लखनऊ: राजधानी लखनऊ में आयोजित बहादुर शाह जफर जयन्ती समारोह में विधानसभा नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने कहा कि बहादुर शाह जफर ने बरतानिया हुकूमत के खिलाफ जो किया उसे चाहे बगावत कहा जाए, चाहे आजादी की लड़ाई. उन्होंने कहा कि आजादी की नींव वहीं से रखी गई थी, ऐसे ही बलिया की धरती पर शुरू हुए सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन का भी शीर्ष महत्व है.
प्रेस क्लब में आयोजित कार्यक्रम में रामगोविंद चौधरी ने कहा कि अमर शहीद महान स्वतंत्रता सेनानी बहादुर शाह जफर को याद करते हुए कहा कि हमें बदलाव की ओर चलना पड़ेगा. चौधरी ने एक कविता की लाइनों के साथ अपनी बात पूरी की 'गंगा की कसम, जमुना की कसम यह ताना बाना बदलेगा, कुछ तुम बदलो कुछ हम बदलें तब सारा जमाना बदलेगा'.
वामपंथी नेता अतुल कुमार अंजान ने कहा कि 24 अक्टूबर बहुत ही पाक और मुकद्दस दिन है. इस दिन पर आयोजित यह प्रोग्राम बेहद खास है. आज जब हम आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहे हैं तो लखनऊ वालों से मेरी यह गुजारिश है कि अब वास्तविक अर्थों में बहादुर शाह जफर को याद किया जाए. उन्होंने कहा कि जिसके विचारों के साए तले दो तिहाई दुनिया चलती है. अंजान ने कहा कि ऐसी अजीम शख्शियत को याद करते हुए हमें एक दूसरे के एहतराम का संकल्प लेना चाहिए. चुनौतियों के इस दौर में मिल जुलकर ही इस देश को आगे बढ़ाया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस मीडिया विभाग के डिप्टी चेयरमैन डॉ. पंकज श्रीवास्तव ने बहादुर शाह जफर के भारत की आजादी के लिए किये गए संघर्ष को विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि 70 साल के उस शख्श द्वारा जलायी गई आजादी की मशाल की तपिश में एक दिन ब्रिटिश हुकूमत का सूरज अस्त हो गया.
प्रोफेसर साबिरा हबीब ने बताया कि दूसरे लोग जिसे बगावत कहते हैं, बहादुर शाह जफर ने ही आजादी की उस लड़ाई को शुरू किया था, आगे चलकर यही लड़ाई हमारी जम्हूरियत का सबब बनी. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए गिरि विकास अध्ययन संस्थान के डॉ. एके सिंह ने कहा कि जो लोग अपने पूर्वजों को याद नहीं करते उनकी आने वाली पीढ़ियां भी उनको याद नहीं करती हैं.