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लखनऊ: प्राचीन बंदी माता मंदिर में शतचंडी महायज्ञ की हुई पूर्ण आहुति - यूपी की खबरें

राजधानी के डालीगंज में स्थित बंदी माता मंदिर के पूर्व अध्यक्ष महंत कपिलेश्वर पुरी महाराज के पुण्य स्मृति में एवं कोरोना वायरस से मुक्ति के लिए श्री शतचंडी महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है. ये कार्यक्रम पिछले एक सप्ताह से चल रहा था. सोमवार को शतचंडी महायज्ञ की पूरे विधि विधान से पूर्ण आहुति की गई.

Lucknow news
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Published : Aug 3, 2020, 3:52 PM IST

लखनऊ: राजधानी के बंदी माता मंदिर में पूर्व अध्यक्ष महंत कपिलेश्वर पुरी महाराज के पुण्य स्मृति में हर वर्ष सतचंडी महायज्ञ कराया जाता है. इस महायज्ञ का सोमवार को पूरे विधि-विधान से समापन किया गया. वहीं समापन के बाद सभी महंतों के लिए भंडारा का आयोजन किया गया. मंदिर की महंत पूजा पुरी ने बताया कि श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष व श्री बंदी माता मंदिर समिति के अध्यक्ष देवेंद्र पुरी के सानिध्य में सुबह 9 बजे से महायज्ञ शुरू किया गया. उन्होंने यह भी बताया कि हर वर्ष यह महायज्ञ किया जाता है, लेकिन इस बार कोरोना वायरस की वजह से सिर्फ परंपरा निभाई गई.

भंडारे का किया गया आयोजन
देवेन्द्र पुरी ने बताया कि सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए शतचंडी महायज्ञ को सकुशल सभी विधि विधान से संपन्न किया गया. वही पूर्व महंत कपिलेश्वर पुरी के समाधि पर पूजा अर्चना की गई. सभी महंतों के लिए भंडारा का आयोजन किया गया. बंदी माता मंदिर से जुड़ा इतिहास त्रेता युग में जब मां सीता ऋषि वाल्मीकि के आश्रम को जा रही थीं, उस समय पर गोमती नदी के तट पर इसी जगह पर प्रथम रात्रि मां सीता ने विश्राम किया था. इस महायज्ञ में अग्नि मंथन कर शुद्ध अग्नि को प्रज्वलित किया जाता है. इसमें किसी तरह के ज्वलनशील पदार्थों का प्रयोग नहीं होता है.

अयोध्या से भी बुलाए गए थे पुजारी
अंतरराष्ट्रीय महंत देवेंद्र पुरी महाराज ने बताया कि शतचंडी महायज्ञ में अयोध्या से करीब 6 प्रकांड विद्वान आचार्य आए हुए हैं. उन्होंने अग्नि मंथन द्वारा अग्नि प्रज्वलित कर शतचंडी महायज्ञ की शुरुआत की. इसके अलावा कई अन्य जिलों से महंत भी आए हुए हैं, जिन्होंने शतचंडी महायज्ञ में भाग लिया. बंदी माता मंदिर से जुड़े इतिहास को महंत देवेंद्र पुरी ने बताया कि जब सीता का वनवास हुआ था. उस दौरान रावण सीता को हरण कर ले गया था. जब सीता अपने राज्य को वापस लौटीं तो कई आरोप लगने लगे कि रावण ने कहीं सीता को छुआ न हो.

