लखनऊ: उत्तर प्रदेश में 6 महीने बाद होने वाले नगर निकाय चुनावों के मद्देनजर लखनऊ में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की आबादी पता करने के लिए रैपिड सर्वे शुरू किया गया. इसे लेकर लखनऊ नगर निगम के कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के पार्षदों की ओर से आपत्ति दर्ज कराई गई है. उनका तर्क है कि जब पूरा चुनाव 2011 की जनगणना पर कराया जा रहा है तो ओबीसी वर्ग की आबादी का पता लगाने के लिए रैपिड सर्वे करने की क्या जरूरत है.
पार्षदों का कहना है कि इस रैपिड सर्वे से कई वार्ड के परिसीमन में फिर बदलाव करना पड़ सकता है. 2017 में नगर निगम के चुनाव का आधार 2011 की जनसंख्या रही थी. आगामी चुनाव को भी इसी जनसंख्या के आधार पर कराने का फैसला लिया गया है. तब, सिर्फ ओबीसी वर्ग के लिए रैपिड सर्वे कराना उचित नहीं है. उधर, कार्यवाहक नगर आयुक्त अभय पांडे ने बताया कि लखनऊ में रैपिड सर्वे शासन के आदेश पर हो रहा है. अगर कोई समस्या है तो इसके बारे में शासन को रिपोर्ट भेजी जाएगी.
यह है पार्षदों का तर्क
-नगर निगम कार्यकारिणी के उपाध्यक्ष प्रदीप शुक्ला टिंकू का कहना है कि जब पूरा समय परिसीमन पुरानी आबादी के हिसाब से हो रहा है तो ओबीसी की नई आबादी को शामिल करने का कोई औचित्य नहीं है. अगर नया रैपिड सर्वे होगा तो आबादी तो बढ़ जाएगी.
-समाजवादी पार्टी के पार्षद दल के नेता यावर हुसैन रेशु का कहना है कि रैपिड सर्वे होगा तो ओबीसी वर्ग की जनसंख्या बढ़ जाएगी. जबकि बाकी अन्य वर्गों की जनसंख्या वैसी ही रहेगी.
-कांग्रेस पार्षद दल की नेता ममता चौधरी का कहना है कि इस बार लखनऊ नगर निगम में 88 नए गांव जोड़े गए हैं. वहां ग्राम पंचायत के चुनाव के लिए रैपिड सर्वे हुआ होगा. अगर ओबीसी की नई आबादी जोड़ी जाती है तो परिसीमन को फिर से बदलना पड़ेगा.
15 जुलाई तक भेजी जानी है रिपोर्ट
लखनऊ समेत पूरे उत्तर प्रदेश में आगामी 6 महीनों में नगर निकाय चुनाव होने हैं. इसके मद्देनजर शासन की तरफ से पिछड़ी जातियों का पता लगाने के लिए घरों और परिवारों का रैपिड सर्वे कराने की प्रक्रिया शुरू की गई है. आगामी 15 जुलाई तक शासन को इस संबंध में रिपोर्ट भेजी जानी है. सर्वे में शिक्षकों शिक्षामित्रों और नगर निगम के कर्मचारियों को वार्ड में जाकर सर्वे करने के निर्देश दिए गए हैं.
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