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लखनऊ: यूपी में बड़े दलों का खेल बिगाड़ सकते हैं छोटे दल

चुनावी बिगुल बज चुका है. ऐसे में इस बार देखना ये है कि उत्तर प्रदेश में छोटे दल भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों का खेल बिगाड़ने वाले हैं. जिन छोटे दलों को बड़े दलों का साथ नहीं मिला वह अलग से अपने प्रत्याशी मैदान पर उतार रहे हैं.

लखनऊ: यूपी में बड़े दलों का खेल बिगाड़ सकते हैं छोटे दल
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Published : Mar 24, 2019, 8:20 AM IST

लखनऊ : लोकसभा चुनाव को लेकर चुनावी बिगुल बज चुका है. इस बार उत्तर प्रदेश में छोटे दल भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों का खेल बिगाड़ने वाले हैं. दरअसल जिन छोटे दलों को बड़े दलों का साथ नहीं मिला वह अलग से अपने प्रत्याशी मैदान पर उतार रहे हैं. ऐसे में इन छोटे दलों के पक्ष में भले ही चुनाव परिणाम न आए. मगर यही छोटे दल कई बड़ों का खेल बिगाड़ेंगे.

लखनऊ: यूपी में बड़े दलों का खेल बिगाड़ सकते हैं छोटे दल

शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) बनाई है. प्रसपा का पीस पार्टी के साथ गठबंधन हुआ है. दोनों दलों में से किसी एक का भी पूरे उत्तर प्रदेश में प्रभाव नहीं है. लेकिन अगर प्रसपा पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपना प्रभाव दिखाएगी तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में पीस पार्टी का प्रभाव साफ दिखेगा. यहां मुस्लिम-यादव का गठजोड़ अगर काम किया तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा.

इसके बाद कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह की नव गठित जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी का प्रभाव प्रतापगढ़ जिले में ही दिखता है. उन्होंने जब तक पार्टी नहीं बनाई थी, तब तक जातीय समीकरण का लाभ मिलता रहा है. अब उनके साथ वही लोग खड़े दिखेंगे जो किसी और पार्टी में नहीं होंगे. हालांकि, पार्टी बनाने से पहले और बाद में भी उन्होंने भाजपा के साथ जाने की जुगत की लेकिन बात नहीं बनी. तब उन्होंने अपने दो प्रत्याशी भी घोषित किए.

वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल एनडीए गठबंधन में शामिल है. इन दलों की अपनी-अपनी नाराजगी थी, जिसे भाजपा नेतृत्व ने मना लिया. योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बाकायदा प्रेस के सामने आकर नाराजगी नहीं होने और एनडीए गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने की घोषणा की है.

इसके अलावा पश्चिम उत्तर प्रदेश खासकर जाट लैंड में प्रभाव रखने वाली पार्टी राष्ट्रीय लोक दल है. वहीं रालोद सपा-बसपा गठबंधन में शामिल हुआ है. उसे तीन सीटें मिली हैं. इसमें बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा संसदीय क्षेत्र हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में रालोद अपनी सभी सीटें हार गई थी. यहां तक रालोद अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह, उनके बेटे और पार्टी के महासचिव जयंत चौधरी भी अपनी सीट गवां बैठे थे.

इस बार रालोद का एनडीए गठबंधन में शामिल होने का प्रयास था. भाजपा उनके मुताबिक सीटें देने को तैयार नहीं थी. दूसरा यह कि भाजपा के जाट नेताओं ने भी चौधरी परिवार का विरोध किया. ऐसी स्थिति में सपा-बसपा ने रालोद को साथ लेकर जाट मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया है.

यूपी की मौजूदा सियासत पर नजर डालें तो परिदृश्य साफ दिख रहा है. चार धड़े में चुनाव लड़ते दिख रहे हैं. भाजपा, कांग्रेस, सपा-बसपा गठबंधन और प्रसपा. जनसत्ता जैसे छोटे दल चौथे धड़े के रूप में मैदान में हैं.

इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार अशोक राजपूत का मानना है कि यह दल राजनीतिक उलटफेर करने की स्थिति में तो नहीं है लेकिन कुछ लोगों का खेल बिगाड़ सकते हैं. यह राष्ट्रीय चुनाव है. इसमें इनका कोई अहम योगदान नहीं होगा. मतदाता भी जागरूक हैं.

लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉक्टर समीर सिंह ने कहा कि देश की जनता मोदी जी और उनके द्वारा किए गए विकास कार्यों को केंद्र में रखकर मतदान करेगी. विधानसभा चुनाव होता तो इन दलों की कुछ प्रासंगिकता रहती. देश की सबसे बड़ी पंचायत के लिए होने वाले इस चुनाव में इन दलों की कोई भूमिका नहीं रहने वाली. भाजपा भी इन्हें कोई चुनौती नहीं मानती.

लखनऊ : लोकसभा चुनाव को लेकर चुनावी बिगुल बज चुका है. इस बार उत्तर प्रदेश में छोटे दल भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों का खेल बिगाड़ने वाले हैं. दरअसल जिन छोटे दलों को बड़े दलों का साथ नहीं मिला वह अलग से अपने प्रत्याशी मैदान पर उतार रहे हैं. ऐसे में इन छोटे दलों के पक्ष में भले ही चुनाव परिणाम न आए. मगर यही छोटे दल कई बड़ों का खेल बिगाड़ेंगे.

लखनऊ: यूपी में बड़े दलों का खेल बिगाड़ सकते हैं छोटे दल

शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) बनाई है. प्रसपा का पीस पार्टी के साथ गठबंधन हुआ है. दोनों दलों में से किसी एक का भी पूरे उत्तर प्रदेश में प्रभाव नहीं है. लेकिन अगर प्रसपा पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपना प्रभाव दिखाएगी तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में पीस पार्टी का प्रभाव साफ दिखेगा. यहां मुस्लिम-यादव का गठजोड़ अगर काम किया तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा.

इसके बाद कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह की नव गठित जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी का प्रभाव प्रतापगढ़ जिले में ही दिखता है. उन्होंने जब तक पार्टी नहीं बनाई थी, तब तक जातीय समीकरण का लाभ मिलता रहा है. अब उनके साथ वही लोग खड़े दिखेंगे जो किसी और पार्टी में नहीं होंगे. हालांकि, पार्टी बनाने से पहले और बाद में भी उन्होंने भाजपा के साथ जाने की जुगत की लेकिन बात नहीं बनी. तब उन्होंने अपने दो प्रत्याशी भी घोषित किए.

वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल एनडीए गठबंधन में शामिल है. इन दलों की अपनी-अपनी नाराजगी थी, जिसे भाजपा नेतृत्व ने मना लिया. योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बाकायदा प्रेस के सामने आकर नाराजगी नहीं होने और एनडीए गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने की घोषणा की है.

इसके अलावा पश्चिम उत्तर प्रदेश खासकर जाट लैंड में प्रभाव रखने वाली पार्टी राष्ट्रीय लोक दल है. वहीं रालोद सपा-बसपा गठबंधन में शामिल हुआ है. उसे तीन सीटें मिली हैं. इसमें बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा संसदीय क्षेत्र हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में रालोद अपनी सभी सीटें हार गई थी. यहां तक रालोद अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह, उनके बेटे और पार्टी के महासचिव जयंत चौधरी भी अपनी सीट गवां बैठे थे.

इस बार रालोद का एनडीए गठबंधन में शामिल होने का प्रयास था. भाजपा उनके मुताबिक सीटें देने को तैयार नहीं थी. दूसरा यह कि भाजपा के जाट नेताओं ने भी चौधरी परिवार का विरोध किया. ऐसी स्थिति में सपा-बसपा ने रालोद को साथ लेकर जाट मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया है.

यूपी की मौजूदा सियासत पर नजर डालें तो परिदृश्य साफ दिख रहा है. चार धड़े में चुनाव लड़ते दिख रहे हैं. भाजपा, कांग्रेस, सपा-बसपा गठबंधन और प्रसपा. जनसत्ता जैसे छोटे दल चौथे धड़े के रूप में मैदान में हैं.

इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार अशोक राजपूत का मानना है कि यह दल राजनीतिक उलटफेर करने की स्थिति में तो नहीं है लेकिन कुछ लोगों का खेल बिगाड़ सकते हैं. यह राष्ट्रीय चुनाव है. इसमें इनका कोई अहम योगदान नहीं होगा. मतदाता भी जागरूक हैं.

लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉक्टर समीर सिंह ने कहा कि देश की जनता मोदी जी और उनके द्वारा किए गए विकास कार्यों को केंद्र में रखकर मतदान करेगी. विधानसभा चुनाव होता तो इन दलों की कुछ प्रासंगिकता रहती. देश की सबसे बड़ी पंचायत के लिए होने वाले इस चुनाव में इन दलों की कोई भूमिका नहीं रहने वाली. भाजपा भी इन्हें कोई चुनौती नहीं मानती.

