इसके पास आते ही स्पीड कम करने को मजबूर हो जाता है. इस दौरान अगर सामने से कोई पैदल यात्री निकल रहा है तो कम स्पीड में अगर उसे टक्कर लगेगी भी तो यह सिर्फ पैरों तक ही लगेगी. ऐसे में जब सिर पर चोट नहीं लगेगी तो मौत के चांस काफी कम हो जाएंगे.

33 फीसदी मौत का आंकड़ा

साल दर साल सड़क हादसों के जो आंकड़े बढ़ रहे हैं, उनमें सबसे ज्यादा मौतों का आंकड़ा दो पहिया वाहन सवारों का ही होता है. दूसरे नंबर पर पैदल यात्रियों का भी ग्राफ बढ़ रहा है, जो सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं. जानकारों के मुताबिक, सड़क दुर्घटनाओं का जो पूरा आंकड़ा सामने आता है, उसमें तकरीबन 33 प्रतिशत आंकड़ा पैदल और साइकिल सवारों का होता है, ये दुर्घटना में दम तोड़ देते हैं. एडीसीपी ट्रैफिक सुरेश चंद रावत ने बताया कि 2015 से जो सड़क हादसों के आंकड़े थे, वे अब कम होने लगे हैं. 2015 में जहां लखनऊ में 580 लोगों की मौत होती थी, वहीं पिछले साल यह आंकड़ा 346 से 350 के बीच रह गया. इतना ही नहीं, लखनऊ में साफ तौर पर इसका असर देखा जा रहा है. पैदल चलने वालों का आंकड़ा 93 फीसदी रहा.

शहर के ये इलाके खतरनाक

लखनऊ में सड़क दुर्घटना वाले चौराहों की बात की जाए तो इनमें छठा मील चौराहा, आईआईएम रोड, बनी मोड़, दुबग्गा बाईपास, कमता, शहीद पथ, उतरेठिया में ज्यादा हादसे होते हैं. यहां पर विशेष सावधानी बरतने के निर्देश यातायात पुलिस की तरफ से दिए जाते हैं.

लखनऊ में सड़क हादसों पर एक नजर

15 नवंबर 2017 से 31 जनवरी 2018 तक 278 सड़क हादसे हुए. इनमें 154 लोग घायल हुए और 129 लोगों की मौत हो गई. 15 नवंबर 2018 से 31 जनवरी 2019 तक 420 हादसे हुए. इसमें 241 लोग घायल हुए और 132 लोगों की मौत हो गई. 15 नवंबर 2019 से 31 जनवरी 2020 तक कुल 405 हादसे हुए. इसमें 235 लोग घायल हुए और 125 लोगों की जान चली गई.

साल दर साल लखनऊ में हादसों का विवरण

सालसंख्यामृतकघायल योग
20161519 652973 1625
20171539642 917 1559
21081539 58010051585
2109 1683 5739221495
2020 966 346571 917

दुर्घटनाओं के ये हैं कारण

  • अधिक गति से वाहन चलाना
  • अनावश्यक गाड़ी को सड़क पर रोकना
  • सड़क पर रोड मार्किंग में होना
  • थकान आने पर भी गाड़ी चलाना
  • बार-बार ओवरटेक करने की कोशिश करना
  • गाड़ी की हेडलाइट ठीक न होना
  • नशे में धुत होकर वाहन चलाना
  • मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हुए वाहन चलाना
  • सीट बेल्ट का इस्तेमाल न करना
  • दो पहिया वाहन पर हेलमेट का प्रयोग न करना.

गलती दोनों पक्षों की

सड़क पार करते समय अब पैदल और साइकिल सवार लोगों के सांसों की डोर भी थमने लगी है. हाई-वे पर तेजी से आते वाहन इस तरह के हादसों को अंजाम दे रहे हैं. हालांकि, इसमें ओवर स्पीडिंग का तो पूरा दोष है ही, कहीं न कहीं सड़क पार करते समय पैदल या फिर साइकिल सवारों की भी लापरवाही सामने आ रही है. दोनों तरफ देखकर सड़क क्रॉस न करने के चलते इस तरह की दुर्घटनाओं में तेजी से इजाफा हो रहा है.

