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श्मशान से लेकर कब्रिस्तान तक दे रहे हैं सरकार के झूठे आंकड़ों की गवाही

प्रदेश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. लोग उचित इलाज और ऑक्सीजन की कमी के कारण मर रहे हैं. आलम यह है कि मरीजों के परिजनों को श्मशान घाट और कब्रिस्तान में भी अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है. वहीं सरकार के हकीकत के बिल्कुल उलट हैं. देखिये ये रिपोर्ट

सरकार के झूठे आंकड़ों की गवाही
सरकार के झूठे आंकड़ों की गवाही
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Published : Apr 28, 2021, 10:50 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार भले ही प्रदेश में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रही हो इसके बावजूद कोरोना का प्रसार कम होने का नाम नहीं ले रहा. वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह भी कहना है कि प्रदेश में ना तो दवाओं की कमी है न ही ऑक्सीजन और वेंटीलेटर की. बावजूद इसके राजधानी लखनऊ में लगातार बड़ी संख्या में मरीज अस्पतालों में ऑक्सीजन और बेड, वेंटिलेटर ना मिलने के कारण मर रहे हैं. यही कारण है कि राजधानी के श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में कोरोना से मरने वालों के अंतिम संस्कार के लिए उनके परिजनों को लंबी-लंबी लाइनें भी लगानी पड़ रही है.

जानकारी देते संवाददाता.

दावों से उलट है जमीनी हकीकत
राजधानी लखनऊ में संक्रमण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश सरकार के मंत्री और अधिकारी तक आइसोलेशन में है. प्रदेश की जनता दर्द और बीमारी से कराह रही है और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही ऑक्सीजन की आपूर्ति और बेड की उपलब्धता की बात करते हों पर जमीनी हकीकत उनके दावों के बिल्कुल विपरीत है. मरीजों को ना तो बेड मिल पा रहा है और ना ही वेंटीलेटर. यही कारण है कि बड़ी संख्या में मरीज काल के गाल में समा रहे हैं और अंतिम समय पर भी इन मरीजों के परिजनों को श्मशान घाट और कब्रिस्तान में भी अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है. राजधानी के भैसा कुंड और गुलाला घाट श्मशान घाट पर आए दिन लकड़ियों का संकट होता रहता है. इन जगहों का नगर आयुक्त और जिलाधिकारी सहित कई अधिकारियों ने दौरा भी किया बावजूद इसके हालात जस के तस हैं.


क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े

तारीख सरकारी आंकड़ों में दर्ज मौतेंश्मशान में पहुंचे शव
13 अप्रैल18 173
14 अप्रैल 14 166
15 अप्रैल26108
16 अप्रैल35110
17 अप्रैल 36147
18 अप्रैल22151
19 अप्रैल22126
20 अप्रैल19 150
21 अप्रैल21143
22 अप्रैल19158
23 अप्रैल14 200 से अधिक
24 अप्रैल42150
25 अप्रैल14150
26 अप्रैल21160
27 अप्रैल39 155


क्या कहते हैं नगर निगम के अधिकारी
श्मशान घाट पर लगातार बड़ी संख्या में आने वाली डेड बॉडी के सवाल पर नगर आयुक्त अजय द्विवेदी का कहना है कि नॉर्मल दिनों में औसतन प्रतिदिन 15 से 20 डेड बॉडी श्मशान घाटों पर आती थीं, पर कोरोना संक्रमण के बाद से ही श्मशान घाटों पर आने वाली डेड बॉडी की संख्या लगातार बढ़ रही हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए 90 से अधिक प्लेटफॉर्म भी बनाए गए हैं. जिससे कि लोगों को अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए लाइन न लगानी पड़े. नगर आयुक्त अजय द्विवेदी का कहना है कि श्मशान घाटों पर लकड़ियों की व्यवस्था आपूर्ति करने के लिए मजिस्ट्रेट को भी तैनात किया गया है, जिससे कि लोगों को समस्याओं का सामना ना करना पड़े.

