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अखिलेश यादव के सभी गठजोड़ हुए फेल, बड़े से लेकर छोटे दलों के साथ गठबंधन भी नहीं आया काम

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 में जीत दर्ज कर सत्ता की सियासी कुर्सी पर काबिज होने को लेकर समाजवादी पार्टी ने खूब मेहनत की. तमाम तरह की रणनीति बनाई और छोटे दलों के साथ सियासी गठजोड़ भी किया. लेकिन सारी रणनीति फेल साबित हुई.

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अखिलेश यादव के सभी गठजोड़ हुए फेल
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Published : Mar 10, 2022, 8:08 PM IST

लखनऊः एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव की रणनीति हर चुनाव में फेल साबित होती जा रही है. उन्होंने जीत के लिए पहले बड़ी पार्टियों से गठजोड़ किया. फिर इसके बाद छोटे सियासी दलों के साथ गठजोड़ किया. लेकिन उनके सपने चकनाचूर हो गये. हालांकि यूपी में विधानसभा चुनाव 2022 में जीत दर्ज करने के लिए सत्ता की सियासी कुर्सी पर काबिज होने को लेकर समाजवादी पार्टी ने खूब मेहनत की. लेकिन उनकी रणनीति फेल साबित हुई. सत्ता के सियासी कुर्सी पर अखिलेश यादव काबिज नहीं हो पाये.

अब तक आए रुझानों से स्पष्ट हो चुका है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी ऐतिहासिक जीत दर्ज कर रही है और पूर्ण बहुमत से काफी आगे निकलते हुए भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी कर रही है. उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी दोबारा सरकार बनाने जा रही है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होंगे. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की छोटे दलों के साथ सियासी गठजोड़ की रणनीति पूरी तरह से फ्लॉप साबित हुई.

अखिलेश यादव के सभी गठजोड़ हुए फेल

बात 2017 के विधानसभा चुनाव से शुरू करें तो 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया. लेकिन उनकी ये कोशिश भी सफल नहीं हुई और समाजवादी पार्टी कांग्रेस गठबंधन की करारी हार हुई थी. उस समय उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो समाजवादी पार्टी ने अपनी धुर विरोधी बहुजन समाज पार्टी के साथ सियासी गठजोड़ किया. लेकिन इसमें भी सफलता अखिलेश यादव को नहीं मिल पाई.

2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो सपा कांग्रेस के गठबंधन के समय करारी हार हुई थी और समाजवादी पार्टी को महज 47 सीट मिली. वहीं कांग्रेस पार्टी को 7 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. दोनों दलों की सीटों को जोड़कर देखें तो सपा कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 55 सीटों पर सिमट गया था. उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी थी. बीजेपी गठबंधन को 325 सीटें मिली थीं, जिसमें 312 सीट भारतीय जनता पार्टी को, बीजेपी की सहयोगी दल अपना दल को 9 सीट, वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 4 सीटें मिली थीं. भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार बनी थी.

2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठजोड़ किया. लेकिन इसमें भी समाजवादी पार्टी को कोई फायदा नहीं मिला. जबकि बहुजन समाज पार्टी को इसमें जरूर फायदा मिला था. सपा को मात्र 5 लोकसभा की सीटें मिल पाई थीं. जबकि बहुजन समाज पार्टी को सपा गठबंधन से फायदा हुआ और उसे 10 लोकसभा की सीटें मिली थीं. लेकिन खास बात ये थी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का वोट बहुजन समाज पार्टी के वोट के साथ मिल गया, तो बीएसपी को 10 सीटें मिलीं.

जबकि बहुजन समाज पार्टी का जो वोट बैंक था, वो समाजवादी पार्टी के वोट बैंक के साथ मेल नहीं खाया. इसके कारण समाजवादी पार्टी को मात्र 5 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. जबकि भारतीय जनता पार्टी गठबंधन को उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में 2019 में से 64 सीट मिली थी. इनमें बीजेपी को 62 सीट तो अपना दल को 2 सीटें मिली थीं. जबकि उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सिर्फ एक सीट यानी रायबरेली ही मिल पाई थी.

इसे भी पढ़ें- गोरखपुर शहर सीट पर योगी आदित्यनाथ ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज कर रचा इतिहास

वहीं बात 2022 के विधानसभा चुनाव की करें तो समाजवादी पार्टी ने कई छोटे दलों के साथ सियासी गठजोड़ किया. जिसमें मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ और पहुंच रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल मुख्य रूप से शामिल रहा. लेकिन इससे भी समाजवादी पार्टी को कोई फायदा नहीं हो पाया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी गठबंधन की करारी हार हुई है. सपा गठबंधन के साथ अन्य छोटे दलों की बात करें तो सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, जनवादी पार्टी सोशलिस्ट और अपना दल (कमेरावादी ) मुख्य रूप से शामिल थी. लेकिन इन छोटे दलों के सियासी गठजोड़ से भी समाजवादी पार्टी को कोई लाभ नहीं मिला और अखिलेश यादव सत्ता की सियासी कुर्सी पर काबिज होने में सफल नहीं हो पाये.