पैदल और साइकिल सवारों को दुर्घटना से बचाया जा सके

सरकार यातायात नियमों का पालन कराने के लिए जागरूकता अभियान चला रही है. इसके अलावा यातायात विभाग भी शहर के ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार के लिए प्रयासरत है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की बात की जाए तो यहां पर कई चौराहों पर बड़ी संख्या में ट्रैफिक पुलिस तैनात रहती है. इसके अलावा ट्रैफिक सिग्नल प्रणाली को भी दुरुस्त किया गया है. साथ ही अब हर चौराहे को ट्रैफिक सिग्नल चौराहा बना दिया गया है, जिससे शहर में वाहनों की स्पीड को नियंत्रित रखा जा सके. स्पीड नियंत्रित होगी तो निश्चित तौर पर हादसों पर भी लगाम जरूर लगेगी.

हाई-वे पर हाई स्पीड हादसों की वजह

2019-20 के मौत के जो आंकड़े सामने आए हैं, उनमें प्रदेश भर में सड़क हादसों की सबसे बड़ी वजह ओवरस्पीडिंग रही है. 38 फीसदी हादसे हाई-वे पर और 30 फीसदी शहर के अंदर हुए हैं. यहां पर वाहनों की रफ्तार 90 किलोमीटर से 110 किलोमीटर प्रति घंटे आंकी गई. तेज रफ्तार की वजह से 8398 लोगों ने अपनी जान गंवा दी. 3000 से ज्यादा लोग घायल होकर दिव्यांग हो गए.

इन आंकड़ों पर भी ध्यान जरूरी

शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले 10 फीसदी हादसों में 2224 लोगों की मौत हुई है. गलत दिशा में गाड़ी चलाने वाले 11 फीसदी वाहन चालकों में 2517 की मौत, मोबाइल फोन पर बात करते हुए 12 फीसदी हादसों में 2699 लोगों की मौत हो गई. वहीं, 2019 में उत्तर प्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं के कारण 4676 पैदल यात्रियों और गैर मोटर चालित वाहन उपयोगकर्ताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी. लखनऊ में 2019 में यह संख्या 93 रही है.

शहर में बने साइकिल ट्रैक

उत्तर प्रदेश में सपा के शासनकाल में शहर के विभिन्न इलाकों में साइकिल ट्रैक बनवाए गए थे. इनमें हजरतगंज इलाके में भी साइकिल ट्रैक बने हुए हैं. इसी से साइकिल सवार और पैदल यात्री गुजरें तो वह अपनी जान जोखिम में नहीं डालेंगे. हालांकि, इन साइकिल ट्रैक पर भी अतिक्रमण के चलते लोग नहीं गुजर पा रहे हैं.

ऐसे रुक सकती हैं पैदल यात्रियों की मौतें

पैदल यात्रियों और गैर मोटर चालित सड़क उपयोगकर्ताओं के सार्वजनिक स्थान पर गतिविधियों के विनियमन में साइकिल ट्रैक और फुटपाथ, गैर मोटर चालित वाहन लेन जैसे विशेष क्षेत्रों का निर्माण कर दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है.

अब सड़क हादसों में कमी आ रही है. जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक किया जा रहा है. साथ ही यातायात विभाग रोड बम्प्स बनाकर, पेलिकन साइन लगाकर और ट्रैफिक रूल्स का पालन कराकर पैदल यात्रियों के साथ ही अन्य लोगों की भी जान बचाने के लिए प्रयासरत है.

