ETV Bharat / state

UP में राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाड़ने में जुटे छोटे राजनीतिक दल

भले ही अभी विधानसभा चुनाव को वक्त हो, लेकिन सूबे में बढ़ी सियासी दलों की सक्रियता यह साबित करने को काफी है कि आगामी विधानसभा चुनाव उनके लिए कितना अहम है. यही कारण है कि सभी दलों के नेता क्षेत्रवार रणनीति बनाने से लेकर जनसंपर्क तक में अभी से ही लग गए हैं. वहीं, अबकी इस चुनाव में छोटे दलों की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण होगी.

UP में राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाड़ने में जुटे छोटे राजनीतिक दल
UP में राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाड़ने में जुटे छोटे राजनीतिक दल
author img

By

Published : Oct 10, 2021, 6:47 AM IST

लखनऊ: भले ही अभी विधानसभा चुनाव को वक्त हो, लेकिन सूबे में बढ़ी सियासी दलों की सक्रियता यह साबित करने को काफी है कि आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) उनके लिए कितना अहम है. यही कारण है कि सभी दलों के नेता क्षेत्रवार रणनीति बनाने से लेकर जनसंपर्क तक में अभी से ही लग गए हैं. वहीं, अबकी इस चुनाव में छोटे दलों की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण होगी. साथ ही जिन दलों का यहां कोई राजनीतिक वजूद नहीं है अब वे भी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. इतना ही नहीं जातीय सियासी गुणा भाग के सहारे तो कई दलों ने बड़े दलों से समझौता भी कर लिए हैं.

ऐसे में आम आदमी पार्टी को ही ले लीजिए. दिल्ली में उनकी सरकार है तो पंजाब में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है. उत्तर प्रदेश में खाता खोलने के लिए पार्टी ने पूरा जी जान लगा दी है. निषाद पार्टी और अपना दल एस भाजपा से समझौता कर चुके हैं. पश्चिम बंगाल में सरकार चला रही तृणमूल कांग्रेस और बिहार की सत्ता पर काबिज जदयू भी अब यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है. इधर, भगत सिंह समाजवादी पार्टी और ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन भी इस बार उत्तर प्रदेश में भाग्य आजमाने को उतरेंगी.

इसे भी पढ़ें - बसपा का सॉफ्ट हिंदुत्व : मायावती का दावा, हम संवारेंगे अयोध्या-काशी-मथुरा

यह तो हुई उन राजनीतिक दलों की बात जिनका किसी न किसी प्रदेश में वजूद है. अब ऐसे राजनीतिक दलों पर भी गौर करते हैं, जो सिर्फ उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने के लिए पंजीकरण करा चुके हैं. पिछले 9 सालों में ऐसे 653 गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों ने पंजीकरण कराए हैं. इनमें से अधिकांश राजनीतिक दल जानते हैं कि सूबे में उन्हें कहीं सफलता नहीं मिलने वाली. प्रदेश में कितनी जातियां हैं, उससे भी ज्यादा राजनीतिक दल है. अपने जातीय समीकरण के सहारे ही वह बड़े राजनीतिक दलों को ब्लैकमेल करते हैं.

बड़े पैमाने पर अस्तित्व में आ रहे राजनीतिक दलों के पीछे भी एक कहानी है. राजनीतिक दलों को बड़े पैमाने पर चंदा मिलता है. हालांकि, राजनीतिक दलों की चंदा वसूली पर चुनाव आयोग की भी नजर रहती है. हर साल सितंबर में इन्हें चुनाव आयोग को चंदा वसूली का हिसाब देना पड़ता है. गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर इस जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि इन दोनों को करोड़ों रुपए का चंदा मिलता है. अपना देश पार्टी जिसका नाम भी उत्तर प्रदेश के बहुत कम लोग जानते हैं को 65 करोड़ 63 लाख रुपए का चंदा मिला था और गैर मान्यता प्राप्त ऐसे दलों को 2019 में 4300 लोगों ने चंदा दिया था.

