लखनऊ: यूपी का सियासी तापमान इन दिनों काफी बढ़ा हुआ है. सीएम योगी के दिल्ली दौर पर जाने के बाद सूबे की सियासत में बदलाव की अटकलें और तेज हो गई हैं. कोई प्रदेश नेतृत्व परिवर्तन, तो कोई मंत्रिमंडल विस्तार के कयास लगा रहा है. ऐसे में प्रदेश की सियासत में क्या कुछ चल रहा है उसका अनुमान लगाने पहले एक नजर 2017 के चुनाव के बाद से लगाई जा रही अटकलों और सियासी बदलावों पर एक नजर डालते हैं. जिससे भविष्य की राजनीति का अनुमान लगाना आपके लिए थोड़ा आसान हो जाएगा.
सीएम योगी और खींचतान
यूपी भाजपा और योगी सरकार से जुड़ी पूरी सियासत को समझने के लिए हम आपको चार साल पहले ले चलते हैं. गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के 19 मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजते ही खींचतान सामने आ गई थी या फिर यूं कहें कि खींचतान के बीच से निकलकर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गए थे. दरअसल 2017 में भाजपा के पक्ष में आये चुनाव परिणामों के बाद यूपी भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और उनके समर्थकों को यह लगने लगा कि मौर्य मुख्यमंत्री हो सकते हैं, लेकिन ताज योगी आदित्यनाथ के सिर पर सजा. तब से अब तक ऊपरी तौर पर इन दोनों नेताओं के बीच में भले ही उतनी खींचतान न दिखती हो, लेकिन उनके समर्थकों के बीच यह फासला जरूर बना हुआ है.
शर्मा की एंट्री के साथ ही दूसरे मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा शुरू हुई
पिछले साल 2020 के मार्च महीने में देश में कोरोना की एंट्री होती है. कोरोना वायरस के अटैक ने उत्तर प्रदेश को भी अपनी चपेट में लिया तो योगी आदित्यनाथ इस संकट से बखूबी निपटने में सफल रहे. इसके बाद कोविड ठंडा पड़ता गया. इसी बीच जनवरी 2021 में अरविंद कुमार शर्मा की उत्तर प्रदेश की सियासत में एंट्री होती है. शर्मा गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी रहे हैं. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लंबे समय तक काम करने का अनुभव रखते हैं. पीएम मोदी के करीबी कहे जाने वाले शर्मा की भाजपा में एंट्री के साथ ही उनके योगी मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की चर्चा शुरू हो गई. माना जाने लगा कि शर्मा को योगी मंत्रिमंडल में शामिल करके उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी. उन्हें डिप्टी सीएम भी बनाने जाने के भी कयास लगाए जाने लगे. इस बीच पश्चिम बंगाल समेत 5 राज्यों में हुए चुनाव के दौरान योगी व्यस्तता चुनावी रैलियों में बढ़ गई और मंत्रिमंडल विस्तार भी टलता रहा. इसी बीच मार्च में कोविड-19 की दूसरी लहर आ गई.
कोविड की दूसरी लहर में योगी की बढ़ीं मुश्किलें
दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण बढ़ रहा था, वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पश्चिम बंगाल के चुनावी रण में सभाएं करने में जुटे थे. इस बीच प्रदेश में पंचायत चुनाव की तैयारियां भी चल रही थीं, लेकिन कोविड को देखते हुए हर तरफ से पंचायत चुनाव टालने की आवाज उठने लगी, मगर सरकार ने चुनाव कराया. इस बीच कोरोना संक्रमण के चलते प्रदेश में जो अव्यवस्थाएं फैलीं उसे संभालने में सरकार के पसीना एड़ी से चोटी तक पहुंच गया. ऑक्सीजन की किल्लत से लेकर दवाओं की कमी हो या फिर बेड का अभाव, जनता बेहाल दिखी. जिसके बाद प्रदेश में योगी सरकार के खिलाफ माहौल बनने लगा. जिसके बाद सीएम योगी ने खुद मोर्चा संभाला, जनता से अपील की, अधिकारियों पर नकेल कसी, प्रदेश के सभी 18 मंडलों और जिलों का दौरा किया. सीएम तकरीबन प्रदेश के सभी जिलों तक पहुंचे. अस्पतालों का मौके पर जाकर निरीक्षण किया, मरीजों से संवाद किया. यह सब करके एक तरफ उन्होंने जनता के बीच संदेश दिया कि सरकार उनके साथ खड़ी है, दूसरी तरफ प्रदेश के अस्पतालों में ऑक्सीजन साथ बेड और दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कराया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. सीएम योगी के ये प्रयास रंग और प्रदेश में कोविड संक्रमण कंट्रोल भी हो गया, लेकिन तब तक सरकार की जमकर किरकिरी हो चुकी थी. आम लोगों से लेकर सियासी दलों ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया.