-सुरेश चंद्र रावत, एडीसीपी ट्रैफिक

लखनऊ में कुल 51 ब्लैक स्पॉट है, जहां पर दुर्घटना ज्यादा होती हैं. उसकी रोकथाम के लिए साइनेज लगवा रहे हैं. दुर्घटना बाहुल्य क्षेत्र लिखवा रहे हैं. साथ ही रोड की डिजाइनिंग की. जहां पर कमी आ रही है उसका सुदृढ़ीकरण कराया जा रहा है.

-संजय तिवारी, एआरटीओ (प्रवर्तन)

हमारे देश में प्रतिवर्ष पांच लाख सड़क दुर्घटनाएं होती है, जिसमें लगभग डेढ़ लाख लोगों की मौत हो जाती है. आंकड़ों पर नजर डालें तो दो पहिया वाहन चालक साइकिल और पैदल चलने वालों का प्रतिशत लगभग 50 प्रतिशत के आसपास हैं. दो पहिया वाहन चालकों को तो कानूनी तौर पर चालान करके रोक सकते हैं, लेकिन जो साइकिल चलाते हैं, पैदल चलते हैं, उनके ऊपर कोई जुर्माना या कानून हम नहीं लगा सकते. इसमें संबंधित विभागों को आगे आकर लोगों को जागरूक करना चाहिए. सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूक करें, तभी सड़क हादसों पर रोक लगा पाएंगे. इसका एक अच्छा माध्यम हो सकता है, जो लोग कॉलोनी और सोसाइटी में रहते हैं वहां पर जागरूकता कैंप लगाया जाए. स्कूल-कॉलेजों में प्रोग्राम आयोजित कर लोगों को जागरूक कर सकते हैं.

-सैयद एहतिशाम, रोड सेफ्टी एक्सपर्ट

लखनऊ: सड़क दुर्घटनाओं के बढ़ते आंकड़े चिंता का सबब बनते जा रहे हैं. दो पहिया और चार पहिया वाहनों से तो सड़क दुर्घटनाओं में लोग असमय काल के गाल में समा ही रहे थे, अब पैदल लोगों की जानमाल का नुकसान भी होने लगा है. सड़क हादसों में इस तरह की मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है. आलम यह है कि साल 2019-20 के बीच उत्तर प्रदेश में हजारों पैदल लोग सड़क दुर्घटना में अपनी जान से हाथ धो चुके हैं.

जिम्मेदार मानते हैं कि यातायात नियमों का पालन न करना ही मौत का सबसे बड़ा कारण बनता है. पैदल लोगों की मौत के पीछे सबसे बड़ी वजह ओवर स्पीडिंग के साथ ही ड्रंकन ड्राइविंग होती है. लखनऊ में यातायात विभाग सड़क हादसों में पैदल लोगों की जान बचा सके, इसके लिए विभिन्न तरह की योजनाएं बनाने में जुट गया है. इनमें रोड बम्प्स और पेलिकन साइन शामिल हैं. ETV भारत ने सड़क दुर्घटनाओं में पैदल लोगों की बढ़ती मृत्यु दर को नियंत्रित करने के लिए किस तरह के उपाय होने चाहिए, इस पर जिम्मेदारों से बात की.

नहीं थम रहीं सड़क दुर्घटनाएं.

ब्राजीलिया मॉडल पर हो रहा काम

राजधानी समेत उत्तर प्रदेश में ब्राजीलिया मॉडल पर तेजी से काम हो रहा है. इस मॉडल के तहत साल 2050 तक यातायात व्यवस्थाओं में सुधार कर दुर्घटनाओं के आंकड़े को आधा करना है. सहायक अपर पुलिस आयुक्त यातायात (एडीसीपी ट्रैफिक) सुरेश चंद रावत बताते हैं कि 2015 में ब्राजील में सड़क हादसों में कमी लाने के लिए एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित हुआ था. सदस्य राष्ट्र के रूप में भारत भी शामिल हुआ था. उसी में हादसों पर चिंता व्यक्त करते हुए तमाम निष्कर्ष निकाले गए. सरकार ने नियमावली में बदलाव कर कड़े नियम कानून लागू किए हैं, जिनको इंप्लीमेंट कराया जा रहा है. वर्ष 2050 तक दुर्घटनाओं के आंकड़े को 50 फीसद तक लाने पर पूरा जोर दिया जा रहा है.

