लखनऊः कौशल विकास के हमारे पारंपरिक केंद्र आईटीआई और पॉलिटेक्निक को बेरुखी का सामना करना पड़ रहा है. यहां सरकारी दावों की असली तस्वीर नजर आ रही है. करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद यहां छात्रों को प्रशिक्षण के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है. ये हम नहीं कह रहे, बल्कि इस विभाग से जुड़े आंकड़े ये कहानी बयां कर रहे हैं.
प्रदेश के राजकीय आईटीआई और राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेजों में शिक्षक उपलब्ध ही नहीं है. केवल 40 से 50 फीसदी शिक्षकों के भरोसे ज्यादातर संस्थान चल रहे हैं. बावजूद इनमें कोई सुधार करने के बजाए सरकार खामोश बैठी है.
ये है आईटीआई संस्थानों का हाल
उत्तर प्रदेश में आईटीआई संस्थानों का संचालन राज्य व्यवसायिक प्रशिक्षण परिषद उत्तर प्रदेश के अधीन किया जाता है. व्यवसायिक शिक्षा एवं कौशल विकास मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कपिल देव अग्रवाल इसे देखते हैं. वरिष्ठ आईएएस आलोक कुमार तृतीय इसके सचिव हैं. इतने बड़े-बड़े नाम जुड़े होने के बावजूद भी प्रदेश के राजकीय आईटीआई संस्थानों की हालत नहीं सुधर रही है. प्रदेश भर में 305 राजकीय आईटीआई कॉलेजों का संचालन किया जा रहा है. इनमें करीब 1 लाख 72 हजार 352 सीट उपलब्ध है. इतनी बड़ी संख्या में छात्र यहां दाखिला लेते हैं. इनको, अलग-अलग क्षेत्रों में प्रशिक्षण औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान कर्मचारी संघ की ओर से कई बार इन पदों पर भर्ती के लिए पत्र लिखा गया. लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. संघ के अध्यक्ष अनिल कुमार पाठक का कहना है कि अनुदेशकों की संख्या न बढ़ने तक सभी को गुणवत्ता परक शिक्षा देने के दावों पर सवाल उठते रहेंगे.
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पॉलिटेक्निक में एआईसीटी ने कई बार उठाए सवाल
आईटीआई की तरह पॉलिटेक्निक की स्थिति भी ठीक नहीं है. हालत ये है कि एआईसीटीई की ओर से हर साल फटकार लगाई जा रही है. राजकीय और ऐडेड पॉलिटेक्निक कॉलेजों में संसाधन उपलब्ध न हो पाने की वजह से पिछले कई सालों से सीटों में कटौती हो रही है. इस साल ही सरकारी सहायता प्राप्त पॉलिटेक्निक कॉलेजों की करीब 5000 सीटें कम हो गई हैं. इन कॉलेजों में दूसरी शिफ्ट में संचालित कक्षाओं में इस बार दाखिले नहीं लिए जाएंगे. राजधानी समेत उत्तर उत्तर प्रदेश में ऐसे कॉलेजों की संख्या करीब 19 बताई गई है. इन संस्थानों में सीटों के मुकाबले उपलब्ध शिक्षकों की संख्या कम होने के चलते ये कार्रवाई की गई है. ऐसे में इन संस्थानों की दूसरी पाली में उपलब्ध सीटों को प्रवेश प्रक्रिया से हटा दिया जाएगा. अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटी) ने पिछले साल नवंबर में उत्तर प्रदेश के पॉलिटेक्निक कॉलेजों के संबंध में रिपोर्ट मांगी थी. इसमें सीटों के सापेक्ष उपलब्ध शिक्षकों की संख्या कम होने का खुलासा हुआ. जिसके बाद ये कार्रवाई शुरू की गई.
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