लखनऊ : लोकसभा चुनाव भले ही अगले साल हों, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर अभी से पार्टियों ने समीकरण बिठाना शुरू कर दिए हैं. उत्तर प्रदेश में वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ीं समाजवादी पार्टी और रालोद ने लोकसभा चुनाव भी गठबंधन में ही लड़ने का फैसला लिया है. लिहाजा जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल पार्टी की तरफ से समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से लोकसभा की एक दर्जन सीटों की डिमांड रख दी गई है.
वर्ष 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाथ मिलाते हुए साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. इसका दोनों पार्टियों को काफी फायदा भी मिला था. जहां राष्ट्रीय लोकदल को अखिलेश यादव ने गठबंधन में 33 सीटें दी थीं, जिनमें आठ सीटों पर राष्ट्रीय लोक दल के प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल हुए थे. इसके बाद खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ यहां पर भी समाजवादी पार्टी ने यह सीट राष्ट्रीय लोकदल को ही दी थी और इस पर भी राष्ट्रीय लोक दल के प्रत्याशी मदन भैया की जीत हुई थी. कुल मिलाकर नौ सीटों पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल का कब्जा है.
अब विधानसभा की ही तर्ज पर लोकसभा की सीटों के लिए भी राष्ट्रीय लोक दल की तरफ से समाजवादी पार्टी को सीटों की डिमांड भेज दी गई है. आरएलडी के विश्व सूत्र बताते हैं कि कुल 12 सीटों की मांग समाजवादी पार्टी के सामने रखी गई है. जिनमें बुलंदशहर, मेरठ, बागपत, नगीना, मुजफ्फरनगर, कैराना, बिजनौर, सहारनपुर, हाथरस, मथुरा जैसी प्रमुख सीटें शामिल हैं. आरएलडी के नेता बताते हैं कि नवंबर तक सीट शेयरिंग फॉर्मूला फाइनल हो सकता है. आरएलडी नेतृत्व का मानना है कि पश्चिम में आरएलडी को ज्यादा सीट देने से विपक्षी गठबंधन को बड़ा फायदा हो सकता है.
राष्ट्रीय लोक दल के नेता बताते हैं कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समरसता अभियान के जरिए लोगों के बीच जाकर आपसी भाईचारा कायम कर चुके हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोगों के बीच राष्ट्रीय लोकदल काफी मजबूत है. लोगों का पार्टी पर भरोसा है इसलिए लोकसभा चुनाव में अगर समाजवादी पार्टी दर्जन पर सीटें देगी तो इन सीटों पर पार्टी जीत हासिल करने में सफल होगी. बता दें कि लोकसभा चुनाव के लिए इस बार भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ लगभग 26 दल एकजुट होकर एक साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. इनमें उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल साथ उतर सकते हैं. हालांकि अभी इस पर मुहर लगना बाकी है.
आरएलडी अध्यक्ष ने राज्यसभा में नहीं डाला वोट, पार्टी का तर्क पत्नी का था ऑपरेशन
राज्यसभा में दिल्ली सेवा बिल पर बहस और वोटिंग के दौरान राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद जयंत चौधरी मौजूद नहीं थे. इस पर राजनीतिक गलियारों में तेजी से चर्चा शुरू हो गई. कहा जाने लगा कि जयंत चौधरी गठबंधन के साथ खड़े ही नहीं है. ऐन मौकों पर जयंत चौधरी कोई न कोई समस्या बताकर हट लेते हैं, लेकिन इन चर्चा पर राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे ने विराम लगाया है.
आरएलडी के नेशनल स्पोकपर्सन अनिल दुबे का कहना है कि राज्यसभा में दिल्ली सेवा बिल पर चर्चा और वोटिंग के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी इसलिए उपस्थित नहीं हो पाए थे क्योंकि उनकी पत्नी का मेजर ऑपरेशन होना था. उसी में वे उलझे हुए थे. अगर ऑपरेशन नहीं होता तो राज्यसभा सांसद जयंत चौधरी जरूर पहुंचने. चर्चा में हिस्सा लेते और इंडिया गठबंधन के पक्ष में वोट भी करते. प्रवक्ता अनिल दुबे का कहना है कि राष्ट्रीय लोकदल पूरी तरह से इंडिया गठबंधन के साथ है, आगे आने वाले हर मौके पर आरएलडी इंडिया गठबंधन के साथ ही खड़ा नजर आएगा.
पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता रोहित अग्रवाल का कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी अगर मुसीबत में न होते तो वे जरूर राज्यसभा जाते. इतना ही नहीं अगर उनके वोट से इंडिया गठबंधन का दिल्ली सेवा बिल पास हो सकता होता तो भी वह अपना वोट देने जरूर पहुंचते, क्योंकि वोटों में काफी अंतर था. इसलिए उनका वोट कोई मायने भी नहीं रखता था. इंडिया गठबंधन को 102 वोट मिले थे जबकि एनडीए को 131. ऐसे में अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष राज्यसभा पहुंच भी जाते और वोटिंग भी करते तो भी जीत नहीं हो जाती. हम हमेशा इंडिया गठबंधन के साथ हैं और आगे भी रहेंगे. मुंबई में होने वाली आगामी इंडिया गठबंधन की बैठक में भी राष्ट्रीय अध्यक्ष शामिल होने जरूर जाएंगे.
बहरहाल राष्ट्रीय लोक दल के नेता किसी भी तरह की सफाई दें, लेकिन सियासी गलियारों में यह बात तेजी से फैल रही है कि जयंत चौधरी ऐसे मौकों पर कोई न कोई दिक्कत बताकर गायब हो जाते हैं. चाहे पूर्व में इंडिया गठबंधन की पहली बैठक पटना में थी तो वह पत्नी के साथ विदेश दौरे को पहले से ही निर्धारित होने की बात कहकर नहीं पहुंचे और अब पत्नी की तबीयत खराब होने का हवाला देकर राज्यसभा नहीं गए. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जयंत चौधरी के हथकंडे अटकलें को और बल प्रदान कर रहे हैं जिससे उनके लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के साथ आने की बात की जा रही है.