सड़क पर मुस्तैद है ट्रैफिक पुलिस कर्मी.
सड़क पर मुस्तैद है ट्रैफिक पुलिस कर्मी.
बना रहे रोड बंप, लगा रहे पेलिकन साइन

एडीसीपी ट्रैफिक सुरेश चंद रावत बताते हैं कि जब रोड समतल होती है, तो दो पहिया और चार पहिया वाहन स्पीड से फर्राटा भरते हुए निकलते हैं. इस दौरान अगर कोई पैदल यात्री अचानक सड़क पर आ जाता है, तो कंट्रोल करना मुश्किल होता है. इससे दुर्घटना में जान चली ही जाती है. पैदल यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर यातायात विभाग शहर के 25 ऐसे स्थान जहां पर ज्यादा एक्सीडेंट होते हैं, वहां रोड बंप बनाने की तैयारी कर रहा है. इसके अलावा ट्रैफिक पार करते समय यात्रियों की सुरक्षा के लिए कई चौराहों पर पेलिकन साइन लगाने की भी योजना है. इस बात पर भी विचार चल रहा है कि 10 से 15 सेकंड का एक स्लॉट सिर्फ पैदल यात्रियों को ही रोड क्रॉस करते समय दिया जाए, जिससे इन लोगों को सुरक्षित सड़क पार कराया जा सके और जान बचाई जा सके.

सड़क पार करती महिलाएं.
सड़क पार करती महिलाएं.
क्या है रोड बंप

सड़क के बीच में एक उर्ध्वाधर सिरा बनाया जाता है, जिससे वाहन की स्पीड को कंट्रोल किया जा सके. रोड बंप का फायदा यह होता है कि दो पहिया या चार पहिया वाहन चालक इसके पास आते ही स्पीड कम करने को मजबूर हो जाता है. इस दौरान अगर सामने से कोई पैदल यात्री निकल रहा है तो कम स्पीड में अगर उसे टक्कर लगेगी भी तो यह सिर्फ पैरों तक ही लगेगी. ऐसे में जब सिर पर चोट नहीं लगेगी तो मौत के चांस काफी कम हो जाएंगे.

33 फीसदी मौत का आंकड़ा

साल दर साल सड़क हादसों के जो आंकड़े बढ़ रहे हैं, उनमें सबसे ज्यादा मौतों का आंकड़ा दो पहिया वाहन सवारों का ही होता है. दूसरे नंबर पर पैदल यात्रियों का भी ग्राफ बढ़ रहा है, जो सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं. जानकारों के मुताबिक, सड़क दुर्घटनाओं का जो पूरा आंकड़ा सामने आता है, उसमें तकरीबन 33 प्रतिशत आंकड़ा पैदल और साइकिल सवारों का होता है, ये दुर्घटना में दम तोड़ देते हैं. एडीसीपी ट्रैफिक सुरेश चंद रावत ने बताया कि 2015 से जो सड़क हादसों के आंकड़े थे, वे अब कम होने लगे हैं. 2015 में जहां लखनऊ में 580 लोगों की मौत होती थी, वहीं पिछले साल यह आंकड़ा 346 से 350 के बीच रह गया. इतना ही नहीं, लखनऊ में साफ तौर पर इसका असर देखा जा रहा है. पैदल चलने वालों का आंकड़ा 93 फीसदी रहा.

