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जानें वृंदावन में क्यों होती है कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक

उत्तर प्रदेश के वृंदावन में कुंभ के ध्वजारोहण की पूर्व संध्या पर सोमवार को ब्रह्मर्षि देवराह बाबा घाट पर यमुना पूजन का आयोजन किया गया. जहां सभी अखाड़े, खालसा एवं संप्रदायों के संतों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य मोक्षदायिनी यमुना मइया का पूजन कर कुंभ मेला को सफलता पूर्वक संपन्न कराने की कामना की गई.

वृंदावन में कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक
वृंदावन में कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक
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Published : Feb 16, 2021, 1:04 PM IST

मथुराः धर्म नगरी वृंदावन में वैष्णव कुम्भ मेला बैठक का विधिवत शुभारंभ 16 फरवरी को बसन्त पंचमी से ध्वजारोहण के साथ हुआ. इससे पूर्व जहां शासन-प्रशासन द्वारा मेला में आने वाले साधु संतों और भक्तों की सुविधा के लिए तैयारियां पूर्ण कर ली गई हैं. वहीं मेला क्षेत्र में सभी अखाड़े, खालसा व संप्रदायों के शिविर सजकर तैयार हो गए हैं. यहां संतों का प्रवास भी शुरू हो गया है.

वहीं ध्वजारोहण की पूर्व संध्या पर सोमवार को ब्रह्मर्षि देवराह बाबा घाट पर यमुना पूजन का आयोजन किया गया. जहां सभी अखाड़े, खालसा एवं संप्रदायों के संतों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य मोक्षदायिनी यमुना मइया का पूजन कर कुंभ मेला को सफलता पूर्वक संपन्न कराने की कामना की गई.

महंत रामस्वरूप दास ब्रह्मचारी ने जानकारी दी
जानकारी देते हुए महंत रामस्वरूप दास ब्रह्मचारी ने बताया कि वैदिक सनातन हिंदू संस्कृति में कुंभ को अनादि कहा जाता है. अनादि इसलिए कहा जाता है दैत्य और देवताओं के बीच अमृत कलश को लेकर के संघर्ष हुआ था, युद्ध हुआ था और उस कलश को गरुड़ जी बचाने के लिए लेकर भागे थे. क्योंकि दैत्य उसका अपरहण कर रहे थे.

जानें वृंदावन में क्यों होती है कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक
जब गरुड़ जी कलश को लेकर चले तो उनके पीछे कलश को छीनने के लिए दैत्य लगे हुए थे. गणेश जी सबसे पहले समुद्र मंथन की जगह से जो वृंदावन के कदम पेड़ का वर्णन आता है उसी में आ करके उन्होंने विश्राम लिया था, रुके थे. वहां से जब यह उड़ते-उड़ते थक गए थे, लेकिन दैत्य पीछे पड़े हुए थे. यहां से जब गरुड़ जी आगे बढ़े तो वह हरिद्वार पहुंचे उज्जैन पहुंचे और आगे विभिन्न जगहों पर पहुंचे. जगह-जगह अमृत की बूंदें झलकी वहां कुंभ हुआ.

वह सर्वप्रथम आकर के वृंदावन की इस पावन भूमि में पावन कदम के पेड़ पर बैठे थे और उसी समय से कुंभ की परंपरा प्रारंभ हुई. यह किसी व्यक्ति विशेष या ऋषि विशेष के द्वारा ना चलाया जा कर के यह सभी के सामूहिक निर्णय था. उसी क्रम में सबसे पहले वृंदावन बैठक मैं निर्णय लिया गया कि हम लोग आगे उनकी परंपरा को कैसे आगे बढ़ाएंगे. उसका सर्वप्रथम निर्णय यहां हुआ यह प्रथम भूमि है उनकी इसलिए इसको हम कह सकते हैं कुंभ से पूर्व बैठक.
यह व्यक्ति विशेष के द्वारा नहीं है. उस समय के जो तात्कालिक महापुरुष साधु संत थे उनका सामूहिक निर्णय था, देवताओं का सामूहिक निर्णय था और सब ने गरुड़ जी कलश को सुरक्षित रख पाए उसकी खुशी में उसकी प्रसन्नता में यहां सब ने बैठकर सामूहिक निर्णय लिया और जब से उनकी परंपरा प्रारंभ हुई.

कुंभ मेला शुभारंभ की पूर्व संध्या पर हुआ यमुना पूजन
मंगलवार से कुंभ मेले का धर्म नगरी वृंदावन में आयोजन होने जा रहा है, जिसको लेकर शासन प्रशासन द्वारा तैयारियां पूर्ण कर ली गई है. इसी क्रम में सोमवार को ब्रह्मर्षि देवराह बाबा घाट पर यमुना पूजन का आयोजन किया गया. जहां सभी अखाड़े, खालसा एवं संप्रदायों के संतों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य मोक्षदायिनी यमुना मइया का पूजन कर कुंभ मेला को सफलता पूर्वक संपन्न कराने की कामना की गई.

