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'एक मुट्ठी अन्न, एक रोटी रोज' मुहिम से भूख को पराजित करने वाले फरिश्ते सरबजीत सिंह बॉबी से खास बातचीत - आईजीएमसी में फ्री खाना

सरबजीत सिंह बॉबी ने अक्टूबर 2014 में महज चाय-बिस्किट और खिचड़ी से इस सेवा मिशन की शुरुआत की थी. शिमला स्थित रीजनल कैंसर अस्पताल में बड़ी संख्या में प्रदेश भर से मरीज आते हैं. ग्रामीण और दुर्गम इलाकों से इलाज के लिए आए मरीजों के परिजन रोज शिमला में भोजन का खर्च वहन नहीं कर सकते.

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Published : Sep 9, 2019, 3:04 PM IST

शिमला: एक मुट्ठी अन्न, एक रोटी रोज, इस छोटे से मंत्र ने गरीबी और बीमारी से उपजे दुख और घर से बाहर दो रोटी की चिंता को बुरी तरह से पराजित कर दिया है. सेवाभाव की जीवंत मूर्ति सरबजीत के इस मंत्र ने भूख के दानव को धूल चटा दी है.

हिमाचल प्रदेश के एकमात्र रीजनल कैंसर अस्पताल में साधनहीन मरीजों का इलाज तो निशुल्क होता है, लेकिन उनके परिजनों के सामने शिमला में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल हो जाता है. कैंसर मरीज के साथ यदि एक भी परिजन अस्पताल में हो तो एक दिन में रोटी और चाय का खर्च ही 200 रुपये पड़ता है. ऐसे में सरबजीत सिंह बॉबी की संस्था किसी मसीहा की तरह सामने आई.

गरीबी और बीमारी से उपजे दुख को पराजित करने में महारत हासिल
कैंसर अस्पताल में मरीजों के परिजनों को निशुल्क चाय, बिस्किट और दो वक्त के भोजन का इंतजाम किया गया. सरबजीत मरीजों के परिजनों को चपाती उपलब्ध करवाना चाहते थे, लेकिन समय और जगह की दिक्कत सामने आ रही थी. ऐसे में सरबजीत ने शिमला के एक मशहूर निजी स्कूल की मॉर्निंग असेंबली में बच्चों से आग्रह किया कि वे घर से अपने लंच के साथ एक रोटी उनकी संस्था को भी दान दें. बस फिर क्या था 1,800 छात्राओं वाले स्कूल के बच्चों ने सप्ताह में दो बार अपने लंच के साथ एकाधिक रोटी अतिरिक्त लानी शुरू कर दी.

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लंगर में रोटियां देती स्कूली छात्रा

सरबजीत सिंह बॉबी की मुहिम धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी और देखते ही देखते 15 हजार बच्चों तक फैल गई. अब हर हफ्ते 20 हजार रोटियां स्कूली बच्चे घर से लाते हैं. सरबजीत ने इन रोटियों को गर्म और ताजा रखने के लिए आधुनिक मशीन खरीद ली. अब सप्ताह में दो बार मरीजों के परिजनों को गर्म-नर्म रोटियां भी परोसी जाती हैं. शहर के कई स्कूली छात्रों के साथ कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी चपातियां दान करती हैं. ऐसे में दाल, चावल, कढ़ी आदि के साथ रोटियां भी मिल रही हैं. सरबजीत सिंह की संस्था न केवल शिमला के कैंसर अस्पताल बल्कि प्रदेश के एकमात्र राज्य स्तरीय कमला नेहरू मातृ व शिशु कल्याण अस्तपाल में भी निशुल्क लंगर चलाते हैं.

देखें वीडियो

दो साल से पूरा कर रहे हैं भूखे पेट भरने का मिशन
सरबजीत सिंह बॉबी ने अक्टूबर 2014 में महज चाय-बिस्किट और खिचड़ी से इस सेवा मिशन की शुरुआत की थी. शिमला स्थित रीजनल कैंसर अस्पताल में बड़ी संख्या में प्रदेश भर से मरीज आते हैं. ग्रामीण और दुर्गम इलाकों से इलाज के लिए आए मरीजों के परिजन रोज-रोज शिमला में भोजन का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं. अधिकांश मरीज गरीब परिवारों से होते हैं. सरबजीत सिंह से गरीब लोगों का यह दुख देखा नहीं गया. वे रक्तदान और अन्य सामाजिक कार्यों के तौर पर पहले से ही समाजसेवा से जुड़े थे. उन्होंने इन गरीबों की भूख मिटाने के लिए कोशिश शुरू की.

