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लखनऊ: कैंसर पीड़ित के परिजनों को रोजगार देने का काम कर रहीं 'सपना उपाध्याय'

लखनऊ में रहने वाली सपना उपाध्याय कैंसर पीड़ित बच्चों के परिजनों को रोजगार देने का काम कर रहीं हैं. सपना ईश्वर चाइल्ड वेलफेयर फाउंडेशन नामक एनजीओ के जरिए सिलाई करना, क्राफ्ट और कॉस्मेटिक्स ज्वेलरी से जुड़ी चीजें बनाना सिखाती हैं.

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Published : Mar 8, 2019, 6:04 PM IST

सपना उपाध्याय

लखनऊ: कैंसर का नाम जुबान पर आते ही लोग सहम जाते हैं, क्योंकि एक तो इतनी खतरनाक बीमारी और ऊपर से इसका महंगा इलाज. अगर घर में किसी बच्चे को कैंसर हो तो परेशानियां और बढ़ जाती हैं. ऐसे में इन पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए सपना उपाध्याय मसीहा बनकर उभरी हैं. दरअसल सपना कैंसर पीड़ित बच्चों के परिवारों की मदद करने और उन्हें रोजगार देने का काम कर रहीं हैं.

सपना उपाध्याय कैंसर पीड़ित बच्चों के परिजनों को रोजगार देने का काम कर रहीं हैं.

सपना उपाध्याय ने कैंसर पीड़ित बच्चों की मदद करने के लिए 2004 में मुहिम शुरू की थी. इस मुहिम को धरातल पर उतारने के लिए 2005 में उन्होंने ईश्वर चाइल्ड वेलफेयर फाउंडेशन नाम की एक एनजीओ भी बनाई. इसकी मदद से वह आर्थिक रूप से कमजोर कैंसर पीड़ित बच्चों के परिवारों के रोजगार देने का काम करती हैं. इसके अलावा वह किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में प्रतिदिन राशन, फल, दवाई और भोजन वितरण करती हैं.

सपना का कहना है कि कैंसर का इलाज करवाना अब उतना मुश्किल नहीं रहा है जितना कि लोग सोचते हैं, लेकिन फिर भी इलाज के बाद कैंसर पीड़ित परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो जाती है. ऐसे में यदि उन परिवारों में किसी एक व्यक्ति को भी रोजगार दिलाया जाए तो यह उनको आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में सहायक होगा. इस क्रम में उन परिवारों की महिलाओं को जोड़कर सपना उन्हें सिलाई से जुड़ा काम, क्राफ्ट और कॉस्मेटिक्स, आभूषण से जुड़ी चीजें बनाना सिखाती हैं.

बता दें कि क्राफ्ट में आपके घर की साज-सज्जा के सामान से लेकर इस्तेमाल करने वाली चीजें तक शामिल होती हैं और यह चीजें आपके घर में पड़े खराब समान से बनाई जाती हैं. इस तरह सपना उपाध्याय कैंसर पीड़ित परिवारों के लिए मानसिक और आर्थिक रूप से मदद कर रही हैं.

लखनऊ: कैंसर का नाम जुबान पर आते ही लोग सहम जाते हैं, क्योंकि एक तो इतनी खतरनाक बीमारी और ऊपर से इसका महंगा इलाज. अगर घर में किसी बच्चे को कैंसर हो तो परेशानियां और बढ़ जाती हैं. ऐसे में इन पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए सपना उपाध्याय मसीहा बनकर उभरी हैं. दरअसल सपना कैंसर पीड़ित बच्चों के परिवारों की मदद करने और उन्हें रोजगार देने का काम कर रहीं हैं.

सपना उपाध्याय कैंसर पीड़ित बच्चों के परिजनों को रोजगार देने का काम कर रहीं हैं.

सपना उपाध्याय ने कैंसर पीड़ित बच्चों की मदद करने के लिए 2004 में मुहिम शुरू की थी. इस मुहिम को धरातल पर उतारने के लिए 2005 में उन्होंने ईश्वर चाइल्ड वेलफेयर फाउंडेशन नाम की एक एनजीओ भी बनाई. इसकी मदद से वह आर्थिक रूप से कमजोर कैंसर पीड़ित बच्चों के परिवारों के रोजगार देने का काम करती हैं. इसके अलावा वह किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में प्रतिदिन राशन, फल, दवाई और भोजन वितरण करती हैं.

