लखनऊः राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने राष्ट्रमंडल संसदीय संघ भारत प्रक्षेत्र सम्मेलन में बोलते हुए कहा कि देश में सबसे बड़ी दिक्कत कानून बनाने में देरी की है. वर्ष 1991 में उदारीकरण आया. सैकड़ों की संख्या में वाहन थे जो लाखों की संख्या में हो गए, लेकिन उनके नियमन का कोई कानून नहीं बन पाया. 20 वर्ष से भी ज्यादा का समय लग गया ट्रैफिक कंट्रोल कानून लाने में. इसी तरीके से मिलावट पर कानून बनाने में 30 वर्ष से ज्यादा का समय लग गया है.
गिरती अर्थव्यवस्था पर जताई चिंता
उपसभापति हरिवंश ने कहा कि हमारी विचारधारा राइट हो या लेफ्ट हो. अर्थव्यवस्था के दौर में हैसियत अच्छी है तो पहचान है. अन्यथा हम हाशिए पर पूरी दुनिया में रहेंगे. चीन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जब चीन में 1977-1978 में उदारीकरण शुरू हुआ तो भारत की विकास दर ज्यादा अच्छी थी, लेकिन हम उनके पीछे हो गए. दुनिया में जो डेवलपमेंट का मानक है वह बदल रहा है.
सोशल टेंशन को विकास से किया जा सकता है दूर
उन्होंने कहा कि भारत में सामाजिक तनाव की वजह से निवेश चीन की ओर चला गया है. हमें सोशल टेंशन को दूर करने के लिए रास्ते तलाशने होंगे और इसका एकमात्र रास्ता है विकास. जब आर्थिक विकास होगा तो सारी चीजें अपने आप पटरी पर आ जाएगी. उन्होंने बजट में लीकेज को लेकर अपनी चिंता जताई और कहा कि 70 वर्ष के बाद भी हम बजट के लीकेज को नहीं रोक पाए हैं. डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना इस दिशा में कारगर कदम है.
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विश्व बैंक का बढ़ गया है ऋण
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने चंद्रशेखर सरकार का हवाला देते हुए कहा कि उस सरकार में सोना गिरती अर्थव्यवस्था की वजह से विश्व बैंक में गिरवी रखना पड़ा था. तब हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. फर्जी कंपनियां जिनके नाम से लोन है वह भी चुनौती हैं. उन्होंने कहा कि कोलकाता का एक लाल बाजार थाना है, जिसके पते पर 250 साल कंपनियां पंजीकृत थी. अब उनको बंद किया गया है. जो पिछले दिनों केंद्र सरकार ने ही की थी. हरिवंश ने कहा कि 2008 तक बैंकों का ऋण 16 लाख करोड़ का था और आठ वर्ष में बढ़कर यह 64 लाख करोड़ का हो गया.