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Lockdown effect: बाहर कोरोना, झुग्गी-झोपड़ियों में पेट की आग बुझाने का रोना

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Published : May 2, 2020, 1:16 PM IST

यूपी की राजधानी लखनऊ में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की जिंदगी कोरोना वायरस ने नर्क बना दी है. इन लोगों के पास न ही खाने को पैसे हैं और न ही पीने का पानी. लॉकडाऊन के चलते इन लोगों का काम धंधा भी ठप हो गया है, जिससे इनके सामने भूख से मरने की नौबत आ गई है.

झुग्गियों में रहनेवाले लोग.
झुग्गियों में रहनेवाले लोग.

लखनऊ: कोरोना वायरस ने झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों का जीवन बद से बदतर बना दिया है. लॉकडाउन के चलते इन लोगों को न ही कहीं काम मिल रहा है और न ही खाने के लिए सामान. झोपड़ी में रहने वाली सफीकुननिशा हों या राजेश भारती, गीता हों या फिर जगन्नाथ साहू. ये सभी लोग कहीं न कहीं कोई न कोई काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते अब ये घर में रहने को मजबूर हैं. न ही इनके पास कोई काम बचा है और न ही गुजर बसर के लिए पैसे. जिंदगी में इनके पहले से ही परेशानियों का सैलाब था तो अब कोरोना ने इस सैलाब को जलजले में बदल दिया है. जब से इन्हें पता चला है कि एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ी वाली बस्ती मुंबई के धारावी में रहने वाले लोग कोरोना वायरस की चपेट में आ रहे हैं तब से ये लोग हर वक्त डर के साये में जीने को मजबूर हैं.

जानकारी देते झुग्गी निवासी.

'ईटीवी भारत' की जांच-पड़ताल
ईटीवी भारत ने ऐसी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के बीच जाकर उनका हाल-चाल जाना. झुग्गी में रहने वाली सफीकुन्निशा बताती हैं कि वे घरों में खाना-पकाने और साफ-सफाई का काम करती थीं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से अब उन्हें कोई बुला नहीं रहा है. अब तक जो पैसे जोड़ कर रखे थे बस उससे ही घर चल रहा है. उन्होंने बताया कि बस्ती में एक बार सैनिटाइजेशन हुआ था. तबसे अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है.

झुग्गियों में कैद रहने को मजबूर
लखनऊ के राजाजीपुरम इलाके में बांस-टाट की झुग्गी-झोपड़ी वाली गरीबों की बस्ती में तकरीबन डेढ़ सौ परिवार रहता है. यहां रहने वाला कोई रिक्शा चलाता है तो कोई सफाईकर्मी है. कोई स्कूल में चपरासी है तो कोई दूसरों के घर में साफ-सफाई और खाना बनाने का काम करता है. लॉकडाउन के चलते यह सब घरों में कैद रहने को मजबूर हैं, जिन घरों में ये लोग साफ-सफाई और खाना बनाने का काम करके कुछ पैसे कमाते थे. उन लोगों ने कोरोना के खतरे के कारण इनके लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए हैं.

सफाईकर्मी परेशान
देश के विकास में अहम रोल निभाने वाले सफाईकर्मियों की हालत लॉकडाउन में काफी खराब है. राजाजीपुरम इलाके की झुग्गी में रहने वाले छोटू धानुक ने बताया कि वे नगर निगम में सफाईकर्मी हैं. नाले की सफाई का काम करते हैं और प्रतिदिन 300 रुपये की दिहाड़ी लेते हैं, लेकिन इस समय कोई काम न होने से घर में रहने को मजबूर हैं. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में एक दिन झाड़ू लगाने का काम मिला था. इसके बाद कोई काम नहीं मिला.

झोपड़ी में तेजी से महामारी फैलने का खतरा
झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों की तादाद बहुत ज्यादा होती है. अगर ऐसे इलाकों में कोरोना महामारी फैल गई तो तमाम लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं. इसलिए ऐसी झुग्गी-झोपड़ियों में कोरोना वायरस को फैलने से बचाने के लिए समय-समय पर सफाई के साथ सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना भी बहुत आवश्यक है तो वहीं प्रशासन को इन झोपड़ियों में सैनिटाइजेशन करने की भी जरूरत है.

सफाई व्यवस्था से परेशान निवासी
झोपड़ी में रहने वाले शिवम और राम प्रसाद ने बताया कि कोरोना वायरस से बचाव के लिए सरकार ने किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं की है. इससे वे काफी नाराज हैं. उनका कहना है कि अगर कोरोना लोगों को चपेट में ले रहा है तो उन्हें रोजगार से ज्यादा मौत का डर सता रहा है. शिवम ने बताया कि 150 से 200 लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं और यहां शौचालय की व्यवस्था नहीं है. पीने के पानी का कोई इंतजाम नहीं है. इस मुश्किल की घड़ी में भी राजनेता राजनीति कर रहे हैं.

बेरोजगारी की समस्या
झोपड़ी में रहने वाले जगन्नाथ साहू का कहना है कि वे रिक्शा चलाते थे. प्रतिदिन 400 से 500 रुपये कमा लेते थे. इसमें से 300 रुपये रिक्शा मालिक को देते थे और बाकी के पैसों से घर चलाते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण रिक्शा चलना बंद हो गया. वे घर पर बैठने को मजबूर हैं. उनके सामने परिवार को चलाने की समस्या खड़ी हो गई है.

