लखनऊ: 18 दिसंबर को देशभर में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (Minority Rights Day) मनाया गया. ऐसे में यूपी की राजधानी लखनऊ में भी कई कार्यक्रम आयोजित किए गए. जिसके चलते माइनॉरिटी डेवलपमेंट फोरम की ओर से लखनऊ के मुमताज डिग्री कॉलेज में एक कांफ्रेंस का भी आयोजन किया गया. जिसमें भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर चर्चा हुई और अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने की मांग उठी.
दरअसल, 18 दिसंबर को इंटरनेशनल माइनॉरिटी राइट्स डे यानी अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (Minority Rights Day) मनाया जाता है. इसकी शुरुआत 18 दिसंबर 1992 को संयुक्त राष्ट्र ने की थी. जिसके तहत भारत में भी यह दिवस मनाया जाता है. अल्पसंख्यकों में कुल 6 समुदाय आते हैं जिसमें मुसलमान, सिख, बौद्ध, ईसाई, पारसी और जैन धर्म के मानने वाले शामिल है. इन सबमें सबसे बड़ी तादाद मुसलमानों की मानी जाती है. क्योंकि अल्पसंख्यकों में सबसे बड़ा तबका मुसलमानों का है और यूपी में भी आबादी के लिहाज से मुसलमानों की संख्या अधिक है, लेकिन मौजूदा दौर हो या गुजरा हुआ समय, हमेशा से सियासत के तहत अल्पसंख्यकों पर राजनीतिक पार्टियां अपने वोट की खातिर हिमायत तो जताती हैं, लेकिन इनके अधिकारों को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाती हैं. यहां तक कि अल्पसंख्यकों में शामिल मुसलमानों की हालत दलितों से बदतर मानी जाती है.
इन्हीं बातों को लेकर आज एक अहम गोष्टी का आयोजन हुआ. जिसमें कई मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े लोग बड़ी तादात में शामिल हुए. इस दौरान दारुल उलूम फरंगी महल के प्रवक्ता और मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना सुफियान निजामी ने मांग करते हुए कहा कि अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा पर सरकारों को अमल करते हुए जो योजनाएं अल्पसंख्यकों के हितों में लाई जाती है. उनके बजट का पूरा हिस्सा अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए खर्च करना चाहिए. क्योंकि संविधान के तहत देश में सभी को बराबरी का दर्जा प्राप्त है. ऐसे में किसी के साथ भेदभाव वाला रवैया असहनीय और गैरकानूनी है.
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