सीता माता से जुड़ा है मठ का इतिहास
महंत देवेंद्र पुरी ने बताया कि राम के दरबार में जब एक धोबी की पत्नी गई तो उसी दौरान धोबी ने सीता माता पर आरोप लगा दिए. इसको देखते हुए राम ने तुरंत सीता माता को आदेश दिए आप वन में चली जाएं. तब सीता भगवान राम के आदेश का पालन करते हुए वाल्मीकि आश्रम की ओर चल दीं, जो बिठूर में स्थित है. उन्होंने बताया कि यह सच है कि जब माता सीता बिठूर आश्रम को जा रही थीं, उस दौरान सरयू नदी पार कर गोमती नदी के तट पर विश्राम किया था. उस समय भी बहुत ही पुराना मंदिर हुआ करता था. यहां माता सीता का दूसरा रूप बंदी माता मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

लखनऊ: राजधानी के बंदी माता मंदिर में पूर्व अध्यक्ष महंत कपिलेश्वर पुरी महाराज के पुण्य स्मृति में हर वर्ष सतचंडी महायज्ञ कराया जाता है. इस महायज्ञ का सोमवार को पूरे विधि-विधान से समापन किया गया. वहीं समापन के बाद सभी महंतों के लिए भंडारा का आयोजन किया गया. मंदिर की महंत पूजा पुरी ने बताया कि श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष व श्री बंदी माता मंदिर समिति के अध्यक्ष देवेंद्र पुरी के सानिध्य में सुबह 9 बजे से महायज्ञ शुरू किया गया. उन्होंने यह भी बताया कि हर वर्ष यह महायज्ञ किया जाता है, लेकिन इस बार कोरोना वायरस की वजह से सिर्फ परंपरा निभाई गई.

भंडारे का किया गया आयोजन
देवेन्द्र पुरी ने बताया कि सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए शतचंडी महायज्ञ को सकुशल सभी विधि विधान से संपन्न किया गया. वही पूर्व महंत कपिलेश्वर पुरी के समाधि पर पूजा अर्चना की गई. सभी महंतों के लिए भंडारा का आयोजन किया गया. बंदी माता मंदिर से जुड़ा इतिहास त्रेता युग में जब मां सीता ऋषि वाल्मीकि के आश्रम को जा रही थीं, उस समय पर गोमती नदी के तट पर इसी जगह पर प्रथम रात्रि मां सीता ने विश्राम किया था. इस महायज्ञ में अग्नि मंथन कर शुद्ध अग्नि को प्रज्वलित किया जाता है. इसमें किसी तरह के ज्वलनशील पदार्थों का प्रयोग नहीं होता है.

अयोध्या से भी बुलाए गए थे पुजारी
अंतरराष्ट्रीय महंत देवेंद्र पुरी महाराज ने बताया कि शतचंडी महायज्ञ में अयोध्या से करीब 6 प्रकांड विद्वान आचार्य आए हुए हैं. उन्होंने अग्नि मंथन द्वारा अग्नि प्रज्वलित कर शतचंडी महायज्ञ की शुरुआत की. इसके अलावा कई अन्य जिलों से महंत भी आए हुए हैं, जिन्होंने शतचंडी महायज्ञ में भाग लिया. बंदी माता मंदिर से जुड़े इतिहास को महंत देवेंद्र पुरी ने बताया कि जब सीता का वनवास हुआ था. उस दौरान रावण सीता को हरण कर ले गया था. जब सीता अपने राज्य को वापस लौटीं तो कई आरोप लगने लगे कि रावण ने कहीं सीता को छुआ न हो.

सीता माता से जुड़ा है मठ का इतिहास
महंत देवेंद्र पुरी ने बताया कि राम के दरबार में जब एक धोबी की पत्नी गई तो उसी दौरान धोबी ने सीता माता पर आरोप लगा दिए. इसको देखते हुए राम ने तुरंत सीता माता को आदेश दिए आप वन में चली जाएं. तब सीता भगवान राम के आदेश का पालन करते हुए वाल्मीकि आश्रम की ओर चल दीं, जो बिठूर में स्थित है. उन्होंने बताया कि यह सच है कि जब माता सीता बिठूर आश्रम को जा रही थीं, उस दौरान सरयू नदी पार कर गोमती नदी के तट पर विश्राम किया था. उस समय भी बहुत ही पुराना मंदिर हुआ करता था. यहां माता सीता का दूसरा रूप बंदी माता मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

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