मथुराः धर्म नगरी वृंदावन में वैष्णव कुम्भ मेला बैठक का विधिवत शुभारंभ 16 फरवरी को बसन्त पंचमी से ध्वजारोहण के साथ हुआ. इससे पूर्व जहां शासन-प्रशासन द्वारा मेला में आने वाले साधु संतों और भक्तों की सुविधा के लिए तैयारियां पूर्ण कर ली गई हैं. वहीं मेला क्षेत्र में सभी अखाड़े, खालसा व संप्रदायों के शिविर सजकर तैयार हो गए हैं. यहां संतों का प्रवास भी शुरू हो गया है.

वहीं ध्वजारोहण की पूर्व संध्या पर सोमवार को ब्रह्मर्षि देवराह बाबा घाट पर यमुना पूजन का आयोजन किया गया. जहां सभी अखाड़े, खालसा एवं संप्रदायों के संतों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य मोक्षदायिनी यमुना मइया का पूजन कर कुंभ मेला को सफलता पूर्वक संपन्न कराने की कामना की गई.

महंत रामस्वरूप दास ब्रह्मचारी ने जानकारी दी
जानकारी देते हुए महंत रामस्वरूप दास ब्रह्मचारी ने बताया कि वैदिक सनातन हिंदू संस्कृति में कुंभ को अनादि कहा जाता है. अनादि इसलिए कहा जाता है दैत्य और देवताओं के बीच अमृत कलश को लेकर के संघर्ष हुआ था, युद्ध हुआ था और उस कलश को गरुड़ जी बचाने के लिए लेकर भागे थे. क्योंकि दैत्य उसका अपरहण कर रहे थे.

जानें वृंदावन में क्यों होती है कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक
जब गरुड़ जी कलश को लेकर चले तो उनके पीछे कलश को छीनने के लिए दैत्य लगे हुए थे. गणेश जी सबसे पहले समुद्र मंथन की जगह से जो वृंदावन के कदम पेड़ का वर्णन आता है उसी में आ करके उन्होंने विश्राम लिया था, रुके थे. वहां से जब यह उड़ते-उड़ते थक गए थे, लेकिन दैत्य पीछे पड़े हुए थे. यहां से जब गरुड़ जी आगे बढ़े तो वह हरिद्वार पहुंचे उज्जैन पहुंचे और आगे विभिन्न जगहों पर पहुंचे. जगह-जगह अमृत की बूंदें झलकी वहां कुंभ हुआ.

वह सर्वप्रथम आकर के वृंदावन की इस पावन भूमि में पावन कदम के पेड़ पर बैठे थे और उसी समय से कुंभ की परंपरा प्रारंभ हुई. यह किसी व्यक्ति विशेष या ऋषि विशेष के द्वारा ना चलाया जा कर के यह सभी के सामूहिक निर्णय था. उसी क्रम में सबसे पहले वृंदावन बैठक मैं निर्णय लिया गया कि हम लोग आगे उनकी परंपरा को कैसे आगे बढ़ाएंगे. उसका सर्वप्रथम निर्णय यहां हुआ यह प्रथम भूमि है उनकी इसलिए इसको हम कह सकते हैं कुंभ से पूर्व बैठक.
यह व्यक्ति विशेष के द्वारा नहीं है. उस समय के जो तात्कालिक महापुरुष साधु संत थे उनका सामूहिक निर्णय था, देवताओं का सामूहिक निर्णय था और सब ने गरुड़ जी कलश को सुरक्षित रख पाए उसकी खुशी में उसकी प्रसन्नता में यहां सब ने बैठकर सामूहिक निर्णय लिया और जब से उनकी परंपरा प्रारंभ हुई.

कुंभ मेला शुभारंभ की पूर्व संध्या पर हुआ यमुना पूजन
मंगलवार से कुंभ मेले का धर्म नगरी वृंदावन में आयोजन होने जा रहा है, जिसको लेकर शासन प्रशासन द्वारा तैयारियां पूर्ण कर ली गई है. इसी क्रम में सोमवार को ब्रह्मर्षि देवराह बाबा घाट पर यमुना पूजन का आयोजन किया गया. जहां सभी अखाड़े, खालसा एवं संप्रदायों के संतों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य मोक्षदायिनी यमुना मइया का पूजन कर कुंभ मेला को सफलता पूर्वक संपन्न कराने की कामना की गई.

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