लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election) के लिए अखिलेश और चाचा शिवपाल (Shivpal Yadav) में सियासी गठबंधन की सुगबुगाहट के बीच दोनों का शक्ति प्रदर्शन भी शुरू हो गया है. आगामी 12 अक्टूबर को समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) जहां कानपुर से 'विजय रथ यात्रा' निकालने जा रहे हैं, तो प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के अध्यक्ष शिवपाल यादव भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा से अपनी 'सामाजिक परिवर्तन रथ' यात्रा शुरू करने जा रहे हैं.
राजनीति के जानकारों की मानें तो अखिलेश यादव इस यात्रा के बहाने कानपुर और मध्य यूपी की जनता का सियासी मिजाज भांपने की कोशिश करेंगे, तो शिवपाल यदुवंशियों के साथ केंद्र सरकार के कृषि कानून से नाराज पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करेंगे. रही बात दोनों ही राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन की तो शिवपाल यादव ने गेंद अखिलेश के पाले में डालते हुए कह दिया है कि आखिरी फैसला उन्हीं को लेना है. वहीं, अखिलेश यादव ने सोमवार को अपने पिता समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Sing Yadav) के पैर छूकर आशीर्वाद लिया.
ज्ञात हो कि वर्ष 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पूर्व पारिवारिक कलह ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को जन्म दिया था, जिसके मुखिया शिवपाल यादव हैं. हालांकि, इसकी भारी सियासी कीमत दोनों ही दलों को चुकानी पड़ी और अप्रत्याशित जीत के साथ भाजपा ने योगी आदित्यानाथ (Yogi Adityanath) के नेतृत्व में सरकार बनाई. जिस तरह से चाचा-भतीजे के बीच इस बार भी दूरी बनी हुई है, ऐसे में शायद ही कोई बड़ा फायदा मिल पाए.
शिवपाल यादव की सामाजिक परिवर्तन रथ यात्रा 7 चरणों में प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों निकलेगी. प्रसपा प्रमुख शिवपाल यादव कहते हैं कि हम समाजवादी विचारधारा के लोगों को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के साथ एकजुट होने का आह्वान करेंगे. साथ ही बीजेपी सरकार के खिलाफ अलग मोर्चा बनाकर चुनाव मैदान में उतरने को लेकर अपनी ताकत का एहसास कराएंगे. क्योंकि, भाजपा को हराने के लिए सभी दलों का एक मंच पर आना जरूरी है.
दूसरी तरफ राजनीति के जानकार कहते हैं कि शिवपाल सिंह यादव की मजबूती विधानसभा चुनाव में अखिलेश को ही नुससान पहुंचाएगी. क्योंकि, दोनों दलों के समर्थक और वोटर पहले एक ही हुआ करते थे. ऐसे में इन दोनों लोगों को एक साथ चुनाव मैदान में जाना चाहिए जिसका फायदा समाजवादी पार्टी को मिल सकेगा.
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक और सपा को करीब से जानने वाले प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि दोनों पार्टियों की जो अलग-अलग दो यात्राएं निकलने जा रही हैं उसको अलग-अलग नहीं देखा जाना चाहिए. बल्कि, इस तरह से देखा जाना चाहिए कि सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ यात्रा निकाली जा रही हैं. यह यात्रा उत्तर प्रदेश के जनमानस को एकजुट करने और उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन को लेकर है.
उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार से नौजवान, किसान, मजदूर, दलित, पिछड़े और तमाम कमजोर वर्ग महंगाई बेरोजगारी से परेशान हैं. कृषि कानूनों को लेकर एक साल से किसानों के विरोध जारी है. यदि दोनों पार्टियां इसे अलग रहकर भी भूनाने में सफल हो जाती हैं, तो भाजपा के वोट बैंक का नुकसान तय है.
रविकांत कहते हैं कि यह दोनों यात्राएं मुझे लगता है एक ही उद्देश्य लेकर निकल रही हैं. उनके रास्ते भले ही अलग हों, लेकिन मकसद एक ही है. सत्ता परिवर्तन.. मुझे लगता है कि अखिलेश और शिवपाल के बीच में एक तरह से खट्टी मीठी तकरार है और लोग इसको बहुत बढ़ा चढ़ाकर देखना चाहते हैं. दोनों के बीच निश्चित तौर से नजदीकियां बढ़ी हैं, मुलायम सिंह यादव के रहते हुए अब बहुत तकरार नहीं होगी. आज नहीं तो कल दोनों एक ही रास्ते पर आएंगे, लेकिन कब आएंगे यह देखना होगा.
अखिलेश की रथ यात्रा का कार्यक्रम
समाजवादी पार्टी की तरफ से जारी किए गए कार्यक्रम के अनुसार 12 अक्टूबर को सुबह 11:00 बजे गंगा पुल कानपुर से यात्रा शुरू होगी. इसके बाद नौबस्ता होते हुए अखिलेश की समाजवादी विजय यात्रा घाटमपुर पहुंचेगी और फिर घाटमपुर से हमीरपुर पहुंचेगी. अखिलेश यादव रात्रि विश्राम हमीरपुर में ही करेंगे. इसके बाद 13 अक्टूबर को अखिलेश यादव सुबह 9:30 बजे हमीरपुर से कुरारा के लिए आगे बढ़ेंगे.
इसके बाद कालपी, माती के लिए विजय यात्रा आगे बढ़ेगी शाम 5:00 बजे अखिलेश यादव हमीरपुर के माती से लखनऊ आएंगे. रथ यात्रा का जगह-जगह पर स्वागत कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे और अखिलेश यादव स्वागत समारोह के दौरान कार्यकर्ताओं को भी संबोधित करेंगे. इसके बाद 14 अक्टूबर को रथ यात्रा फिर किसी जगह के लिए रवाना होगी, जिसका कार्यक्रम समाजवादी पार्टी की तरफ से बाद में जारी किया जाएगा.
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अखिलेश यादव समाजवादी विजय यात्रा के जरिए हर जिले में एक जनसभा करेंगे. इस दौरान भाजपा सरकार की नाकामियों से लोगों को वाकिफ कराएंगे. पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि जब-जब अखिलेश यादव क्रांति यात्राओं पर निकले हैं, प्रदेश की राजनीति में नया परिवर्तन आया है. वह इससे पहले 31 जुलाई 2001 में पहली बार क्रांति रथ लेकर निकले थे.
इसके बाद 12 सितंबर 2011 को दूसरी बार समाजवादी क्रांतिरथ यात्रा लेकर निकले. इस रथयात्रा ने उन्हें मुख्यमंत्री का ताज सौंपा. उस वक्त भी वह लखनऊ से उन्नाव होते हुए कानपुर और बुंदेलखंड पहुंचे थे. इस बार भी तिथि 12 ही है और रूट भी पुराना है.