सपना का कहना है कि कैंसर का इलाज करवाना अब उतना मुश्किल नहीं रहा है जितना कि लोग सोचते हैं, लेकिन फिर भी इलाज के बाद कैंसर पीड़ित परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो जाती है. ऐसे में यदि उन परिवारों में किसी एक व्यक्ति को भी रोजगार दिलाया जाए तो यह उनको आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में सहायक होगा. इस क्रम में उन परिवारों की महिलाओं को जोड़कर सपना उन्हें सिलाई से जुड़ा काम, क्राफ्ट और कॉस्मेटिक्स, आभूषण से जुड़ी चीजें बनाना सिखाती हैं.

बता दें कि क्राफ्ट में आपके घर की साज-सज्जा के सामान से लेकर इस्तेमाल करने वाली चीजें तक शामिल होती हैं और यह चीजें आपके घर में पड़े खराब समान से बनाई जाती हैं. इस तरह सपना उपाध्याय कैंसर पीड़ित परिवारों के लिए मानसिक और आर्थिक रूप से मदद कर रही हैं.

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लखनऊ। अक्सर कैंसर का नाम जुबान पर आते हैं लोग सोच में पड़ जाते हैं और अगर यह पता चल जाए कि किसी को कैंसर है तो उसका इलाज का खर्चा सोच पाना भी मुश्किल हो जाता है। मुश्किल का सबब तब दोगुना हो जाता है जब घर में किसी बच्चे को कैंसर हो क्योंकि उसमें मानसिक स्थिति के साथ साथ आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल होने लगती है। ऐसे में कैंसर पीड़ित बच्चों के परिवारों की मदद करने और उन्हें रोजगार का एक जरिया दिलाने के लिए सपना उपाध्याय नाम की महिला पिछले कई वर्षों से प्रयास कर रही हैं।


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सपना उपाध्याय ने कैंसर पीड़ित बच्चों की मदद करने के लिए 2004 में मुहिम शुरू की थी और इस मुहिम को मूर्त रूप देने के लिए 2005 में उन्होंने ईश्वर चाइल्ड वेलफेयर फाउंडेशन नाम की एक एनजीओ भी बनाई इसकी मदद से वह आर्थिक रूप से कमजोर कैंसर पीड़ित बच्चों के परिवारों के कई तरह से मदद करती हैं। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक ऑंकोलॉजी और हेमेटोलॉजी विभाग में वह हफ्ते के हर दिन पर अलग-अलग कार्यक्रम किया करती हैं। इन कार्यक्रमों के तहत राशन वितरण, फल वितरण, दवाई वितरण और भोजन देने की व्यवस्था आदि शामिल होते हैं।

इसके अलावा बच्चों के कैंसर की स्थिति में वह उन परिवारों से मिलती हैं जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है । वह कहती हैं कि कैंसर का इलाज करवाना अब उतना मुश्किल नहीं रहा है जितना कि पहले लोग सोचते थे, लेकिन हां, इलाज के बाद कैंसर पीड़ित मरीज के परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब होती चली जाती है, क्योंकि इलाज में काफी खर्च हो जाता है और उसके बाद खाने तक के लाले पड़ जाते हैं। ऐसे में हमने सोचा कि यदि उन परिवारों में से एक व्यक्ति को भी रोजगार दिलाया जाए तो यह उनको आर्थिक रूप से मजबूत बनने में कुछ सहायता तो कर ही सकता है। ऐसे में हमने उन परिवारों की महिलाओं को जोड़ना जरूरी समझा क्योंकि महिला एक परिवार की रीढ़ होती है। वह जानती है कि परिवार को संभालना कितना मुश्किल लेकिन जरूरी होता है।

सपना कैंसर पीड़ित बच्चों की मां को सिलाई से जुड़ा काम, क्राफ्ट और कॉस्मेटिक्स ज्वेलरी से जुड़ी चीजें बनाना सिखाती हैं। खास बात यह है कि क्राफ्ट में आपके घर की साज-सज्जा के सामान से लेकर इस्तेमाल करने वाले चीजें तक शामिल होते हैं और यह चीजें आपके घर में पड़े खराब समान से बनाई जाती हैं। कैंसर पीड़ित परिवारों की मांए भी खुद सामने से आकर इस मुहिम का हिस्सा बनती हैं ताकि वह अपने परिवार को भी मदद कर सकें और खुद भी आत्मनिर्भर बन सके।


Conclusion:बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट का यह तरीका न केवल कैंसर पीड़ित परिवारों को आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करता है बल्कि साथ ही पर्यावरण को भी प्रदूषण से बचाने में काफी हद तक कारगर साबित हो सकता है।

बाइट- सपना उपाध्याय

रामांशी मिश्रा
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