लखनऊ : प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में तल्खी लगातार बढ़ती जा रही है. मध्य प्रदेश और राजस्थान सहित पांच राज्य में हो रहे विधानसभा चुनावों में सीट बंटवारे को लेकर शुरू हुई रार में कांग्रेस के रुख से खफा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस को सबक सिखाने का मन बना लिया है. वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय लगातार अपने रवैये से सपा को चिंता में डाल रहे हैं. पिछले लंबे अर्से से प्रदेश की राजनीति में अल्पसंख्यक मतदाताओं का साथ समाजवादी पार्टी को मिला है. अब कांग्रेस पार्टी ने भी इसी वोट बैंक को हथियाने के लिए डोरे डालने शुरू किए हैं. स्वाभाविक है कि एक ही वोट बैंक के लिए लड़ने वाले दलों का गठबंधन हो पाना संभव नहीं लगता.
दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे : पिछले दिनों प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष अजय राय लगातार समाजवादी पार्टी पर हमलावर रहे हैं. यह तब है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर दोनों दलों के नेताओं की अन्य दलों के साथ बैठकें हो चुकी हैं और लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन पर सहमति भी बन चुकी है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस द्वारा सपा को सीटें न दिए जाने के बाद अखिलेश यादव ने दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. उन्होंने बातचीत में इस बात के संकेत भी दिए हैं कि लोकसभा चुनावों में वह कांग्रेस से इस टीस का बदला भी जरूर लेंगे. अभी तक समाजवादी पार्टी कांग्रेस की परंपरागत रायबरेली और अमेठी सीटों पर अपने प्रत्याशी न उतार कर विपक्षी एकता का जो परिचय देती थी उम्मीद है, आगामी चुनावों में वह एकता भी दिखाई न दे. वैसे भी प्रदेश में कांग्रेस पार्टी हाशिए पर है. 2019 के लोकसभा चुनावों में वह सिर्फ एक सीट जीत पाई थी, जबकि अपनी परंपरागत अमेठी सीट भी भाजपा की स्मृति ईरानी के हाथों गंवानी पड़ी थी. 2022 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस के सिर्फ दो विधायक ही जीतकर आए थे. ऐसी स्थिति में यदि सपा गठबंधन के लिए राजी भी हो गई, तो कांग्रेस की मांग के मुताबिक सीटें नहीं देगी. स्वाभाविक है कि ऐसे में गठबंधन पर आंच जरूर आएगी.
अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी कांग्रेस : यदि कांग्रेस पार्टी की बात करें, तो वह अब उत्तर प्रदेश में अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी है. सीटों के लिहाज से यूपी सबसे बड़ा राज्य है. ऐसे में यदि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है, तो केंद्र में कांग्रेस की सरकार का सपना कभी साकार नहीं हो पाएगा. यही कारण है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय लगातार अल्पसंख्यक मतदाताओं को रिझाने की कोशिशें कर रहे हैं. राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस खुद को धर्मनिरपेक्ष राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा बताती रही है. कांग्रेस नेताओं का मानना है कि पांच राज्यों के चुनावों में कांग्रेस का शानदार प्रदर्शन होने वाला है. ऐसे में कुछ माह बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को लेकर अच्छा माहौल बन सकता है, वहीं सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में सपा के अलावा भी अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है. राष्ट्रीय लोकदल के नेता भी कांग्रेस के संपर्क में हैं. वहीं बसपा से भी कांग्रेस की बातचीत की कोशिश हैं. यदि कांग्रेस, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल मिलकर मैदान में उतरे तो प्रदेश में त्रिकोणीय मुकाबला हो जाएगा, जिसका फायदा भाजपा को होगा और नुकसान सपा को. यह बात और है कि अभी चुनाव में काफी समय है और तब तक बहुत कुछ बदलाव हो सकते हैं, लेकिन अभी की परिस्थितियां बताती हैं कि सपा और कांग्रेस का रिश्ता निभ पाना आसान नहीं है.
उत्तर प्रदेश की राजनीति बहुत अहम : राजनीतिक विश्लेषक डॉ प्रदीप यादव कहते हैं कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है और सपा क्षेत्रीय दल. ऐसे में समाजवादी पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश की राजनीति बहुत अहम है. यदि अखिलेश यूपी में कमजोर होते हैं, तो उनके दल का अस्तित्व कठिन होगा, वहीं कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है और वह सिर्फ उत्तर प्रदेश के सहारे नहीं है. ऐसे में यह निश्चित है कि यदि सपा और कांग्रेस में लोकसभा चुनावों के वक्त कोई समझौता हुआ, तो वह सपा की शर्तों पर ही होगा. गठबंधन में कांग्रेस पार्टी को समझौते तो करने ही पड़ेंगे, वहीं सपा के लिए गठबंधन कोई मजबूरी नहीं है. सपा अध्यक्ष का केंद्र में सरकार बनाने का सपना भी नहीं है. हां, यदि भाजपा विरोधी दलों की केंद्र में सरकार बनी तो लाभ उन्हें भी जरूर होगा. इसलिए अखिलेश यादव प्रदेश में समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने वाले दलों से बहुत समझौते नहीं करेंगे. पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद पता चल जाएगा कि आगे की स्थिति क्या रहने वाली है.