Intro:लखनऊ। उत्तर प्रदेश में छोटे दल इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा तपा बसपा कांग्रेस जैसे बड़े दलों का खेल बिगाड़ने जा रहे हैं जिन छोटे दलों को बड़े दलों का साथ नहीं मिला वह अलग से अपना अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान उतारेंगे। चुनाव परिणाम इन छोटे दलों के पक्ष में भले ही न रहे लेकिन कई बड़ों का खेल जरूर बिगाड़ेंगे।


Body:समाजवादी पार्टी से अलग होकर शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी प्रसपा बनाई। प्रसपा का पीस पार्टी के साथ गठबंधन हुआ है। इन दोनों दलों में से किसी एक का पूरे उत्तर प्रदेश में प्रभाव नहीं है। लेकिन प्रगतिशील समाजवादी पार्टी अगर पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपना प्रभाव दिखाएगी तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में पीस पार्टी का प्रभाव साफ दिखेगा। यहां मुस्लिम यादव का गठजोड़ अगर काम किया तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा।

इसके बाद कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह की नव गठित जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी है। रघुराज का प्रभाव प्रतापगढ़ जिले में ही दिखता है। उन्होंने जबतक पार्टी नहीं बनाई थी तबतक जातीय समीकरण का लाभ मिलता रहा है। अब उनके साथ वही लोग खड़े दिखेंगे जो किसी और पार्टी में नहीं होंगे। हालांकि पार्टी बनाने से पहले और बाद में भी उन्होंने भाजपा के साथ जाने की जुगत की लेकिन बात नहीं बनी। तब उन्होंने अपने दो प्रत्याशी भी घोषित किये।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल एस भाजपा के साथ एनडीए गठबंधन में शामिल है। इन दलों की अपनी-अपनी नाराजगी थी जिसे भाजपा नेतृत्व ने मना लिया। योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बाकायदा प्रेस के सामने आकर नाराजगी नहीं होने और nda गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने की घोषणा की है।

पश्चिम उत्तर प्रदेश खासकर जाट लैंड में प्रभाव रखने वाली पार्टी राष्ट्रीय लोक दल है। रालोद सपा बसपा गठबंधन ने शामिल हुआ है। उसे 3 सीटें मिली हैं। इसमें बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा संसदीय छेत्र हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में रालोद अपनी सभी सीटें हार गया था। यहां तक रालोद अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह और उनके बेटे व पार्टी के महासचिव जयंत चौधरी भी अपनी सीट गवां बैठे थे।

इस बार उनका bjp गठबंधन में शामिल होने का प्रयास था। बीजेपी उनके मुताबिक सीटें देने को तैयार नहीं थी। दूसरा यह कि bjp के जाट नेताओं ने भी चौधरी परिवार का विरोध किया। यह वजह भी रही कि रालोद nda गठबंधन में शामिल नहीं हो सका। सपा बसपा ने रालोद को साथ लेकर जाट मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया है।

यूपी की मौजूदा सियासत पर नजर डालें तो परिदृश्य साफ दिख रहा है। चार धड़े में चुनाव लड़ते दिख रहे हैं। भाजपा, कांग्रेस, सपा- बसपा गठबंधन और प्रसपा, जनसत्ता जैसे छोटे दल चौथे धड़े के रूप में मैदान में हैं। वरिष्ठ पत्रकार अशोक राजपूत का मानना है कि ये दल राजनीतिक उलटफेर करने की स्थिति में तो नहीं है लेकिन कुछ लोगों का खेल बिगाड़ सकते हैं। यह राष्ट्रीय चुनाव है। इसमें इनका कोई अहम योगदान नहीं होगा। मतदाता भी जागरूक हैं।

बाईट- बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता डॉक्टर समीर सिंह ने कहा कि लोकसभा चुनाव है। देश की जनता मोदी जी और उनके द्वारा किये गए विकास कार्यों को केंद्र में रखकर मतदान करेगी। विधानसभा चुनाव होता तो इन दलों की कुछ प्रासंगिकता रहती। देश की सबसे बड़ी पंचायत के लिए होने वाले इस चुनाव में इन दलों की कोई भूमिका नई रहने वाली। भाजपा भी इन्हें कोई चुनौती नहीं मानती।


Conclusion:रिपोर्ट-दिलीप शुक्ला, 9450663213
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