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लंगर का खाना खाते तीमारदार

एक मुट्ठी अन्न मुहिम से सभी स्कूलों को जोड़ना है मकसद
सरबजीत का मकसद शिमला के सभी स्कूलों को इस मिशन से जोड़ना है. यही नहीं सोशल मीडिया के जरिए सरबजीत की मुहिम देश भर में पहुंची हैं. उनके सेवाकार्यों से प्रभावित पंजाब और हरियाणा से आए सैलानी कई दफा कैंसर अस्तपाल आकर मदद करते हैं. कोई-कोई तो भारी मात्रा में चावल-दाल दे जाते हैं. लंगर के लिए बासमती चावल और पैकेटबंद साफ-सुथरी दालें ही स्वीकार की जाती हैं.

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लंबी लिस्ट है सरबजीत के सेवाकार्यों की
सरबजीत सिंह की संस्था साल में तीस से अधिक रक्तदान शिविर आयोजित करती है. इसके अलावा वे एक डेड बॉडी वैन भी संचालित करते हैं. यदि किसी की शिमला के किसी अस्पताल में मौत हो जाती है और परिजनों के पास पार्थिव शरीर को घर तक ले जाने का साधन न हो तो सरबजीत खुद डेड बॉडी वैन चलाकर पार्थिव देह को घर तक पहुंचाते हैं. मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से लेकर अन्य राजनेता भी सरबजीत के सेवाकार्यों के मुरीद हैं.

सरबजीत सिंह गुरु साहिबों की शिक्षा को सर्वोपरि मानते हैं. यही वजह है कि मानव सेवा के क्षेत्र में ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं को सर्वोपरि मानते हुए समाजसेवा कर रहे हैं. जिस तरह ग्रंथ साहिब का उपदेश हर वर्ण के लिए साझा है, उसी तरह सरबजीत सिंह की संस्था का लंगर भी समाज के सभी वर्गों के लिए है. हर शाम को सरबजीत अपने परिजनों के साथ लंगर स्थल पर आते हैं और ईश्वर की प्रार्थना के बाद लंगर बंटना शुरू हो जाता है. पंक्तियों में बैठकर भरपेट भोजन करते लोगों को देखकर ईश्वर भी सरबजीत को आशीष देते प्रतीत होते हैं.

शिमला: एक मुट्ठी अन्न, एक रोटी रोज, इस छोटे से मंत्र ने गरीबी और बीमारी से उपजे दुख और घर से बाहर दो रोटी की चिंता को बुरी तरह से पराजित कर दिया है. सेवाभाव की जीवंत मूर्ति सरबजीत के इस मंत्र ने भूख के दानव को धूल चटा दी है.

हिमाचल प्रदेश के एकमात्र रीजनल कैंसर अस्पताल में साधनहीन मरीजों का इलाज तो निशुल्क होता है, लेकिन उनके परिजनों के सामने शिमला में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल हो जाता है. कैंसर मरीज के साथ यदि एक भी परिजन अस्पताल में हो तो एक दिन में रोटी और चाय का खर्च ही 200 रुपये पड़ता है. ऐसे में सरबजीत सिंह बॉबी की संस्था किसी मसीहा की तरह सामने आई.

गरीबी और बीमारी से उपजे दुख को पराजित करने में महारत हासिल
कैंसर अस्पताल में मरीजों के परिजनों को निशुल्क चाय, बिस्किट और दो वक्त के भोजन का इंतजाम किया गया. सरबजीत मरीजों के परिजनों को चपाती उपलब्ध करवाना चाहते थे, लेकिन समय और जगह की दिक्कत सामने आ रही थी. ऐसे में सरबजीत ने शिमला के एक मशहूर निजी स्कूल की मॉर्निंग असेंबली में बच्चों से आग्रह किया कि वे घर से अपने लंच के साथ एक रोटी उनकी संस्था को भी दान दें. बस फिर क्या था 1,800 छात्राओं वाले स्कूल के बच्चों ने सप्ताह में दो बार अपने लंच के साथ एकाधिक रोटी अतिरिक्त लानी शुरू कर दी.

