लखनऊ : उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बड़ी संख्या में अन्य दलों के नेताओं को पार्टी ज्वाइन कराई है. इनमें कई विधायक, पूर्व विधायक और मंत्री शामिल हैं. टिकट वितरण के समय तमाम सीटों पर पांच साल से पार्टी में रहकर अपनी सीट पर तैयारी करने वाले नेताओं की जगह बाहर से आए नेताओं को तरजीह दी जा रही है. इस कारण सपा में तमाम सीटों पर बगावती तेवर दिखाई देने लगे हैं. कई नेताओं ने सपा प्रत्याशी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है तो वहीं कुछ नेता दूसरे दलों से टिकट लेकर मैदान में उतरने को मजबूर हुए हैं. स्वाभाविक है कि ऐसे प्रत्याशी कहीं न कहीं समाजवादी पार्टी के लिए आत्मघाती साबित हो सकते हैं.
टिकट कटने पर फूट-फूटकर रोए पूर्व विधायक मनीष रावत
शुक्रवार को जारी सपा की सूची में सीतापुर की सिधौली सीट पर मनीष रावत का टिकट काट दिया गया. उनकी जगह बसपा से सपा में आए विधायक हरगोविंद भार्गव को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है. पार्टी के इस फैसले पर कार्यकर्ताओं में काफी गुस्सा देखा जा रहा है. इस फैसले पर मनीष रावत फूट-फूट कर रोए. शनिवार को पूर्व विधायक मनीष रावत भाजपा में शामिल हो गए. अब वह सपा के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे.
गौरतलब है कि 2012 में मनीष रावत सपा से इसी सीट से जीतकर आए थे. 2017 में भाजपा की लहर के बावजूद उनकी मामूली वोटो से पराजय हुई थी. ऐसे में इस बार मनीष रावत की स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही थी और किसी को उम्मीद नहीं थी कि पार्टी उनका टिकट काट सकती है. टिकट कटने के बाद उन्होंने सपा पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि आखिरकार पैसा जीत ही गया. सिधौली की जनता की मेहनत हार गई. मनीष पूर्व सांसद सुशीला सरोज के दामाद हैं.
फर्रुखाबाद में भी भड़की बगावती आग
फर्रुखाबाद की अमृतपुर व भोजपुर विधान सभा सीट से छह बार विधायक रहे सपा के पुराने नेता व पूर्व राज्यमंत्री नरेंद्र यादव ने भी टिकट न मिलने से सपा से बगावत कर दी है. नरेंद्र पिछले चुनाव में हार गए थे, जिस पर पार्टी ने इस बार अमृतपुर सीट से जितेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया है. इसी को लेकर फतेहगढ़ स्थित राजेंद्र नगर में नरेंद्र यादव के आवास पर बड़ी संख्या में उनके समर्थक एकत्र हुए. उन्होंने अखिलेश यादव के खिलाफ नारेबाजी की. सपा के जिलाध्यक्ष नदीम अहमद फारुकी ने पूर्व राज्यमंत्री को नोटिस दिया है और दो दिन में नोटिस का जवाब देने की बात कही है.
आजमगढ़ में भी बढ़ सकती हैं पार्टी की मुश्किलें
आजमगढ़ में भी पार्टी के अपने पराए होते दिख रहे हैं. जिले की गोपालपुर, फूलपुर, निजामाबाद व दीदारगंज सीट पर टिकट कटने पर समाजवादी पार्टी के नेताओं में फूट पड़ने लगी है. फूलपुर सीट से बाहुबली रमाकांत यादव को टिकट मिलने पर पूर्व विधायक श्याम बहादुर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से नाराज हो गए हैं. श्याम बहादुर को भरोसा था कि पार्टी इस बार का टिकट उन्हें ही देगी. यही हाल ए तस्वीर निजामाबाद सीट और दीदारगंज का भी है. निजामाबाद से कई नेता टिकट की आस लगाए बैठे थे, जिनमें इसरार अली व प्रेमा यादव की मजबूत दावेदारी बताई जा रही थी, लेकिन यहां से आलमबदी को टिकट दे दिया है. इसके बाद इन दोनों नेताओं ने पार्टी से दूरी बना ली है. वहीं, दीदारगंज से पार्टी ने सुखदेव राजभर के बेटे कमलाकांत राजभर को प्रत्याशी बनाया है. इस सीट से आदिल शेख मजबूती से दावेदारी ठोक रहे थे. आदिल 2012 में इस सीट से विधायक रहे हैं.