इसे भी पढ़ें- लखनऊ: छत से गिरकर विवाहिता की मौत, परिजनों ने लगाया हत्या का आरोप

लखनऊ: कोरोना वायरस ने झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों का जीवन बद से बदतर बना दिया है. लॉकडाउन के चलते इन लोगों को न ही कहीं काम मिल रहा है और न ही खाने के लिए सामान. झोपड़ी में रहने वाली सफीकुननिशा हों या राजेश भारती, गीता हों या फिर जगन्नाथ साहू. ये सभी लोग कहीं न कहीं कोई न कोई काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते अब ये घर में रहने को मजबूर हैं. न ही इनके पास कोई काम बचा है और न ही गुजर बसर के लिए पैसे. जिंदगी में इनके पहले से ही परेशानियों का सैलाब था तो अब कोरोना ने इस सैलाब को जलजले में बदल दिया है. जब से इन्हें पता चला है कि एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ी वाली बस्ती मुंबई के धारावी में रहने वाले लोग कोरोना वायरस की चपेट में आ रहे हैं तब से ये लोग हर वक्त डर के साये में जीने को मजबूर हैं.

जानकारी देते झुग्गी निवासी.

'ईटीवी भारत' की जांच-पड़ताल
ईटीवी भारत ने ऐसी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के बीच जाकर उनका हाल-चाल जाना. झुग्गी में रहने वाली सफीकुन्निशा बताती हैं कि वे घरों में खाना-पकाने और साफ-सफाई का काम करती थीं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से अब उन्हें कोई बुला नहीं रहा है. अब तक जो पैसे जोड़ कर रखे थे बस उससे ही घर चल रहा है. उन्होंने बताया कि बस्ती में एक बार सैनिटाइजेशन हुआ था. तबसे अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है.

झुग्गियों में कैद रहने को मजबूर
लखनऊ के राजाजीपुरम इलाके में बांस-टाट की झुग्गी-झोपड़ी वाली गरीबों की बस्ती में तकरीबन डेढ़ सौ परिवार रहता है. यहां रहने वाला कोई रिक्शा चलाता है तो कोई सफाईकर्मी है. कोई स्कूल में चपरासी है तो कोई दूसरों के घर में साफ-सफाई और खाना बनाने का काम करता है. लॉकडाउन के चलते यह सब घरों में कैद रहने को मजबूर हैं, जिन घरों में ये लोग साफ-सफाई और खाना बनाने का काम करके कुछ पैसे कमाते थे. उन लोगों ने कोरोना के खतरे के कारण इनके लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए हैं.

सफाईकर्मी परेशान
देश के विकास में अहम रोल निभाने वाले सफाईकर्मियों की हालत लॉकडाउन में काफी खराब है. राजाजीपुरम इलाके की झुग्गी में रहने वाले छोटू धानुक ने बताया कि वे नगर निगम में सफाईकर्मी हैं. नाले की सफाई का काम करते हैं और प्रतिदिन 300 रुपये की दिहाड़ी लेते हैं, लेकिन इस समय कोई काम न होने से घर में रहने को मजबूर हैं. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में एक दिन झाड़ू लगाने का काम मिला था. इसके बाद कोई काम नहीं मिला.

झोपड़ी में तेजी से महामारी फैलने का खतरा
झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों की तादाद बहुत ज्यादा होती है. अगर ऐसे इलाकों में कोरोना महामारी फैल गई तो तमाम लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं. इसलिए ऐसी झुग्गी-झोपड़ियों में कोरोना वायरस को फैलने से बचाने के लिए समय-समय पर सफाई के साथ सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना भी बहुत आवश्यक है तो वहीं प्रशासन को इन झोपड़ियों में सैनिटाइजेशन करने की भी जरूरत है.

सफाई व्यवस्था से परेशान निवासी
झोपड़ी में रहने वाले शिवम और राम प्रसाद ने बताया कि कोरोना वायरस से बचाव के लिए सरकार ने किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं की है. इससे वे काफी नाराज हैं. उनका कहना है कि अगर कोरोना लोगों को चपेट में ले रहा है तो उन्हें रोजगार से ज्यादा मौत का डर सता रहा है. शिवम ने बताया कि 150 से 200 लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं और यहां शौचालय की व्यवस्था नहीं है. पीने के पानी का कोई इंतजाम नहीं है. इस मुश्किल की घड़ी में भी राजनेता राजनीति कर रहे हैं.

बेरोजगारी की समस्या
झोपड़ी में रहने वाले जगन्नाथ साहू का कहना है कि वे रिक्शा चलाते थे. प्रतिदिन 400 से 500 रुपये कमा लेते थे. इसमें से 300 रुपये रिक्शा मालिक को देते थे और बाकी के पैसों से घर चलाते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण रिक्शा चलना बंद हो गया. वे घर पर बैठने को मजबूर हैं. उनके सामने परिवार को चलाने की समस्या खड़ी हो गई है.

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