लखनऊः कोरोना के बढ़ते प्रकोप से उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम को प्रदेश सरकार के आदेश के बाद अंतरराज्जीय बस सेवाएं बंद कर देनी पड़ गईं. प्रदेश के जिलों से कुल 596 बसें विभिन्न राज्यों के लिए संचालित होती थीं, लेकिन इन सभी बसों के पहिए थम गए. ऐसे में उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम को काफी नुकसान होने लगा. इसकी कुछ हद तक भरपाई प्रवासी श्रमिकों ने जरूर पूरी की है. इन श्रमिकों को घर पहुंचाने के कारण ही रोडवेज का खर्चा चल पा रहा है. बसें कम चलने के साथ ही लॉकडाउन के कारण यात्रियों की संख्या कम होने से रोजाना की इनकम आधे से भी कम हो गई. 15 लाख रुपये का तो रोजाना झटका लगा है.
श्रमिक चुका रहे किराया तो चल रहा रोडवेज का काम
आलम ये है कि श्रमिकों के किराए से रोडवेज अपना खर्चा उठा रहा है. रोडवेज के लिए ये आपदा में किसी अवसर से कम नहीं है. अगर ऐसा न होता तो बसों के डीजल खर्च से लेकर चालक-परिचालकों का वेतन देने के भी रोडवेज प्रशासन को लाले पड़ जाते. लॉकडाउन की वजह से दैनिक यात्रियों की संख्या काफी कम हो गई है. रोडवेज प्रशासन अब शासन से बसों पर लगने वाले टैक्स में रिबेट दिए जाने की मांग करने पर विचार कर रहा है. 20 अप्रैल से पांच मई के बीच लखनऊ से करीब चार लाख 12 हजार श्रमिक बसों से उनकी मंजिल के लिए भेजे गए. इन श्रमिकों से करीब पांच करोड़ रुपये की इनकम हुई है. अब इसी किराये से डीजल खर्च, बसों की मरम्मत और ड्राइवर कंडक्टरों को सैलेरी दी जाएगी.
इसे भी पढ़ें- प्रदेश में 24 मई तक बढ़ाया गया कोरोना कर्फ्यू
300 करोड़ रुपये पहले का बकाया
पिछली बार विभिन्न राज्यों से उत्तर प्रदेश आने वाले प्रवासी श्रमिकों को उनके जनपद तक पहुंचाने के लिए सरकार ने रोडवेज बसों से मुफ्त यात्रा की सुविधा उपलब्ध कराई थी. सरकार को इसके बदले रोडवेज को भुगतान करना था. लेकिन अब तक सरकार ने परिवहन निगम को पहले के बकाए का भुगतान नहीं किया है. परिवहन निगम के अधिकारी बताते हैं कि पिछली बार का 300 करोड़ रुपये अभी तक शासन पर बकाया है.