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लंगर में रोटियां देती स्कूली छात्रा

सरबजीत सिंह बॉबी की मुहिम धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी और देखते ही देखते 15 हजार बच्चों तक फैल गई. अब हर हफ्ते 20 हजार रोटियां स्कूली बच्चे घर से लाते हैं. सरबजीत ने इन रोटियों को गर्म और ताजा रखने के लिए आधुनिक मशीन खरीद ली. अब सप्ताह में दो बार मरीजों के परिजनों को गर्म-नर्म रोटियां भी परोसी जाती हैं. शहर के कई स्कूली छात्रों के साथ कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी चपातियां दान करती हैं. ऐसे में दाल, चावल, कढ़ी आदि के साथ रोटियां भी मिल रही हैं. सरबजीत सिंह की संस्था न केवल शिमला के कैंसर अस्पताल बल्कि प्रदेश के एकमात्र राज्य स्तरीय कमला नेहरू मातृ व शिशु कल्याण अस्तपाल में भी निशुल्क लंगर चलाते हैं.

देखें वीडियो

दो साल से पूरा कर रहे हैं भूखे पेट भरने का मिशन
सरबजीत सिंह बॉबी ने अक्टूबर 2014 में महज चाय-बिस्किट और खिचड़ी से इस सेवा मिशन की शुरुआत की थी. शिमला स्थित रीजनल कैंसर अस्पताल में बड़ी संख्या में प्रदेश भर से मरीज आते हैं. ग्रामीण और दुर्गम इलाकों से इलाज के लिए आए मरीजों के परिजन रोज-रोज शिमला में भोजन का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं. अधिकांश मरीज गरीब परिवारों से होते हैं. सरबजीत सिंह से गरीब लोगों का यह दुख देखा नहीं गया. वे रक्तदान और अन्य सामाजिक कार्यों के तौर पर पहले से ही समाजसेवा से जुड़े थे. उन्होंने इन गरीबों की भूख मिटाने के लिए कोशिश शुरू की.

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लंगर का खाना खाते तीमारदार

एक मुट्ठी अन्न मुहिम से सभी स्कूलों को जोड़ना है मकसद
सरबजीत का मकसद शिमला के सभी स्कूलों को इस मिशन से जोड़ना है. यही नहीं सोशल मीडिया के जरिए सरबजीत की मुहिम देश भर में पहुंची हैं. उनके सेवाकार्यों से प्रभावित पंजाब और हरियाणा से आए सैलानी कई दफा कैंसर अस्तपाल आकर मदद करते हैं. कोई-कोई तो भारी मात्रा में चावल-दाल दे जाते हैं. लंगर के लिए बासमती चावल और पैकेटबंद साफ-सुथरी दालें ही स्वीकार की जाती हैं.

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लंबी लिस्ट है सरबजीत के सेवाकार्यों की
सरबजीत सिंह की संस्था साल में तीस से अधिक रक्तदान शिविर आयोजित करती है. इसके अलावा वे एक डेड बॉडी वैन भी संचालित करते हैं. यदि किसी की शिमला के किसी अस्पताल में मौत हो जाती है और परिजनों के पास पार्थिव शरीर को घर तक ले जाने का साधन न हो तो सरबजीत खुद डेड बॉडी वैन चलाकर पार्थिव देह को घर तक पहुंचाते हैं. मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से लेकर अन्य राजनेता भी सरबजीत के सेवाकार्यों के मुरीद हैं.

सरबजीत सिंह गुरु साहिबों की शिक्षा को सर्वोपरि मानते हैं. यही वजह है कि मानव सेवा के क्षेत्र में ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं को सर्वोपरि मानते हुए समाजसेवा कर रहे हैं. जिस तरह ग्रंथ साहिब का उपदेश हर वर्ण के लिए साझा है, उसी तरह सरबजीत सिंह की संस्था का लंगर भी समाज के सभी वर्गों के लिए है. हर शाम को सरबजीत अपने परिजनों के साथ लंगर स्थल पर आते हैं और ईश्वर की प्रार्थना के बाद लंगर बंटना शुरू हो जाता है. पंक्तियों में बैठकर भरपेट भोजन करते लोगों को देखकर ईश्वर भी सरबजीत को आशीष देते प्रतीत होते हैं.