आए दिन होती रहती है लकड़ियों की कमी
लखनऊ के नगर आयुक्त अजय द्विवेदी भले ही लगातार दावा कर रहे हैं कि श्मशान घाटों पर लकड़ियों की कमी नहीं है, लेकिन राजधानी के लकड़ी ठेकेदारों ने हाथ खड़े कर दिए हैं. इससे पूर्व भी सीतापुर और बलिया से 20 ट्रक लकड़ियां मंगाई गई थीं. अभी तक 9,000 कुंटल लकड़ी लखनऊ नगर निगम मंगा चुका है. जिसके लिए नगर निगम के सामने बजट का भी संकट मंडरा रहा है. इसके लिए लखनऊ नगर निगम शासन से 20 करोड रूपये की मदद भी मांगी है.

60 से 70 शव होतें हैं प्रतिदिन दफन
संक्रमण का असर सिर्फ श्मशान घाटों पर ही नहीं है, इसका असर कब्रिस्तान पर भी पड़ा है. यही कारण है कि जिन कब्रिस्तानों में प्रतिदिन पांच से छह लोगों को दफनाया जाता था. आज वहां 60 से 70 लोगों को दफनाया जा रहा है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए ऐशबाग कब्रिस्तान कमेटी के इमाम अब्दुल मतीन ने बताया कि राजधानी में छोटे बड़े मिलाकर कुल लगभग 100 कब्रिस्तान हैं. ऐसे में प्रतिदिन 60 से 70 डेड बॉडी को दफनाया जा रहा है.

बता दें कि लखनऊ नगर निगम सीमा के अंतर्गत 21 श्मशान घाट हैं जबकि 42 कब्रिस्तान हैं और 3 ईसाइयों के कब्रिस्तान हैं. बावजूद इसके लगातार इन श्मशान घाट और कब्रिस्तान पर बड़ी संख्या में शव आ रहे हैं जहां पर इनका अंतिम संस्कार किया जा रहा है.

शवों को जलाने के लिए जगह की पड़ रही कमी
राजधानी लखनऊ में संक्रमण की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है नगर निगम ने भले ही डेड बॉडी के अंतिम संस्कार के लिए अतिरिक्त प्लेटफार्म की व्यवस्था की है. इसके बावजूद भी डेड बॉडी को जलाने के लिए जगह की कमी पड़ रही है. यही कारण है कि गुलाला घाट के पार्क में रिवर फ्रंट पर लोग अपनों का दाह संस्कार कर रहे हैं. इतना ही नहीं कई इलाकों में खाली पड़ी जगहों में भी लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर हो रहे हैं.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार भले ही प्रदेश में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रही हो इसके बावजूद कोरोना का प्रसार कम होने का नाम नहीं ले रहा. वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह भी कहना है कि प्रदेश में ना तो दवाओं की कमी है न ही ऑक्सीजन और वेंटीलेटर की. बावजूद इसके राजधानी लखनऊ में लगातार बड़ी संख्या में मरीज अस्पतालों में ऑक्सीजन और बेड, वेंटिलेटर ना मिलने के कारण मर रहे हैं. यही कारण है कि राजधानी के श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में कोरोना से मरने वालों के अंतिम संस्कार के लिए उनके परिजनों को लंबी-लंबी लाइनें भी लगानी पड़ रही है.

जानकारी देते संवाददाता.

दावों से उलट है जमीनी हकीकत
राजधानी लखनऊ में संक्रमण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश सरकार के मंत्री और अधिकारी तक आइसोलेशन में है. प्रदेश की जनता दर्द और बीमारी से कराह रही है और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही ऑक्सीजन की आपूर्ति और बेड की उपलब्धता की बात करते हों पर जमीनी हकीकत उनके दावों के बिल्कुल विपरीत है. मरीजों को ना तो बेड मिल पा रहा है और ना ही वेंटीलेटर. यही कारण है कि बड़ी संख्या में मरीज काल के गाल में समा रहे हैं और अंतिम समय पर भी इन मरीजों के परिजनों को श्मशान घाट और कब्रिस्तान में भी अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है. राजधानी के भैसा कुंड और गुलाला घाट श्मशान घाट पर आए दिन लकड़ियों का संकट होता रहता है. इन जगहों का नगर आयुक्त और जिलाधिकारी सहित कई अधिकारियों ने दौरा भी किया बावजूद इसके हालात जस के तस हैं.


