लखनऊः 2022 विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं. चुनाव आने से पहले सभी राजनीतिक दल अपने कील कांटे दुरुस्त करने में जुट गई हैं. भारतीय जनता पार्टी लखनऊ से लेकर दिल्ली तक लगातार बैठक कर आगामी चुनाव की रणनीति बना रही है. इसके साथ ही परिस्थितियों से निपटने पर मंथन कर रही है. वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार बसपा के बड़ी संख्या में नेताओं को सपा में शामिल कराने के साथ-साथ छोटे दलों के नेताओं से मिल रहे हैं. इसके अलावा अखिलेश आम जनता के बीच में पहुंचकर अपने खोए जनाधार पाने की कोशिश में लगे हैं.
सबसे खास बात यह है कि अखिलेश यादव लगातार छोटे व्यापारियों से भी संपर्क बनाए हुए हैं. कभी वह ठेले पर भुट्टा खरीदते नजर आते हैं तो कभी अमरूद खरीदते नजर आते हैं. 2 दिन पूर्व ही उन्होंने छोटे व्यापारियों से मुलाकात करते हुए केंद्र और प्रदेश सरकार पर निशाना साधा था. तब अखिलेश ने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी बड़े व्यापारियों की पार्टी है. यही कारण है कि इस कोरोना संक्रमण काल में बड़ी संख्या में छोटे व्यापारी प्रभावित हुए पर इनकी मदद भाजपा ने नहीं की. यही नहीं अखिलेश यादव ने भी प्रदेश के सभी समाजवादी पार्टी के नेताओं को अपने अपने क्षेत्रों में सक्रियता बरतने का निर्देश दिया है. अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में इसका फायदा किसे मिलता है.
समाजवादी पार्टी की जमीन पर सक्रियता के सवाल पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज सिंह का का का कहना है कि अखिलेश यादव समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति से मिलते हैं. जो दिन रात संघर्ष कर किसी तरह से आजीविका चला रहा है अखिलेश उनकी मदद करते हैं. राष्ट्रीय प्रवक्ता का कहना है कि डॉ. राम मनोहर लोहिया का जो सपना था कि अमीर और गरीब के बीच में 1 गुना से लेकर 10 गुना से ज्यादा का अंतर नहीं होना चाहिए उसी परिपाटी पर अखिलेश यादव भी चल रहे हैं.
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क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
अखिलेश यादव की सक्रियता के सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का कहना है कि हर राजनीतिक दल का मुख्य मकसद जनता से ज्यादा से ज्यादा कनेक्ट रहना होता है. जब यह नेता विपक्ष में होते हैं तो ज्यादा से ज्यादा जनता के बीच जाते हैं और उनसे जुड़ते हैं. जनता को भी उम्मीद होती है कि आने वाले समय में यह हमारे लिए बेहतर करेंगे. इसी उम्मीद के साथ वो जनता के बीच जगह बना पाते हैं. इसका फायदा भी राजनीतिक दलों को मिलता है.
संदेश और प्रतीक मजबूत हथियार
राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का कहना है कि राजनीति में संदेश और प्रतीक मजबूत हथियार हैं. इसी हथियार जिसे समाजवादी पार्टी इस्तेमाल कर खोए स्थान को पाने की कोशिश में लगी हुई है. राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि राजनीति में प्रतीक और संदेश सीधे जनता से कनेक्ट होते हैं. अखिलेश यादव इन दोनों हथियारों के सहारे 2022 में वापसी की जुगत में लगे हुए हैं.
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इस बात को लेकर अखिलेश यादव ने ट्वीट भी किया था. 14 मार्च को कासगंज दौरे पर निकले अखिलेश यादव ने अमरूद ठेले वालों से हालचाल लिया था. वहीं 2 दिन पूर्व राजधानी लखनऊ में एक छोटे व्यापारी से मिलकर अखिलेश यादव ने छोटे व्यापारियों को इस बात का आश्वासन दिलाया था कि सपा की सरकार आने पर छोटे व्यापारियों की मदद की जाएगी. वहीं भाजपा पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी बड़े व्यापारियों की पार्टी है.
विधानसभा चुनाव के मद्देनजर समाजवादी पार्टी प्रदेश की छोटी रीजनल पार्टियों से गठबंधन के दरवाजे खोल दिए हैं. इसको लेकर अखिलेश यादव कई बार सार्वजनिक रूप से बयान भी दे चुके हैं. पश्चिमी यूपी को साधने के लिए राष्ट्रीय लोक दल सपा से साथ 2019 से ही है. बसपा, भाजपा और कांग्रेस के बागी नेताओं को पार्टी में शामिल करने का सिलसिला शुरू भी हो चुका है. यहीं नहीं जातिवादी राजनीतिक के इर्द गिर्द घूमती यूपी की सियासत में अखिलेश सवर्ण से लेकर पिछड़े वर्ग तक को साधने की कोशिश में हैं. इसके लिए सपा की अलग-अलग प्रकोष्ठ लगातार प्रयासरत हैं.