ऐसे में समझा जा सकता है कि पंजीकृत राजनीतिक दलों की नजर चंदा वसूली से होने वाली कमाई पर टिकी है. इनमें से कई ऐसे भी राजनीतिक दल हैं, जो चंदा वसूली के सहारे अपने काले धन को सफेद करने का भी काम करते हैं. जितने पंजीकृत और मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल हैं, यदि वे सभी चुनाव मैदान में अपने उम्मीदवार उतारने लगे तो मतदान के दिन ईवीएम रखने को ही कमरे छोटे पड़ जाएंगे.

लखनऊ: भले ही अभी विधानसभा चुनाव को वक्त हो, लेकिन सूबे में बढ़ी सियासी दलों की सक्रियता यह साबित करने को काफी है कि आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) उनके लिए कितना अहम है. यही कारण है कि सभी दलों के नेता क्षेत्रवार रणनीति बनाने से लेकर जनसंपर्क तक में अभी से ही लग गए हैं. वहीं, अबकी इस चुनाव में छोटे दलों की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण होगी. साथ ही जिन दलों का यहां कोई राजनीतिक वजूद नहीं है अब वे भी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. इतना ही नहीं जातीय सियासी गुणा भाग के सहारे तो कई दलों ने बड़े दलों से समझौता भी कर लिए हैं.

ऐसे में आम आदमी पार्टी को ही ले लीजिए. दिल्ली में उनकी सरकार है तो पंजाब में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है. उत्तर प्रदेश में खाता खोलने के लिए पार्टी ने पूरा जी जान लगा दी है. निषाद पार्टी और अपना दल एस भाजपा से समझौता कर चुके हैं. पश्चिम बंगाल में सरकार चला रही तृणमूल कांग्रेस और बिहार की सत्ता पर काबिज जदयू भी अब यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है. इधर, भगत सिंह समाजवादी पार्टी और ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन भी इस बार उत्तर प्रदेश में भाग्य आजमाने को उतरेंगी.

इसे भी पढ़ें - बसपा का सॉफ्ट हिंदुत्व : मायावती का दावा, हम संवारेंगे अयोध्या-काशी-मथुरा

यह तो हुई उन राजनीतिक दलों की बात जिनका किसी न किसी प्रदेश में वजूद है. अब ऐसे राजनीतिक दलों पर भी गौर करते हैं, जो सिर्फ उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने के लिए पंजीकरण करा चुके हैं. पिछले 9 सालों में ऐसे 653 गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों ने पंजीकरण कराए हैं. इनमें से अधिकांश राजनीतिक दल जानते हैं कि सूबे में उन्हें कहीं सफलता नहीं मिलने वाली. प्रदेश में कितनी जातियां हैं, उससे भी ज्यादा राजनीतिक दल है. अपने जातीय समीकरण के सहारे ही वह बड़े राजनीतिक दलों को ब्लैकमेल करते हैं.

बड़े पैमाने पर अस्तित्व में आ रहे राजनीतिक दलों के पीछे भी एक कहानी है. राजनीतिक दलों को बड़े पैमाने पर चंदा मिलता है. हालांकि, राजनीतिक दलों की चंदा वसूली पर चुनाव आयोग की भी नजर रहती है. हर साल सितंबर में इन्हें चुनाव आयोग को चंदा वसूली का हिसाब देना पड़ता है. गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर इस जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि इन दोनों को करोड़ों रुपए का चंदा मिलता है. अपना देश पार्टी जिसका नाम भी उत्तर प्रदेश के बहुत कम लोग जानते हैं को 65 करोड़ 63 लाख रुपए का चंदा मिला था और गैर मान्यता प्राप्त ऐसे दलों को 2019 में 4300 लोगों ने चंदा दिया था.

ऐसे में समझा जा सकता है कि पंजीकृत राजनीतिक दलों की नजर चंदा वसूली से होने वाली कमाई पर टिकी है. इनमें से कई ऐसे भी राजनीतिक दल हैं, जो चंदा वसूली के सहारे अपने काले धन को सफेद करने का भी काम करते हैं. जितने पंजीकृत और मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल हैं, यदि वे सभी चुनाव मैदान में अपने उम्मीदवार उतारने लगे तो मतदान के दिन ईवीएम रखने को ही कमरे छोटे पड़ जाएंगे.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.