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चार दिन में निपट गया यूपी विधानसभा का शीतकालीन सत्र, सदन की कम कार्यवाही पर जानें विश्लेषक की राय

पिछले काफी समय से लगातार सदन की कार्यवाही कम होती जा रही है जो संसदीय परंपराओं और लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं माना जाता. सदन में चर्चा पर सत्तापक्ष के जवाब और फैसले से जनता के प्रति जवाबदेही तय होती है. हालांकि अब सत्ता पक्ष और विपक्ष चर्चा को ज्यादा तवज्जों नहीं दे रहे हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 2, 2023, 3:00 PM IST

Updated : Dec 2, 2023, 5:30 PM IST

राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन.

लखनऊ : यूपी विधानसभा का शीतकालीन सत्र चार दिन तक चला और सदन की कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई. ऐसे में सवाल उठता है कि महज चार दिन तक सदन की कार्यवाही सिमट गई जो लोकतंत्र और जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर यह कितना सही है. पिछले काफी समय से सदन की कार्यवाही कम होती जा रही है. विपक्षी पार्टियों ने भी सदन की कार्यवाही सिर्फ चार दिन तक सीमित रखने को लेकर सवाल खड़े किए हैं. राजनीतिक विश्लेषक भी सदन की कार्यवाही होने को सही मानते हैं.

सपा का आरोप.
सपा का आरोप.


दरअसल सदन की कार्यवाही जितना अधिक चलेगी जनहित से जुड़े मुद्दों पर ज्यादा चर्चा होगी. विधायक और विधान परिषद सदस्य अपने अपने क्षेत्र की समस्याओं व विकास के कार्यों को लेकर सदन में याचिका लगाते हैं और उस पर बहस और कार्यवाही होती है. पिछले दो दशक से सदन की कार्यवाही लगातार कम होती जा रही है. सदन की कार्यवाही के दौरान हंगामा और नकारात्मक भूमिका के कारण सदन कम चल रहे हैं. अब विपक्ष के साथ-साथ सरकार की भी कोशिश रहती है कि सदन की कार्यवाही ज्यादा दिन न चलने पाए. ऐसे में सदन की संख्या लगातार कम होती चली जा रही है. लोकतंत्र और संवैधानिक परंपराओं के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं माना जाता है. संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सदन की कार्यवाही पूरे साल में 90 दिन के लिए संचालित होनी चाहिए, लेकिन अब पूरे साल में 20 से 25 दिन में सदन की कार्यवाही सिमट कर रह जाती है.



राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन कहते हैं कि संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार विधानसभा का सत्र 90 दिन का एक होना चाहिए और तीन सत्र होने चाहिए. जिसमें बजट सत्र मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र आहूत किए जाने की परंपरा रही है, लेकिन 90 के दशक के बाद से अब तक सदन के सत्र ज्यादा चलने की परंपरा लगातार कम और समाप्त हो रही है. वर्ष 1990 के बाद से लगातार सदन की कार्यवाही कम होती जा रही है. सदन की कार्यवाही जितना कम होगी, बहस और जनहित के मुद्दे पर चर्चा कम ही होगी. यह बहुत बड़ी विडंबना है. सदन की कार्यवाही के अंतर्गत सत्र चलाने की जिम्मेदारी सरकार के साथ-साथ विपक्ष की भी है. अनुपूरक बजट में पहले मद वार चर्चा होती है. पहले सत्र 20 दिन 25 दिन चलता था, मगर धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. सदन ज्यादा दिन चलेंगे तो संवैधानिक की परंपराएं मजबूत होगी. लोकतंत्र मजबूत होगा और जनहित से जुड़े विषयों पर चर्चा होगी और जवाब देने के लिए सरकार बाध्य होगी. सिर्फ औपचारिकता पूरी करने के लिए सदन की संख्या लगातार कम होती जा रही है जो बिल्कुल भी स्वस्थ संवैधानिक परंपराओं और लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.

यह भी पढ़ें : अब सही रास्ते पर चल रहा है भारत: उपराष्ट्रपति धनखड़

18 फरवरी को पेश होगा उत्तर प्रदेश सरकार का बजट, जानिए इसकी प्रक्रिया

राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन.

लखनऊ : यूपी विधानसभा का शीतकालीन सत्र चार दिन तक चला और सदन की कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई. ऐसे में सवाल उठता है कि महज चार दिन तक सदन की कार्यवाही सिमट गई जो लोकतंत्र और जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर यह कितना सही है. पिछले काफी समय से सदन की कार्यवाही कम होती जा रही है. विपक्षी पार्टियों ने भी सदन की कार्यवाही सिर्फ चार दिन तक सीमित रखने को लेकर सवाल खड़े किए हैं. राजनीतिक विश्लेषक भी सदन की कार्यवाही होने को सही मानते हैं.

सपा का आरोप.
सपा का आरोप.


दरअसल सदन की कार्यवाही जितना अधिक चलेगी जनहित से जुड़े मुद्दों पर ज्यादा चर्चा होगी. विधायक और विधान परिषद सदस्य अपने अपने क्षेत्र की समस्याओं व विकास के कार्यों को लेकर सदन में याचिका लगाते हैं और उस पर बहस और कार्यवाही होती है. पिछले दो दशक से सदन की कार्यवाही लगातार कम होती जा रही है. सदन की कार्यवाही के दौरान हंगामा और नकारात्मक भूमिका के कारण सदन कम चल रहे हैं. अब विपक्ष के साथ-साथ सरकार की भी कोशिश रहती है कि सदन की कार्यवाही ज्यादा दिन न चलने पाए. ऐसे में सदन की संख्या लगातार कम होती चली जा रही है. लोकतंत्र और संवैधानिक परंपराओं के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं माना जाता है. संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सदन की कार्यवाही पूरे साल में 90 दिन के लिए संचालित होनी चाहिए, लेकिन अब पूरे साल में 20 से 25 दिन में सदन की कार्यवाही सिमट कर रह जाती है.



राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन कहते हैं कि संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार विधानसभा का सत्र 90 दिन का एक होना चाहिए और तीन सत्र होने चाहिए. जिसमें बजट सत्र मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र आहूत किए जाने की परंपरा रही है, लेकिन 90 के दशक के बाद से अब तक सदन के सत्र ज्यादा चलने की परंपरा लगातार कम और समाप्त हो रही है. वर्ष 1990 के बाद से लगातार सदन की कार्यवाही कम होती जा रही है. सदन की कार्यवाही जितना कम होगी, बहस और जनहित के मुद्दे पर चर्चा कम ही होगी. यह बहुत बड़ी विडंबना है. सदन की कार्यवाही के अंतर्गत सत्र चलाने की जिम्मेदारी सरकार के साथ-साथ विपक्ष की भी है. अनुपूरक बजट में पहले मद वार चर्चा होती है. पहले सत्र 20 दिन 25 दिन चलता था, मगर धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. सदन ज्यादा दिन चलेंगे तो संवैधानिक की परंपराएं मजबूत होगी. लोकतंत्र मजबूत होगा और जनहित से जुड़े विषयों पर चर्चा होगी और जवाब देने के लिए सरकार बाध्य होगी. सिर्फ औपचारिकता पूरी करने के लिए सदन की संख्या लगातार कम होती जा रही है जो बिल्कुल भी स्वस्थ संवैधानिक परंपराओं और लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.

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Last Updated : Dec 2, 2023, 5:30 PM IST
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