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बिल्किस बानो मामले पर गुजरात सरकार का जवाब निंदनीय: शाहनवाज आलम

बिल्किस बानो मामले में दोषियों की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार द्वारा दाखिल जवाब को अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम ने निंदनीय और कानून का मजाक बताया है.

शाहनवाज आलम
शाहनवाज आलम
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Published : Oct 18, 2022, 11:03 PM IST

लखनऊ: गुजरात सरकार ने बिल्किस बानो मामले में दोषियों की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है. गुजरात सरकार ने अपने जबाव में दोषियों का 14 साल की सजा पूरा कर लेने और उनके अच्छे व्यवहार को आधार बताया है. इसको अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम ने निंदनीय और न्याय के सिद्धांत का मजाक बनाने वाला बताया है.

शाहनवाज आलम ने कहा कि केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय बलात्कार के दोषियों को रिहा न करने की गाइडलाइन अपनी वेबसाइट पर लगाता है. लेकिन, भाजपा की ही राज्य सरकार उसकी न सिर्फ अनदेखी करती है. बल्कि सुप्रीम कोर्ट में भी इसके खिलाफ जाकर बलात्कारियों के पक्ष में तर्क देती है.
उन्होंने कहा कि भाजपा और संघ से जुड़े लोगों को मुसलमानों और दलितों का बलात्कार और हत्या अच्छा लगता है. इसीलिए वो ऐसे अपराधों में शामिल लोगों का सार्वजनिक स्वागत करते हैं. लेकिन, किसी राजनीतिक दल के लिए बलात्कार और हत्या जैसे अपराध के स्वीकार्य होने का मतलब यह नहीं है कि इसे न्यायालय द्वारा भी स्वीकार्य आचरण मान लिया जाए. उन्होंने उम्मीद जताई की सुप्रीम कोर्ट गुजरात सरकार के इन तर्कों को खारिज कर बिल्किस के दोषियों को दोबारा जेल भेजकर लोगों का न्यायालय पर भरोसे को दोबार बनाए.

शाहनवाज आलम ने कहा कि यह नहीं भूलना चाहिए कि 2008 में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट की जज यूडी साल्वी ने अपने फैसले में बिल्किस के बयानों को निर्भिकता भरा बताया था. जिससे अपराधियों की सजा सुनिश्चित हो पाई थी. वहीं, यह भी संज्ञान में होना चाहिए कि गुजरात जनसंहार के विभिन्न मामलों में बिल्किस मामले को सुप्रीम कोर्ट ने 9 क्रूरतम मामलों में से एक माना था और अपनी निगरानी में एसआईटी का गठन करवा कर इसकी जांच करवाई थी. अगर ऐसे जघन्य अपराधी छोड़ दिये जाते हैं, तो न्यायिक संघर्ष की यह पूरी प्रक्रिया व्यर्थ हो जाएगी.

शाहनवाज आलम ने कहा कि गुजरात सरकार का अपने जवाब में यह कहना कि पीआईएल के माध्यम से आपराधिक मामले में कोई भी तीसरा पक्ष हस्तक्षेप नहीं कर सकता एक विधि विरुद्ध तर्क है. इसके जरिये वो न्याय की मांग करने वाले लोगों और संगठनों को धमकाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि किसी एक व्यक्ति के साथ अन्याय पूरे समाज के साथ अन्याय होता है. इसीलिए समाज के प्रतिनिधि के बतौर राज्य स्वंय पीड़ित की तरफ से पैरवी करता है. इसलिए ऐसे किसी भी मामले में जिसका समाज पर प्रभाव पड़ता हो उसमें कोई भी तीसरा पक्ष हस्तक्षेप कर सकता है.

यह भी पढे़ं: न्यायालय ने बिल्किस बानो से कहा, संबंधित प्राधिकारियों से संपर्क करें

लखनऊ: गुजरात सरकार ने बिल्किस बानो मामले में दोषियों की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है. गुजरात सरकार ने अपने जबाव में दोषियों का 14 साल की सजा पूरा कर लेने और उनके अच्छे व्यवहार को आधार बताया है. इसको अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम ने निंदनीय और न्याय के सिद्धांत का मजाक बनाने वाला बताया है.

शाहनवाज आलम ने कहा कि केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय बलात्कार के दोषियों को रिहा न करने की गाइडलाइन अपनी वेबसाइट पर लगाता है. लेकिन, भाजपा की ही राज्य सरकार उसकी न सिर्फ अनदेखी करती है. बल्कि सुप्रीम कोर्ट में भी इसके खिलाफ जाकर बलात्कारियों के पक्ष में तर्क देती है.
उन्होंने कहा कि भाजपा और संघ से जुड़े लोगों को मुसलमानों और दलितों का बलात्कार और हत्या अच्छा लगता है. इसीलिए वो ऐसे अपराधों में शामिल लोगों का सार्वजनिक स्वागत करते हैं. लेकिन, किसी राजनीतिक दल के लिए बलात्कार और हत्या जैसे अपराध के स्वीकार्य होने का मतलब यह नहीं है कि इसे न्यायालय द्वारा भी स्वीकार्य आचरण मान लिया जाए. उन्होंने उम्मीद जताई की सुप्रीम कोर्ट गुजरात सरकार के इन तर्कों को खारिज कर बिल्किस के दोषियों को दोबारा जेल भेजकर लोगों का न्यायालय पर भरोसे को दोबार बनाए.

शाहनवाज आलम ने कहा कि यह नहीं भूलना चाहिए कि 2008 में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट की जज यूडी साल्वी ने अपने फैसले में बिल्किस के बयानों को निर्भिकता भरा बताया था. जिससे अपराधियों की सजा सुनिश्चित हो पाई थी. वहीं, यह भी संज्ञान में होना चाहिए कि गुजरात जनसंहार के विभिन्न मामलों में बिल्किस मामले को सुप्रीम कोर्ट ने 9 क्रूरतम मामलों में से एक माना था और अपनी निगरानी में एसआईटी का गठन करवा कर इसकी जांच करवाई थी. अगर ऐसे जघन्य अपराधी छोड़ दिये जाते हैं, तो न्यायिक संघर्ष की यह पूरी प्रक्रिया व्यर्थ हो जाएगी.

शाहनवाज आलम ने कहा कि गुजरात सरकार का अपने जवाब में यह कहना कि पीआईएल के माध्यम से आपराधिक मामले में कोई भी तीसरा पक्ष हस्तक्षेप नहीं कर सकता एक विधि विरुद्ध तर्क है. इसके जरिये वो न्याय की मांग करने वाले लोगों और संगठनों को धमकाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि किसी एक व्यक्ति के साथ अन्याय पूरे समाज के साथ अन्याय होता है. इसीलिए समाज के प्रतिनिधि के बतौर राज्य स्वंय पीड़ित की तरफ से पैरवी करता है. इसलिए ऐसे किसी भी मामले में जिसका समाज पर प्रभाव पड़ता हो उसमें कोई भी तीसरा पक्ष हस्तक्षेप कर सकता है.

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