Intro:एक मुट्ठी अन्न, एक रोटी रोज: सरबजीत के इस मंत्र से हार गई भूख
कैंसर अस्पताल व कमला नेहरू अस्पताल में गरीब मरीजों के परिजनों को रोज
दो वक्त खाना निशुल्क
स्कूल की छात्राएं घर से लाती हैं ताजी रोटियां
रोटियों को गर्म व नर्म रखने के लिए खरीदी मशीन
पंद्रह हजार बच्चे हफ्ते में दो दिन लाते हैं 20 हजार रोटियां
सेंट थॉमस स्कूल के बच्चे लाते हैं एक मुट्ठी अन्न
विभिन्न संस्थाओं से जुड़े लोग दान देते हैं चपातियां
नाश्ते में चाय-बिस्कुट देती है सरबजीत की संस्था ऑलमाइटी ब्लैसिंग्स
रोजाना सैंकड़ों लोगों की भूख मिटाती है संस्था
बासमती चावल व बेहतर क्वालिटी की दालों का होता है इस्तेमाल
भोजन से पहले ईश्वर से की जाती है प्रार्थना
हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, सभी के लिए खुला है लंगर
गरीब मरीज व उनके परिजनों के लिए मसीहा बने सरबजीत
शिमला। एक मुट्ठी अन्न, एक रोटी रोज, इस छोटे से मंत्र ने गरीबी व बीमारी
से उपजे दुख और घर से बाहर दो रोटी की चिंता को बुरी तरह से पराजित कर
दिया है। सेवाभाव की जीवंत मूर्ति सरबजीत के इस मंत्र ने भूख के दानव को
धूल चटा दी है। प्रदेश के एकमात्र रीजनल कैंसर अस्पताल में साधनहीन
मरीजों का इलाज तो निशुल्क होता है, लेकिन उनके परिजनों के सामने शिमला
में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल हो जाता है। कैंसर मरीज के साथ
यदि एक भी परिजन अस्पताल में हो तो एक दिन में रोटी व चाय का खर्च ही दो
सौ रुपए पड़ता है।Body: ऐसे में सरबजीत सिंह बॉबी की संस्था ऑलमाइटी
ब्लैसिंग्स किसी मसीहा की तरह सामने आई। कैंसर अस्पताल में मरीजों के
परिजनों को निशुल्क चाय, बिस्कुट व दो वक्त के भोजन का इंतजाम किया गया।
सरबजीत मरीजों के परिजनों को चपाती उपलब्ध करवाना चाहते थे, लेकिन समय व
स्पेस की दिक्कत सामने आ रही थी। उन्होंने एक उपाय सोचा। सरबजीत शिमला के
स्कूली बच्चों के समक्ष पहुंच गए। शिमला के एक मशहूर निजी स्कूल ताराहाल
की मार्निंग असेंबली में उन्होंने बच्चों से आग्रह किया कि वे घर से अपने
लंच के साथ एक रोटी उनकी संस्था को भी दान दें। बस फिर क्या था, 1800
छात्राओं वाले ताराहाल स्कूल के बच्चों ने सप्ताह में दो बार अपने लंच के
साथ एकाधिक रोटी अतिरिक्त लाना शुरू कर दी। धीरे-धीरे मुहिम आगे बढ़ी तो
पंद्रह हजार बच्चों तक फैल गई। अब हर हफ्ते 20 हजार रोटियां स्कूली बच्चे
घर से लाते हैं। सरबजीत ने इन रोटियों को गर्म व ताजा रखने के लिए आधुनिक
मशीन खरीद ली। अब सप्ताह में दो बार मरीजों के परिजनों को गर्म-नर्म
रोटियां भी परोसी जाती हैं। न केवल ताराहल स्कूल बल्कि अन्य स्कूलों के
बच्चों को भी इस अभियान से जोड़ा गया है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी
चपातियां दान करती हैं। ऐसे में दाल,चावल,कढ़ी आदि के साथ रोटियां भी मिल
रही हैं। सरबजीत सिंह की संस्था न केवल शिमला के कैंसर अस्पताल बल्कि
प्रदेश के एकमात्र राज्य स्तरीय कमला नेहरू मातृ व शिशु कल्याण अस्तपाल
में भी निशुल्क लंगर चलाते हैं। यहां मरीजों के परिजनों को नाश्ते में
चाय,बिस्कुट व लंच-डिनर में दाल-चावल-रोटी दी जाती है। शिमला की जनता भी
सरबजीत की संस्था ऑलमाइटी ब्लैसिंग्स की दिल खोलकर मदद करती है।

