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भाजपा की ओर कदम बढ़ाने में जल्दबाजी नहीं करेंगे शिवपाल - सपा की न्यूज

प्रगतिशील समाजवादी के मुखिया और पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव का भाजपा में शामिल होने को लेकर मंथन जारी है. हालांकि शिवपाल फिलहाल किसी हड़बड़ी में नहीं हैं. भाजपा की ओर कदम बढ़ाने में वह कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहते हैं.

भाजपा की ओर कदम बढ़ाने में जल्दबाजी नहीं करेंगे शिवपाल
भाजपा की ओर कदम बढ़ाने में जल्दबाजी नहीं करेंगे शिवपाल
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Published : Apr 16, 2022, 5:13 PM IST

लखनऊ : प्रगतिशील समाजवादी के मुखिया और पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव का भाजपा में शामिल होने को लेकर मंथन जारी है. मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की सरकारों में मिनी मुख्यमंत्री कहे जाने वाले शिवपाल सिंह यादव इस पशोपेश में हैं कि यदि वह भाजपा में जाते हैं, तो उन्हें क्या पद और जिम्मेदारी मिलेगी. यह तय है कि भाजपा में उन्हें पहले के कद और रसूख के बराबर सम्मान नहीं मिल पाएगा और शिवपाल को कहीं न कहीं समझौता करना ही होगा. इसके अलावा परिवार का भी दबाव उन पर रहेगा. हालांकि वह अखिलेश से मेल के लिए जो कर सकते थे, वह कर चुके हैं. अखिलेश यादव ही इस रिश्ते को सहेजने में नाकाम रहे हैं. ऐसे में यह तो तय है कि शिवपाल यादव देर-सबेर भाजपा में जाएंगे, लेकिन वह कोई हड़बड़ी नहीं करेंगे. वहीं भाजपा भी किसी जल्दी में नहीं है.


विधान सभा चुनावों में भाजपा की बंपर जीत और सपा की करारी हार ने कई समीकरण बदल दिए हैं. चुनाव के ठीक पहले अपने भतीजे अखिलेश यादव से समझौता कर शिवपाल यादव ने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के सामने हुए समझौते में अखिलेश ने शिवपाल को पचास टिकट देने का वादा किया था, किंतु चुनाव आते-आते उन्हें सिर्फ अपने टिकट पर ही समझौता करना पड़ा. यह टिकट भी उन्हें सपा के सिंबल पर दिया गया. अपमान का घूंट पीकर भी शिवपाल ने भतीजे का साथ दिया पर अखिलेश ने उनसे चुनाव प्रचार भी नहीं कराया.

रही-सही कसर चुनाव परिणाम आने के बाद पूरी हो गई. जब सपा विधायक दल की बैठक में अखिलेश ने चाचा शिवपाल सिंह यादव को ही नहीं बुलाया. इस चोट से तिलमिलाए शिवपाल सिंह यादव को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने सपा से किनारा करने का निश्चय कर लिया. बाद में अखिलेश यादव द्वारा सहयोगी दलों की बैठक बुलाए जाने पर शिवपाल शामिल नहीं हुए. इससे साफ हो गया कि प्रसपा अध्यक्ष और अपमान सहने के लिए कतई तैयार नहीं हैं. उन्होंने इसे लेकर सार्वजनिक रूप से बयान देने से भी परहेज नहीं किया.

इसके बाद शुरू हुआ उन बातों का सिलसिला जो इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि शिवपाल यादव देर-सबेर भाजपा का दामन जरूर थामेंगे. उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और बाद में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह से भी मिलने पहुंचे. इसके कुछ दिन बाद ही उन्होंने सोशल मीडिया पर योगी-मोदी को फॉलो किया. उन्होंने राम दरबार का फोटो भी ट्वीट किया और कुछ दिनों बाद अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन करने भी पहुंचे.

दो दिन पहले ही उन्होंने समान आचार संहिता के समर्थन में बयान दिया. सपा में रहते और उससे अलग होने के बाद भी शिवपाल ने ऐसे बयान कभी नहीं दिए थे. उन्होंने सोशल मीडिया पर कवर पेज बदलकर लिखा 'हैं तैयार हम'. यह सभी बातें संकेत देती हैं कि शिवपाल भाजपा की ओर कदम बढ़ा चुके हैं और अभी पर्दे के पीछे भाजपा से उनकी बातचीत जारी रहेगी, पर पार्टी में शामिल होने में अभी वक्त है.


