लखनऊ: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव का बिगुल बजे 15 दिन बीत चुके हैं. 20 दिन बाद पहले चरण के लिए मतदान भी शुरू हो जाएगा. ऐसे में समाजवादी पार्टी, भाजपा व कांग्रेस समेत अन्य छोटे दलों के पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं की भीड़ जमा है. इस बीच उत्तर प्रदेश में चार बार सत्ता में रह चुकी बसपा कार्यालय के बाहर सन्नाटा पसरा हुआ है.
माल एवेन्यू, लखनऊ स्थित बहुजन समाज पार्टी के कार्यालय के बाहर पसरे इस सन्नाटे को देख यहां पर मौजूद चाय का ठेला लगाने वाले सुहास मोदी कहते हैं कि दूसरे पार्टी दफ्तर के बाहर मेला सा लगा रहता है लेकिन यहां इक्का-दुक्का ही कोई नेता आ जाता है तब अहसास होता है कि यहां भी कोई राजनीतिक पार्टी का कार्यालय भी है.
यहां पर मौजूद बसपा के झंडे बेचने वाले अमित बताते हैं कि जब से चुनाव की घोषणा हुई है तब से सिर्फ बहन जी के जन्मदिन पर ही भीड़ दिखी थी. उसमें भी सबसे ज्यादा मीडिया वाले ही थे, बाकी नेता तो विरले ही दिखते है.
बसपा कार्यालय के बाहर सन्नाटे के पीछे का कारण पार्टी सुप्रीमो मायावती मायावती की उदासीनता है. इसी उदासीनता से वोटर भ्रमित व नेता चिंतित हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही मायावती न ही उतना मुखर रही है और न ही चुनाव में जोश में दिखी है.
एक तरफ जिलों में जहां मायावती का बेस वोट बैंक अब अपना दूसरा रास्ता तय करने की तलाश में है. वही उनके नेता बसपा से या तो नाता तोड़ चुके हैं या फिर टिकट लेने में उतनी दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.
चुनाव आयोग द्वारा फिजिकल रैलियों पर रोक लगाने से पहले सपा, कांग्रेस, भाजपा के शीर्ष नेताओं ने लगभग हर जिलों में रैली कर पार्टी के लिए माहौल बनाया था लेकिन बसपा सुप्रीमो ने प्रचार की कमान खुद न संभाल महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा एंड फैमिली को दे दी. यही नहीं 2022 के चुनाव में मायावती ने इतनी दूरी बना ली है कि न खुद चुनाव लड़ने पर विचार कर रहीं हैं और न ही उनके सिपसलाहर सतीश चंद्र मिश्रा. ऐसे में पार्टी के नेता और वोटर दोनों ही यह समझ चुके हैं कि चुनाव में बसपा लड़ाई में है ही नहीं.
बसपा कार्यालय और पार्टी में पसरे सन्नाटे पर पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया कहते हैं कि बसपा अपना चुनाव अनुशासित ढंग और दमखम से लड़ती है. हमारी पार्टी बाबा साहेब के विचारों पर चलती है और दिखावे में भरोसा नहीं करती. उन्होंने कहा यह जरूरी नहीं कि पार्टी कार्यालय में भी दिखे, चुनाव जिलों में हो रहा है तो कार्यकर्ता गांव और अपनी विधानसभा सीटों पर है न कि अन्य दलों की तरह उनके कार्यालय के बाहर हो. हमारे कार्यकर्ता ऐसे नही है कि सपा कार्यकर्ताओं की तरह टिकट ना मिले तो कार्यालय के बाहर आत्महत्या करने का प्रयास करें.
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वहीं, वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र त्रिपाठी कहते है कि पार्टी कार्यालयों के बाहर टिकट मांगने वालों की भीड़ होती है लेकिन बसपा में टिकट देने का काम सेक्टर प्रभारी और कॉर्डिनेटर करते हैं. साथ ही सर्वविदित है कि इस पार्टी में टिकट कैसे मिलता है. जब टिकट मिलना नही है तो भीड़ क्यों होगी. वैसे भी कार्यकर्ता ये मान चुके है कि बसपा रसातल में जा चुकी है और इस चुनाव में सपा बीजेपी की लड़ाई है.
क्या हाल रहा पिछले चुनावों में
बसपा ने 2007 से 2012 तक आख़िरी बार सरकार बनाई थी. इस चुनाव में बसपा को 206 सीटें मिली थी. ये पहली बार था जब अकेले दम पर यूपी में सरकार बनाई थी. 2012 के चुनाव में पार्टी 206 से खिसक कर 80 पर आ गयी थी. यही नही 2017 के विधान सभा चुनाव में 80 सीट से 19 सीटों पर बसपा सिमट गई थी. वोट प्रतिशत की बात करें तो 2007 में बसपा को 40.43 फीसदी वोट मिले थे जो 2012 में घटकर महज 26 प्रतिशत पर रह गया. 2017 के विधान सभा चुनाव में ये वोट प्रतिशत 22.2 रह गया था. 2014 के लोक सभा में लगभग वोट 20 फीसदी गिर गया. इस चुनाव में बसपा शून्य तक पहुंच गई थी. आज हालात ये है कि 19 विधायकों पर पार्टी के साथ चुनाव आते-आते 3 विधायक साथ में खड़े दिख रहे हैं.
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