क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े

तारीख सरकारी आंकड़ों में दर्ज मौतेंश्मशान में पहुंचे शव
13 अप्रैल18 173
14 अप्रैल 14 166
15 अप्रैल26108
16 अप्रैल35110
17 अप्रैल 36147
18 अप्रैल22151
19 अप्रैल22126
20 अप्रैल19 150
21 अप्रैल21143
22 अप्रैल19158
23 अप्रैल14 200 से अधिक
24 अप्रैल42150
25 अप्रैल14150
26 अप्रैल21160
27 अप्रैल39 155


क्या कहते हैं नगर निगम के अधिकारी
श्मशान घाट पर लगातार बड़ी संख्या में आने वाली डेड बॉडी के सवाल पर नगर आयुक्त अजय द्विवेदी का कहना है कि नॉर्मल दिनों में औसतन प्रतिदिन 15 से 20 डेड बॉडी श्मशान घाटों पर आती थीं, पर कोरोना संक्रमण के बाद से ही श्मशान घाटों पर आने वाली डेड बॉडी की संख्या लगातार बढ़ रही हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए 90 से अधिक प्लेटफॉर्म भी बनाए गए हैं. जिससे कि लोगों को अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए लाइन न लगानी पड़े. नगर आयुक्त अजय द्विवेदी का कहना है कि श्मशान घाटों पर लकड़ियों की व्यवस्था आपूर्ति करने के लिए मजिस्ट्रेट को भी तैनात किया गया है, जिससे कि लोगों को समस्याओं का सामना ना करना पड़े.

आए दिन होती रहती है लकड़ियों की कमी
लखनऊ के नगर आयुक्त अजय द्विवेदी भले ही लगातार दावा कर रहे हैं कि श्मशान घाटों पर लकड़ियों की कमी नहीं है, लेकिन राजधानी के लकड़ी ठेकेदारों ने हाथ खड़े कर दिए हैं. इससे पूर्व भी सीतापुर और बलिया से 20 ट्रक लकड़ियां मंगाई गई थीं. अभी तक 9,000 कुंटल लकड़ी लखनऊ नगर निगम मंगा चुका है. जिसके लिए नगर निगम के सामने बजट का भी संकट मंडरा रहा है. इसके लिए लखनऊ नगर निगम शासन से 20 करोड रूपये की मदद भी मांगी है.

60 से 70 शव होतें हैं प्रतिदिन दफन
संक्रमण का असर सिर्फ श्मशान घाटों पर ही नहीं है, इसका असर कब्रिस्तान पर भी पड़ा है. यही कारण है कि जिन कब्रिस्तानों में प्रतिदिन पांच से छह लोगों को दफनाया जाता था. आज वहां 60 से 70 लोगों को दफनाया जा रहा है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए ऐशबाग कब्रिस्तान कमेटी के इमाम अब्दुल मतीन ने बताया कि राजधानी में छोटे बड़े मिलाकर कुल लगभग 100 कब्रिस्तान हैं. ऐसे में प्रतिदिन 60 से 70 डेड बॉडी को दफनाया जा रहा है.

बता दें कि लखनऊ नगर निगम सीमा के अंतर्गत 21 श्मशान घाट हैं जबकि 42 कब्रिस्तान हैं और 3 ईसाइयों के कब्रिस्तान हैं. बावजूद इसके लगातार इन श्मशान घाट और कब्रिस्तान पर बड़ी संख्या में शव आ रहे हैं जहां पर इनका अंतिम संस्कार किया जा रहा है.

शवों को जलाने के लिए जगह की पड़ रही कमी
राजधानी लखनऊ में संक्रमण की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है नगर निगम ने भले ही डेड बॉडी के अंतिम संस्कार के लिए अतिरिक्त प्लेटफार्म की व्यवस्था की है. इसके बावजूद भी डेड बॉडी को जलाने के लिए जगह की कमी पड़ रही है. यही कारण है कि गुलाला घाट के पार्क में रिवर फ्रंट पर लोग अपनों का दाह संस्कार कर रहे हैं. इतना ही नहीं कई इलाकों में खाली पड़ी जगहों में भी लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर हो रहे हैं.

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