जब शर्मा बने योगी की आंख के किरकिरी
एक तरफ योगी प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ करने में जुटे थे, दूसरी तरफ पूर्वांचल में प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पूर्व नौकरशाह एके शर्मा पैर जमा रहे थे. उन्होंने वाराणसी में कोविड प्रबंधन करने का प्रयास किया. वह इसमें कितना सफल रहे, उसमें उनका कितना योगदान रहा, यह चर्चा का विषय है. लेकिन, मीडिया में सुर्खियां बटोरने में शर्मा सफल रहे. प्रधानमंत्री मोदी ने भी वाराणसी मॉडल की सराहना की. उस वाराणसी मॉडल को एके शर्मा अपने नाम कर लिया. जिसके बाद प्रदेश में दूसरे पावर सेंटर के रूप में अरविंद कुमार शर्मा को देखा जाने लगा. पीएम मोदी के करीबी माने जाने वाले अरविंद शर्मा का इस तरह से पावर सेंटर के रूप में स्थापित होना, योगी के लिए अच्छा नहीं था. ऐसे में शर्मा उनकी आंख की किरकिरी बनते गए.
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शर्मा के कैम्प से विस्तार की निकलीं खबरें
इसी बीच पूर्वांचल के वाराणसी समेत कुछ जिलों की रिपोर्ट तैयार कर एके शर्मा लखनऊ आकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की. इसके बाद वह पीएमओ गए. शर्मा की योगी और प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात को मंत्रिमंडल विस्तार से जोड़कर देखा जाने लगा. शर्मा के कैंप से खबरें निकल कर सामने आईं कि जल्द ही मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है. योगी मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों के बीच ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले 25 मई को लखनऊ प्रवास पर पहुंचते हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उस समय कोविड प्रबंधन को लेकर मंडलों के दौरे पर रहे थे. ऐसे में योगी की होसबोले से मुलाकात नहीं हुई. दो दिन बाद दत्तात्रेय वापस चले गए. लेकिन, इस दौरान चर्चा रही कि उन्होंने यूपी की नब्ज टटोली है. इसके बाद उत्तर प्रदेश में कुछ सियासी बदलाव हो सकते हैं.
दत्तात्रेय के बाद लखनऊ पहुंचे बीएल संतोष
संघ के सरकार्यवाह के जाते ही भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष 31 मई को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंच गए. इसके साथ ही प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा तेज हो गई. लखनऊ प्रवास के दौरान बीएल संतोष ने संघ, भाजपा और सरकार के महत्वपूर्ण लोगों से मुलाकात की, साथ ही भाजपा प्रदेश पदाधिकारियों के साथ बैठक की. उन्होंने योगी सरकार के मंत्रियों से अलग-अलग मुलाकात कर सरकार के, उनके क्षेत्र और उनके विभाग की जानकारी ली. कुल मिलाकर उन्होंने संघ, सरकार और संगठन में मौजूदा परिस्थितियों के सारे समीकरणों को करीब से देखा, परखा और एक रिपोर्ट तैयार की. वह रिपोर्ट उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को सौंपी. रिपोर्ट सौंपने के साथ ही चार जून को दिल्ली से यह खबर आई कि यूपी में योगी के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा. कोई भारी फेरबदल नहीं होने वाले हैं. लेकिन, मंत्रिमंडल विस्तार की संभावना को तब भी जीवित रखा गया.
राधामोहन ने बढ़ाई सियासी गर्मी
सब कुछ शांत होने लगा था, लेकिन इसी बीच पिछले शनिवार को यूपी बीजेपी प्रभारी राधा मोहन सिंह लखनऊ पहुंचे. जिसके बाद यूपी की सियासत में गरमाहट आने आने लगी. रविवार की सुबह 11:00 बजे उन्होंने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से राजभवन जाकर मुलाकात की. विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित से उनकी मुलाकात हुई. इसके बाद प्रदेश का सियासी पारा अपने उच्च स्तर पर पहुंच गया. राधा मोहन सिंह के इन दोनों मुलाकातों को मंत्रिमंडल विस्तार और नेतृत्व परिवर्तन से जोड़कर देखा जाने लगा. हालांकि उन्होंने इस बात का खंडन किया. भाजपा प्रभारी ने कहा कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार और संगठन दोनों ही बहुत बेहतरीन ढंग से काम कर रहे हैं. मंत्रिमंडल में रिक्त पदों को भरे जाने के सवाल पर राधा मोहन सिंह ने इसे मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार बताकर विस्तार की संभावना को एक बार फिर बरकरार रखा.
फाइनल मैच: योगी का दिल्ली दौरा
यूपी बीजेपी प्रभारी और राज्यपाल की भेंट के ठीक चौथे दिन गुरुवार यानी 10 जून को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अचानक दिल्ली दौरा लगता है. दोपहर करीब 3:30 बजे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली पहुंचे. उनकी गृहमंत्री अमित शाह से करीब डेढ़ घंटे की मुलाकात हुई. बताया जा रहा है कि इस मुलाकात के दौरान सीएम योगी और गृहमंत्री अमित शाह के बीच यूपी की संपूर्ण व्यवस्था और मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चर्चा की. कहा इस जा रहा है कि इस दौरान यूपी से जिन चेहरों को केंद्र में भेजा जा सकता है, उनके बारे में भी चर्चा हुई. इन सबके बीच शुक्रवार को सीएम योगी की मुलाकात प्रधानमंत्री मोदी और उसके बाद भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा से होनी है. इन दोनों शीर्ष नेताओं से मुलाकात के बाद सब कुछ करीब-करीब स्पष्ट हो जाएगा. इसी के बाद मंत्रिमंडल विस्तार और भाजपा संगठन में बदलाव की अटकलों पर भी विराम लग जाएगा या फिर यूं कहें कि शुक्रवार को योगी मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर जो खेल खेला जा रहा था उसका फाइनल मैच होगा.
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