बुंदेलखंड में भी तैयार हो रही मोर्चेबंदी
टिकट की घोषणा से पहले अखिलेश यादव के लिए लगने वाले जयकारों में अब विरोध के नारे भी शामिल हो रहे हैं. झांसी में टिकट बंटवारे होने के बाद सपा के कई नेताओं ने दूसरे दलों में अपनी राह तय करने का फैसला कर लिया है. बबीना सीट के सपा के पुराने नेता वीरेंद्र प्रताप सिंह वीरू, मऊरानीपुर की पूर्व विधायक रश्मि आर्या ने टिकट न मिलने पर बीजेपी ज्वाइन कर ली है. वहीं, दीपमाला कुशवाहा ने अपना दल का हाथ थाम लिया है.
फिरोजाबाद में सपा ने टिकट काटा, बन गए बसपाई
फिरोजाबाद सदर के पूर्व विधायक अज़ीम भाई का समाजवादी पार्टी ने टिकट काट उनके साथी सैफुर्रहमान को प्रत्याशी बनाया. इससे नाराज अज़ीम बसपा में शामिल हो गए हैं और उनकी पत्नी साजिया हसन को बसपा ने प्रत्याशी बना दिया है.
बगावत करने में पार्टी के कद्दावर नेता भी शामिल
समाजवादी पार्टी से बगावत करने वालों में वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री भी शामिल हैं. अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे शिवकांत ओझा का पार्टी ने रानीगंज सीट से टिकट काट कर अपराधी छवि के विनोद दुबे को प्रत्याशी बनाया था. टिकट कटने से नाराज ओझा ने भाजपा का दामन थाम लिया.
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समाजवादी पार्टी ने जिस तरह इस बार के विधान सभा चुनाव से पहले अन्य दलों के तमाम नेताओं को पार्टी में शामिल कराया है और टिकट वितरण में बाहरी नेताओं को तरजीह दी है, इससे उसके अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में भारी नारागजी है. राजनीतिक पंडित इस तरह के फैसले को किसी भी दल के लिए सही नहीं मानते हैं. राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा कहते हैं कि हर राजनीतिक दल में टिकट को लेकर चुनौती देने वाले नेताओं की एक बड़ी फौज है.
उसमें कुछ ऐसे नेता होते है जो जीत जाते है और कुछ हारते है. अब राजनीतिक दलों के पास ऐसा कोई आंकड़ा भी पहले से नही होता है कि जिसका जिसका टिकट काटा जा रहा है वो हार ही जाए क्योंकि टिकट काटने वाले दल के हाई कमान की अलग सोच होती और जिसका टिकट काटा जाता है वो कुछ और सोच रखता है.
रही बात टिकट काटने की तो सपा अकेला ऐसा दल नही है जो कार्यकर्ताओं का टिकट काट रही हो, बीजेपी ने तो तीन तीन बार विधायक रहे मौजूदा विधायकों का टिकट काटा है. योगेश कहते है कि उन्हें नही लगता है कि टिकट काटने से किसी भी दल पर कोई प्रभाव पड़ता है. योगेश मिश्रा ये जरूर मानते है कि कुछ सीटों पर ये देखना जरूरी होता है कि जिसका टिकट काटा जा रहा है उसका व्यक्तिगत रूप से सीट पर कितना प्रभाव है या फिर वह जिस जाति से आता है उस पर उसका कितना वर्चस्व है.
वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र त्रिपाठी कहते हैं कि वैसे तो यह हर चुनाव में देखने को मिलता है कि कुछ पुराने कार्यकर्ताओं को टिकट नहीं मिलता है, पूर्व विधायकों के टिकट काटे जाते हैं. इससे कोई भी दल अछूता नहीं है. भारतीय जनता पार्टी ने तो मंत्रियों तक के टिकट काटे हैं. समाजवादी पार्टी ने जिस तरह दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट दिया है, उससे उनके कार्यकर्ताओं में बगावत होना लाजमी है. अब यह देखना है कि पार्टी नेतृत्व इसको किस तरह बैलेंस कर पाता है. उन्हें मना पाएगा या नहीं, लेकिन यह जरूर है कि स्थानीय नेताओं की नाराजगी हर दल को नुकसान पहुंचती है.
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