शहर के ये इलाके खतरनाक

लखनऊ में सड़क दुर्घटना वाले चौराहों की बात की जाए तो इनमें छठा मील चौराहा, आईआईएम रोड, बनी मोड़, दुबग्गा बाईपास, कमता, शहीद पथ, उतरेठिया में ज्यादा हादसे होते हैं. यहां पर विशेष सावधानी बरतने के निर्देश यातायात पुलिस की तरफ से दिए जाते हैं.

लखनऊ में सड़क हादसों पर एक नजर

15 नवंबर 2017 से 31 जनवरी 2018 तक 278 सड़क हादसे हुए. इनमें 154 लोग घायल हुए और 129 लोगों की मौत हो गई. 15 नवंबर 2018 से 31 जनवरी 2019 तक 420 हादसे हुए. इसमें 241 लोग घायल हुए और 132 लोगों की मौत हो गई. 15 नवंबर 2019 से 31 जनवरी 2020 तक कुल 405 हादसे हुए. इसमें 235 लोग घायल हुए और 125 लोगों की जान चली गई.

साल दर साल लखनऊ में हादसों का विवरण

सालसंख्यामृतकघायल योग
20161519 652973 1625
20171539642 917 1559
21081539 58010051585
2109 1683 5739221495
2020 966 346571 917

दुर्घटनाओं के ये हैं कारण

  • अधिक गति से वाहन चलाना
  • अनावश्यक गाड़ी को सड़क पर रोकना
  • सड़क पर रोड मार्किंग में होना
  • थकान आने पर भी गाड़ी चलाना
  • बार-बार ओवरटेक करने की कोशिश करना
  • गाड़ी की हेडलाइट ठीक न होना
  • नशे में धुत होकर वाहन चलाना
  • मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हुए वाहन चलाना
  • सीट बेल्ट का इस्तेमाल न करना
  • दो पहिया वाहन पर हेलमेट का प्रयोग न करना.

गलती दोनों पक्षों की

सड़क पार करते समय अब पैदल और साइकिल सवार लोगों के सांसों की डोर भी थमने लगी है. हाई-वे पर तेजी से आते वाहन इस तरह के हादसों को अंजाम दे रहे हैं. हालांकि, इसमें ओवर स्पीडिंग का तो पूरा दोष है ही, कहीं न कहीं सड़क पार करते समय पैदल या फिर साइकिल सवारों की भी लापरवाही सामने आ रही है. दोनों तरफ देखकर सड़क क्रॉस न करने के चलते इस तरह की दुर्घटनाओं में तेजी से इजाफा हो रहा है.

पैदल और साइकिल सवारों को दुर्घटना से बचाया जा सके

सरकार यातायात नियमों का पालन कराने के लिए जागरूकता अभियान चला रही है. इसके अलावा यातायात विभाग भी शहर के ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार के लिए प्रयासरत है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की बात की जाए तो यहां पर कई चौराहों पर बड़ी संख्या में ट्रैफिक पुलिस तैनात रहती है. इसके अलावा ट्रैफिक सिग्नल प्रणाली को भी दुरुस्त किया गया है. साथ ही अब हर चौराहे को ट्रैफिक सिग्नल चौराहा बना दिया गया है, जिससे शहर में वाहनों की स्पीड को नियंत्रित रखा जा सके. स्पीड नियंत्रित होगी तो निश्चित तौर पर हादसों पर भी लगाम जरूर लगेगी.

हाई-वे पर हाई स्पीड हादसों की वजह

2019-20 के मौत के जो आंकड़े सामने आए हैं, उनमें प्रदेश भर में सड़क हादसों की सबसे बड़ी वजह ओवरस्पीडिंग रही है. 38 फीसदी हादसे हाई-वे पर और 30 फीसदी शहर के अंदर हुए हैं. यहां पर वाहनों की रफ्तार 90 किलोमीटर से 110 किलोमीटर प्रति घंटे आंकी गई. तेज रफ्तार की वजह से 8398 लोगों ने अपनी जान गंवा दी. 3000 से ज्यादा लोग घायल होकर दिव्यांग हो गए.