शिवपाल यदि भाजपा में शामिल होते हैं, तो उन्हें जसवंतनगर सीट से अपनी विधायकी छोड़नी होगी. फिर वह चाहें भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ें या प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के टिकट पर. हालांकि भाजपा चाहेगी कि वह अपनी पार्टी का विलय करके ही आएं ताकि भविष्य में वापसी का रास्ता बंद हो जाए. यह बात और है कि शिवपाल कितने पर राजी होते हैं. चुनाव के पहले की बात और थी. उस समय शिवपाल की ज्यादा बातें भाजपा मान सकती थी, किंतु आज की स्थिति में शिवपाल इस स्थिति में नहीं हैं कि ज्यादा मांगें रख सकें. वहीं, प्रसपा नेता अपने बेटे का भविष्य भी सुरक्षित कराना चाहते हैं. भाजपा कहीं न कहीं उनके बेटे आदित्य को भी समायोजित कर ही लेगी.

इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर संजय गुप्ता कहते हैं कि चुनाव के बाद राजनीतिक दलों में आना-जाना अवसरवादी प्रवृत्ति दिखाता है. अब शिवपाल को दिखाई दे रहा है कि सपा सत्ता से दूर है, ऐसे में भाजपा में जाने से उन्हें लाभ मिल सकता है. शिवपाल को चुनाव से पहले ही यह निर्णय करना चाहिए था. हालांकि शिवपाल यादव समझ चुके हैं कि अब सपा में उनका भविष्य नहीं है. उन्हें वहां सम्मान मिला न सीटें. पार्टी की भी हार हो गई.

अखिलेश ने साफ कर दिया है कि अब शिवपाल के लिए सपा में जगह नहीं है. वैसे भी रामगोपाल यादव के रहते सपा में शिवपाल की दाल गलने वाली नहीं है. वहीं भाजपा में तत्काल आने पर उन्हें कोई विशेष सम्मान नहीं मिलेगा. हालांकि यह गनीमत है कि शिवपाल ने चुनाव में भाजपा पर कोई नकारात्मक बयानबाजी नहीं की. हालांकि शिवपाल अभी जल्दी में नहीं हैं और अभी चार-छह महीना प्रतीक्षा कर सकते हैं. अभी शिवपाल को भाजपा की ओर से भी बहुत मनोबल बढ़ाने वाले सिग्नल नहीं मिल रहे हैं. प्रोफेसर संजय गुप्ता कहते हैं कि भाजपा चाहती है कि यादव मतदाता भी उससे जुड़ें. इसलिए जैसे-जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियां तेज होंगी, भाजपा शिवपाल से करीबी बनाएगी. अंदर खाने में दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है. शिवपाल के आने से मुलायम सिंह यादव के प्रभाव क्षेत्र वाला यादव मतदाता भाजपा से जुड़ सकता है. हालांकि अभी इसमें वक्त जरूर लगेगा.
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लखनऊ : प्रगतिशील समाजवादी के मुखिया और पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव का भाजपा में शामिल होने को लेकर मंथन जारी है. मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की सरकारों में मिनी मुख्यमंत्री कहे जाने वाले शिवपाल सिंह यादव इस पशोपेश में हैं कि यदि वह भाजपा में जाते हैं, तो उन्हें क्या पद और जिम्मेदारी मिलेगी. यह तय है कि भाजपा में उन्हें पहले के कद और रसूख के बराबर सम्मान नहीं मिल पाएगा और शिवपाल को कहीं न कहीं समझौता करना ही होगा. इसके अलावा परिवार का भी दबाव उन पर रहेगा. हालांकि वह अखिलेश से मेल के लिए जो कर सकते थे, वह कर चुके हैं. अखिलेश यादव ही इस रिश्ते को सहेजने में नाकाम रहे हैं. ऐसे में यह तो तय है कि शिवपाल यादव देर-सबेर भाजपा में जाएंगे, लेकिन वह कोई हड़बड़ी नहीं करेंगे. वहीं भाजपा भी किसी जल्दी में नहीं है.


विधान सभा चुनावों में भाजपा की बंपर जीत और सपा की करारी हार ने कई समीकरण बदल दिए हैं. चुनाव के ठीक पहले अपने भतीजे अखिलेश यादव से समझौता कर शिवपाल यादव ने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के सामने हुए समझौते में अखिलेश ने शिवपाल को पचास टिकट देने का वादा किया था, किंतु चुनाव आते-आते उन्हें सिर्फ अपने टिकट पर ही समझौता करना पड़ा. यह टिकट भी उन्हें सपा के सिंबल पर दिया गया. अपमान का घूंट पीकर भी शिवपाल ने भतीजे का साथ दिया पर अखिलेश ने उनसे चुनाव प्रचार भी नहीं कराया.

