लखनऊ: राजधानी लखनऊ समेत फैजाबाद और वाराणसी में 20 मिनट के अंतराल पर कचहरी में 6 बम विस्फोट हुए थे. 23 नवंबर 2007 को आतंकियों ने सीरियल बम विस्फोट कराया था. इस घटना में 18 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 86 घायल हुए थे. आज भी इसके जख्म भरे नहीं हैं. घटना के बाद से प्रदेश की सभी कचहरियों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम के दावे किए गए. 13 साल बीतने के बाद इस दावे की हकीकत जानने जब ईटीवी भारत पहुंचा. सुरक्षा व्यवस्था ठीक नजर आई लेकिन वकीलों ने लापरवाही का आरोप लगाया.
गेट की सुरक्षा व्यवस्था
कचहरी परिसर के एंट्री गेट पर एक सर्च मशीन लगाया गया है. इसके अंदर से गुजरने पर कोई विस्फोटक पदार्थ या हथियार अंदर नहीं ले जाया जा सकता. अगर ऐसा कोई पदार्थ अंदर ले जाया जाता है तो पुलिस को तुरंत इसकी सूचना मिल जाती है. साथ ही लोगों को चेक करने के लिए पुलिस और महिला कांस्टेबल भी मौजूद रहती हैं. तहसील परिसर के गेट पर पुलिस बल मुस्तैद मिला. कचहरी आने-जाने वाले लोगों ने कहा कि पहले से अब सुरक्षा व्यवस्था बेहतर है. पुलिस लोगों को चेक करती है, उसके बाद अंदर जाने दिया जाता है. दूसरी ओर वकील कहते हैं कि कई बार तो पुलिस भी गेट पर नहीं रहती. ठीक से जांच भी नहीं की जाती. सीधे कार लेकर अंदर आया जा सकता है. उसमें विस्फोटक भी हो सकते हैं.
4 गेटों पर तैनात है पुलिस
लखनऊ कचहरी परिसर के 9 गेट हैं. वर्तमान में 4 गेट सुचारू रूप से चालू हैं और सभी पर सर्च मशीन लगी हुई है. साथ ही सभी गेटों पर पुलिस वालों की तैनाती है. बाकी गेट कोरोना संक्रमण की वजह से बंद किए गए हैं. वकीलों ने बताया कि परिसर में करीब 25,000 लोग रोजाना आते हैं. इसके अलावा हजारों की संख्या में वकीलों का कचहरी परिसर में आना-जाना रहता है. सुरक्षा में चूक से पहले जैसी घटना हो सकती है.
कचहरी की सुरक्षा व्यवस्था में कोई भी चूक नहीं की जा रही है. वकीलों का आरोप गलत है.
देवेन्द्र सिंह, डीसीपी, लखनऊ
लखनऊ कचहरी सीरियल ब्लास्ट और उसके बाद की कार्रवाई
लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद कचहरी परिसर में एक साथ 20 मिनट के अंतराल पर 6 विस्फोट हुए थे. घटना 23 नवंबर 2007 की है. इस घटना में एक विस्फोट राजधानी लखनऊ के कचहरी के बरगद के पेड़ के पास हुआ था. इस पूरी घटना में 18 लोगों की मौत हुई थी और 86 लोग घायल हुए थे. इस विस्फोट को लेकर वजीरगंज थाने में FIR दर्ज हुई थी.
पुलिस ने अलग-अलग पांच चार्जशीट दायर कर 5 लोगों को आरोपी बनाया था. इस मामले में आफताब अंसारी के खिलाफ साक्ष्य न मिलने पर उन्हें क्लीन चिट दे दी गई तो सज्जादुर रहमान को 14 अप्रैल 2011 को बरी कर दिया गया. खालिद नाम के आरोपी की 2013 में कस्टडी में मौत हो गई थी, जिसके बाद डीजीपी विक्रम सिंह, एडीजी लॉ एंड ऑर्डर बृजलाल और आईबी अफसरों समेत कई लोगों पर हत्या का मामला भी दर्ज हुआ था.
विस्फोट के दोनों मुख्य आरोपियों को उम्र कैद
लखनऊ में हुए सीरियल बम ब्लास्ट में कोर्ट ने 2007 के लखनऊ सिविल कोर्ट परिसर में बम ब्लास्ट में आजमगढ़ के डॉक्टर तारीख काजमी और कश्मीर के मोहम्मद अख्तर को दोषी माना था, जिन्हें 2018 में उम्र कैद की सजा सुनाई गई. कोर्ट ने दोनों को हत्या के प्रयास, आपराधिक साजिश, देशद्रोह और सरकार के खिलाफ जंग छेड़ने के लिए विस्फोटक जमा करने का दोषी पाया.
2007 में जिस समय बम ब्लास्ट हुआ था, वह कचहरी में मौजूद थे. घटना के बाद काफी अफरा-तफरी मची हुई थी. वहीं जनहानि हुई थी. इस मामले में दोषी दोनों आरोपियों को उम्र कैद की सजा हो चुकी है. अब केस फाइनल हो चुका है.
उमेश तिवारी, वकील, लखनऊ डिस्ट्रिक्ट कोर्ट