इन आंकड़ों पर भी ध्यान जरूरी

शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले 10 फीसदी हादसों में 2224 लोगों की मौत हुई है. गलत दिशा में गाड़ी चलाने वाले 11 फीसदी वाहन चालकों में 2517 की मौत, मोबाइल फोन पर बात करते हुए 12 फीसदी हादसों में 2699 लोगों की मौत हो गई. वहीं, 2019 में उत्तर प्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं के कारण 4676 पैदल यात्रियों और गैर मोटर चालित वाहन उपयोगकर्ताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी. लखनऊ में 2019 में यह संख्या 93 रही है.

शहर में बने साइकिल ट्रैक

उत्तर प्रदेश में सपा के शासनकाल में शहर के विभिन्न इलाकों में साइकिल ट्रैक बनवाए गए थे. इनमें हजरतगंज इलाके में भी साइकिल ट्रैक बने हुए हैं. इसी से साइकिल सवार और पैदल यात्री गुजरें तो वह अपनी जान जोखिम में नहीं डालेंगे. हालांकि, इन साइकिल ट्रैक पर भी अतिक्रमण के चलते लोग नहीं गुजर पा रहे हैं.

ऐसे रुक सकती हैं पैदल यात्रियों की मौतें

पैदल यात्रियों और गैर मोटर चालित सड़क उपयोगकर्ताओं के सार्वजनिक स्थान पर गतिविधियों के विनियमन में साइकिल ट्रैक और फुटपाथ, गैर मोटर चालित वाहन लेन जैसे विशेष क्षेत्रों का निर्माण कर दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है.

अब सड़क हादसों में कमी आ रही है. जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक किया जा रहा है. साथ ही यातायात विभाग रोड बम्प्स बनाकर, पेलिकन साइन लगाकर और ट्रैफिक रूल्स का पालन कराकर पैदल यात्रियों के साथ ही अन्य लोगों की भी जान बचाने के लिए प्रयासरत है.

-सुरेश चंद्र रावत, एडीसीपी ट्रैफिक

लखनऊ में कुल 51 ब्लैक स्पॉट है, जहां पर दुर्घटना ज्यादा होती हैं. उसकी रोकथाम के लिए साइनेज लगवा रहे हैं. दुर्घटना बाहुल्य क्षेत्र लिखवा रहे हैं. साथ ही रोड की डिजाइनिंग की. जहां पर कमी आ रही है उसका सुदृढ़ीकरण कराया जा रहा है.

-संजय तिवारी, एआरटीओ (प्रवर्तन)

हमारे देश में प्रतिवर्ष पांच लाख सड़क दुर्घटनाएं होती है, जिसमें लगभग डेढ़ लाख लोगों की मौत हो जाती है. आंकड़ों पर नजर डालें तो दो पहिया वाहन चालक साइकिल और पैदल चलने वालों का प्रतिशत लगभग 50 प्रतिशत के आसपास हैं. दो पहिया वाहन चालकों को तो कानूनी तौर पर चालान करके रोक सकते हैं, लेकिन जो साइकिल चलाते हैं, पैदल चलते हैं, उनके ऊपर कोई जुर्माना या कानून हम नहीं लगा सकते. इसमें संबंधित विभागों को आगे आकर लोगों को जागरूक करना चाहिए. सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूक करें, तभी सड़क हादसों पर रोक लगा पाएंगे. इसका एक अच्छा माध्यम हो सकता है, जो लोग कॉलोनी और सोसाइटी में रहते हैं वहां पर जागरूकता कैंप लगाया जाए. स्कूल-कॉलेजों में प्रोग्राम आयोजित कर लोगों को जागरूक कर सकते हैं.

-सैयद एहतिशाम, रोड सेफ्टी एक्सपर्ट

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