रही-सही कसर चुनाव परिणाम आने के बाद पूरी हो गई. जब सपा विधायक दल की बैठक में अखिलेश ने चाचा शिवपाल सिंह यादव को ही नहीं बुलाया. इस चोट से तिलमिलाए शिवपाल सिंह यादव को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने सपा से किनारा करने का निश्चय कर लिया. बाद में अखिलेश यादव द्वारा सहयोगी दलों की बैठक बुलाए जाने पर शिवपाल शामिल नहीं हुए. इससे साफ हो गया कि प्रसपा अध्यक्ष और अपमान सहने के लिए कतई तैयार नहीं हैं. उन्होंने इसे लेकर सार्वजनिक रूप से बयान देने से भी परहेज नहीं किया.

इसके बाद शुरू हुआ उन बातों का सिलसिला जो इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि शिवपाल यादव देर-सबेर भाजपा का दामन जरूर थामेंगे. उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और बाद में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह से भी मिलने पहुंचे. इसके कुछ दिन बाद ही उन्होंने सोशल मीडिया पर योगी-मोदी को फॉलो किया. उन्होंने राम दरबार का फोटो भी ट्वीट किया और कुछ दिनों बाद अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन करने भी पहुंचे.

दो दिन पहले ही उन्होंने समान आचार संहिता के समर्थन में बयान दिया. सपा में रहते और उससे अलग होने के बाद भी शिवपाल ने ऐसे बयान कभी नहीं दिए थे. उन्होंने सोशल मीडिया पर कवर पेज बदलकर लिखा 'हैं तैयार हम'. यह सभी बातें संकेत देती हैं कि शिवपाल भाजपा की ओर कदम बढ़ा चुके हैं और अभी पर्दे के पीछे भाजपा से उनकी बातचीत जारी रहेगी, पर पार्टी में शामिल होने में अभी वक्त है.


शिवपाल यदि भाजपा में शामिल होते हैं, तो उन्हें जसवंतनगर सीट से अपनी विधायकी छोड़नी होगी. फिर वह चाहें भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ें या प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के टिकट पर. हालांकि भाजपा चाहेगी कि वह अपनी पार्टी का विलय करके ही आएं ताकि भविष्य में वापसी का रास्ता बंद हो जाए. यह बात और है कि शिवपाल कितने पर राजी होते हैं. चुनाव के पहले की बात और थी. उस समय शिवपाल की ज्यादा बातें भाजपा मान सकती थी, किंतु आज की स्थिति में शिवपाल इस स्थिति में नहीं हैं कि ज्यादा मांगें रख सकें. वहीं, प्रसपा नेता अपने बेटे का भविष्य भी सुरक्षित कराना चाहते हैं. भाजपा कहीं न कहीं उनके बेटे आदित्य को भी समायोजित कर ही लेगी.

इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर संजय गुप्ता कहते हैं कि चुनाव के बाद राजनीतिक दलों में आना-जाना अवसरवादी प्रवृत्ति दिखाता है. अब शिवपाल को दिखाई दे रहा है कि सपा सत्ता से दूर है, ऐसे में भाजपा में जाने से उन्हें लाभ मिल सकता है. शिवपाल को चुनाव से पहले ही यह निर्णय करना चाहिए था. हालांकि शिवपाल यादव समझ चुके हैं कि अब सपा में उनका भविष्य नहीं है. उन्हें वहां सम्मान मिला न सीटें. पार्टी की भी हार हो गई.

अखिलेश ने साफ कर दिया है कि अब शिवपाल के लिए सपा में जगह नहीं है. वैसे भी रामगोपाल यादव के रहते सपा में शिवपाल की दाल गलने वाली नहीं है. वहीं भाजपा में तत्काल आने पर उन्हें कोई विशेष सम्मान नहीं मिलेगा. हालांकि यह गनीमत है कि शिवपाल ने चुनाव में भाजपा पर कोई नकारात्मक बयानबाजी नहीं की. हालांकि शिवपाल अभी जल्दी में नहीं हैं और अभी चार-छह महीना प्रतीक्षा कर सकते हैं. अभी शिवपाल को भाजपा की ओर से भी बहुत मनोबल बढ़ाने वाले सिग्नल नहीं मिल रहे हैं. प्रोफेसर संजय गुप्ता कहते हैं कि भाजपा चाहती है कि यादव मतदाता भी उससे जुड़ें. इसलिए जैसे-जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियां तेज होंगी, भाजपा शिवपाल से करीबी बनाएगी. अंदर खाने में दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है. शिवपाल के आने से मुलायम सिंह यादव के प्रभाव क्षेत्र वाला यादव मतदाता भाजपा से जुड़ सकता है. हालांकि अभी इसमें वक्त जरूर लगेगा.
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