दो साल पूरे कर रहा भूखे पेट भरने का मिशन
सरबजीत सिंह बॉबी ने अक्टूबर 2014 में महज चाय-बिस्कुट व खिचड़ी से इस
सेवा मिशन की शुरूआत की थी। शिमला स्थित रीजनल कैंसर अस्पताल में बड़ी
संख्या में प्रदेश भर से मरीज आते हैं। ग्रामीण व दुर्गम इलाकों से इलाज
के लिए आए मरीजों के परिजन रोज-रोज शिमला में भोजन का खर्च वहन नहीं कर
सकते। अधिकांश मरीज गरीब परिवारों से होते हैं। सरबजीत सिंह ने गरीब
लोगों का यह दुख देखा नहीं गया। वे रक्तदान व अन्य सामाजिक कार्यों के
तौर पर पहले से ही समाजसेवा से जुड़े थे। उन्होंने इन गरीबों की भूख
मिटाने के लिए कोशिश शुरू की। आरंभ में नाश्ते में चाय-बिस्कुट व ब्रेड
का इंतजाम किया गया। धीरे-धीरे लोगों ने भी मदद शुरू की। फिर खिचड़ी
बांटी जाने लगी। बाद में लोगों की दिल खोलकर मदद आने से मरीजों के
परिजनों को दाल-चावल परोसे जाने लगे। कुछ बुजुर्ग लोगों ने चपातियों की
जरूरत बताई। इसे पूरा करने के लिए सरबजीत ने अनूठा तरीका सोचा। उन्होंने
स्कूली बच्चों को इस सेवा मिशन से जोड़ा। अब स्कूली बच्चे घर से रोटियां
लाते हैं और सप्ताह में दो बार लोगों को रोटियां भी मिलती हैं।

एक मुट्ठी अन्न लाते हैं सेंट थॉमस स्कूल के बच्चे
शिमला के सेंट थॉमस स्कूल के बच्चे हफ्ते में एक दफा एक मुट्ठी अन्न लाते
हैं। कभी मूंग की दाल तो कभी चावल और कभी चीनी। इस तरह सैंकड़ों बच्चों
की एक मुट्ठी अन्न की मुहिम से लंगर का भंडार भरा रहता है। सरबजीत का
मकसद शिमला के सभी 54 स्कूलों को इस मिशन से जोडऩा है। यही नहीं, सोशल
मीडिया के जरिए सरबजीत की मुहिम देश भर में पहुंची है। उनके सेवाकार्यों
से प्रभावित पंजाब व हरियाणा से आए सैलानी कई दफा कैंसर अस्तपाल आकर मदद
करते हैं। कोई-कोई तो भारी मात्रा में चावल, दाल दे जाते हैं। यहां बता
दें कि सरबजीत सिंह ने लोगों से आग्रह किया है कि बेहतर क्वालिटी के चावल
व दालें ही भेंट की जाए। बासमती चावल व पैकेटबंद साफ-सुथरी दालें ही
स्वीकार की जाती हैं।

लंबी लिस्ट है सरबजीत के सेवाकार्यों की
सरबजीत सिंह की संस्था साल में तीस से अधिक रक्तदान शिविर आयोजित करती
है। इसके अलावा वे एक डैड बॉडी वैन भी संचालित करते हैं। यदि किसी अभागे
की शिमला के किसी अस्पताल में मौत हो जाती है और परिजनों के पास पार्थिव
शरीर को घर तक ले जाने का साधन न हो तो सरबजीत खुद डैड बॉडी वैन चलाकर
पार्थिव देह को घर तक पहुंचाते हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से लेकर
अन्य राजनेता भी सरबजीत के सेवाकार्यों के मुरीद हैं।

गुरू साहिबों की शिक्षा को मानते हैं सर्वोपरि
सरबजीत सिंह मानव सेवा के क्षेत्र में ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं को
सर्वोपरि मानते हुए समाजसेवा कर रहे हैं। जिस तरह ग्रंथ साहिब का उपदेश
हर वर्ण के लिए सांझा है, उसी तरह सरबजीत सिंह की संस्था का लंगर भी समाज
के सभी वर्गों के लिए है। ईद के दिन मुस्लिम समुदाय के मरीजों के परिजन
लंगर में भोजन के लिए पहुंचे तो सरबजीत के सेवाभाव से बेहद खुश हुए।
कैंसर अस्पताल की कैंटीन में मुस्कुराते हुए सेवा करने वाले सेवादारों को
देखा जा सकता है। हर शाम को सरबजीत अपने परिजनों के साथ लंगर स्थल पर आते
हैं और ईश्वर की प्रार्थना के बाद लंगर बंटना शुरू हो जाता है। पंक्तियों
में बैठकर भरपेट भोजन करते लोगों को देखकर ईश्वर भी सरबजीत को आशीष देते
प्रतीत होते हैं।Conclusion:
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