लखनऊ: अयोध्या के बाबरी विध्वंस मामले में बुधवार को सीबीआई की विशेष अदालत अपना फैसला सुनाएगी. फैसले के समय कोर्ट में पेश होने के लिए लखनऊ पहुंचीं राम मंदिर आंदोलन की नायक रहीं और केस में आरोपी साध्वी ऋतम्भरा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि हम लोग षड्यंत्र नहीं बल्कि मंत्र रचते हैं. कोर्ट का जो भी फैसला आएगा वह हमें स्वीकार है.
रामलला की भूमि के लिए चला था संघर्ष
ईटीवी भारत से बातचीत में साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि 6 दिसंबर 1992 को वहां पर कोई षड्यंत्र नहीं रचा गया था. वह एक अकस्मात एक घटना थी और इसका बहुत लंबा ट्रायल चला है. निश्चित रूप से मुझे ही नहीं सारे विश्व की बुधवार को इस केस में आने वाले फैसले पर निगाहें हैं. उन्होंने कहा कि जहां तक मेरा विचार है, सब लोग जानते भी हैं कि हमने कोई अनाधिकार चेष्टा नहीं की थी. अपनी आस्था की भूमि और अपने रामलला की भूमि के लिए यह संघर्ष चला था. यह कोई अनाधिकार चेष्टा नहीं थी. यह किसी दूसरे की संपत्ति पर हक जमाने का दुराग्रह नहीं था.
हमारी आस्था की भूमि से साथ जुड़ा था सत्य
साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि यह अपनी मान्यताओं और आस्था की भी बात नहीं थी. खाली आस्था अपनी मान्यता को सर्वोपरि मानना और सत्य को झुठला देना भी अनुचित होता है. हमारी श्रद्धा की भूमि के साथ एक सत्य जुड़ा हुआ था, जो सूर्य की तरह दीप्तिमान रहा. सूर्य का प्रकाश सब को दिखाई देता है, लेकिन कुछ जाति होती है जिनको सूर्य का प्रकाश नहीं दिखाई देता, क्योंकि वह चकाचौंध होती है और आंख बंद कर देती है. यह जितना संघर्ष 500 साल चला तो उसके पीछे सत्य का बल था. इसलिए बलिदान की इतनी बड़ी परंपराएं अनवरत चलती रहीं.
कोर्ट का निर्णय सिर माथे पर
साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि हम लोग बहुत बड़े भाग्यशाली हैं कि इस पूरे आंदोलन के विराम को देखा कि रामलला अपने भव्य राम मंदिर में विराजेंगे. कोर्ट का जो भी निर्णय होगा वह सिर माथे पर होगा. कल आने दीजिए फिर देखते हैं क्या होता है. उन्होंने कहा कि अगर सजा आदि की स्थित आती है तो हमारे जितने भी संगठन के अधिवक्ता हैं, वह आगे की रणनीति तय करेंगे. कुछ भी कहना उसके पहले उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि जहां तक आरोप लगा है आपराधिक षड्यंत्र का तो मैं हमेशा एक बात ही कहती हूं कि हम लोग षड्यंत्र नहीं रचते हैं बल्कि मंत्र रचते हैं.
फैसला कुछ भी आए हमें स्वीकार है
साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि कहा कि फैसला कुछ भी आए हमें स्वीकार है, जो होना था वह तो हो गया. रामलला का भव्य मंदिर बनाने का लक्ष्य था. उस लक्ष्य की पूर्ति हो गई है. उसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े तो यह कोई बड़ी बात नहीं है.