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लखनऊः एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव की रणनीति हर चुनाव में फेल साबित होती जा रही है. उन्होंने जीत के लिए पहले बड़ी पार्टियों से गठजोड़ किया. फिर इसके बाद छोटे सियासी दलों के साथ गठजोड़ किया. लेकिन उनके सपने चकनाचूर हो गये. हालांकि यूपी में विधानसभा चुनाव 2022 में जीत दर्ज करने के लिए सत्ता की सियासी कुर्सी पर काबिज होने को लेकर समाजवादी पार्टी ने खूब मेहनत की. लेकिन उनकी रणनीति फेल साबित हुई. सत्ता के सियासी कुर्सी पर अखिलेश यादव काबिज नहीं हो पाये.

अब तक आए रुझानों से स्पष्ट हो चुका है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी ऐतिहासिक जीत दर्ज कर रही है और पूर्ण बहुमत से काफी आगे निकलते हुए भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी कर रही है. उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी दोबारा सरकार बनाने जा रही है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होंगे. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की छोटे दलों के साथ सियासी गठजोड़ की रणनीति पूरी तरह से फ्लॉप साबित हुई.

अखिलेश यादव के सभी गठजोड़ हुए फेल

बात 2017 के विधानसभा चुनाव से शुरू करें तो 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया. लेकिन उनकी ये कोशिश भी सफल नहीं हुई और समाजवादी पार्टी कांग्रेस गठबंधन की करारी हार हुई थी. उस समय उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो समाजवादी पार्टी ने अपनी धुर विरोधी बहुजन समाज पार्टी के साथ सियासी गठजोड़ किया. लेकिन इसमें भी सफलता अखिलेश यादव को नहीं मिल पाई.

2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो सपा कांग्रेस के गठबंधन के समय करारी हार हुई थी और समाजवादी पार्टी को महज 47 सीट मिली. वहीं कांग्रेस पार्टी को 7 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. दोनों दलों की सीटों को जोड़कर देखें तो सपा कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 55 सीटों पर सिमट गया था. उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी थी. बीजेपी गठबंधन को 325 सीटें मिली थीं, जिसमें 312 सीट भारतीय जनता पार्टी को, बीजेपी की सहयोगी दल अपना दल को 9 सीट, वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 4 सीटें मिली थीं. भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार बनी थी.

2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठजोड़ किया. लेकिन इसमें भी समाजवादी पार्टी को कोई फायदा नहीं मिला. जबकि बहुजन समाज पार्टी को इसमें जरूर फायदा मिला था. सपा को मात्र 5 लोकसभा की सीटें मिल पाई थीं. जबकि बहुजन समाज पार्टी को सपा गठबंधन से फायदा हुआ और उसे 10 लोकसभा की सीटें मिली थीं. लेकिन खास बात ये थी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का वोट बहुजन समाज पार्टी के वोट के साथ मिल गया, तो बीएसपी को 10 सीटें मिलीं.

जबकि बहुजन समाज पार्टी का जो वोट बैंक था, वो समाजवादी पार्टी के वोट बैंक के साथ मेल नहीं खाया. इसके कारण समाजवादी पार्टी को मात्र 5 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. जबकि भारतीय जनता पार्टी गठबंधन को उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में 2019 में से 64 सीट मिली थी. इनमें बीजेपी को 62 सीट तो अपना दल को 2 सीटें मिली थीं. जबकि उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सिर्फ एक सीट यानी रायबरेली ही मिल पाई थी.

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वहीं बात 2022 के विधानसभा चुनाव की करें तो समाजवादी पार्टी ने कई छोटे दलों के साथ सियासी गठजोड़ किया. जिसमें मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ और पहुंच रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल मुख्य रूप से शामिल रहा. लेकिन इससे भी समाजवादी पार्टी को कोई फायदा नहीं हो पाया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी गठबंधन की करारी हार हुई है. सपा गठबंधन के साथ अन्य छोटे दलों की बात करें तो सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, जनवादी पार्टी सोशलिस्ट और अपना दल (कमेरावादी ) मुख्य रूप से शामिल थी. लेकिन इन छोटे दलों के सियासी गठजोड़ से भी समाजवादी पार्टी को कोई लाभ नहीं मिला और अखिलेश यादव सत्ता की सियासी कुर्सी पर काबिज होने में सफल नहीं हो पाये.

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