लखनऊ: रक्षा मंत्री और लखनऊ से सांसद राजनाथ सिंह ने रविवार को चारबाग इलाके में स्थित रविंद्रालय में मेधावी छात्रों का सम्मान किया. इस मौके पर उन्होंने छात्रों को सफलता का मूल मंत्र दिया और मेधावी छात्रों के उज्जवल भविष्य की कामना की. उन्होंने छात्रों से कहा कि कितने भी बड़े पद पर पहुंच जाएं, लेकिन मर्यादा और शालीनता का हमेशा ख्याल रखें. जीवन में किसी कीमत पर मर्यादा नहीं टूटनी चाहिए. रक्षा मंत्री ने रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत के प्रधानमंत्री के कहने पर थोड़ी देर के लिए दोनों देशों की तरफ से युद्ध रोके जाने का भी किस्सा सुनाया, साथ ही मौलवी साहब का एक वाकया भी छात्रों के सामने रखा.
संबोधित के समय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हम रावण की पूजा नहीं करते हैं, जबकि रावण बड़ा विद्वान था. हम भगवान राम की पूजा इसीलिए करते हैं, क्योंकि वे हमेशा मर्यादा का पालन करते थे. इसीलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए, हमें भी मर्यादाओं का हमेशा ख्याल रखना चाहिए. हमें समाज में सम्मान तभी मिलेगा जब हम मर्यादित और शालीन रहेंगे. समाज में सम्मान मिलना ही सबसे बड़ी पूंजी है. उन्होंने कहा कि हमेशा से ही हमारे यूथ आइकन स्वामी विवेकानंद रहे हैं और रहेंगे. हर युवा और हर छात्र के यूथ आइकन स्वामी विवेकानंद ही हैं. उन्होंने शिकागो के धर्म संसद में भारत का लोहा मनवाया था. विश्व की महाशक्ति भी आज भारत के साथ सम्मान से पेश आते हैं.
रक्षा मंत्री ने रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध के कारण विदेश में फंसे भारत के साढ़े बाइस हजार छात्रों को सुरक्षित निकालने का किस्सा सुनाया.
राजनाथ सिंह ने कहा कि जब दोनों देश युद्ध कर रहे थे, उस दौरान हमें सूचना मिली कि भारत के हजारों बच्चे यूक्रेन में फंसे हुए हैं. हमारे देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने तत्काल रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात की. यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की से बात की और इतना ही नहीं अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन से भी प्रधानमंत्री ने फोन पर बात करके कुछ देर के लिए युद्ध रोकने की बात कही. आप यकीन करिए कि दोनों देशों ने कुछ देर के लिए युद्ध रोक दिया और हमारे देश के बच्चे सुरक्षित यूक्रेन से बाहर निकलकर भारत आ गए. इससे समझा जा सकता है कि भारत का विश्व में कितना सम्मान है.
इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी अन्य देश के कहने पर 2 देशों ने युद्ध रोक दिया हो. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि जब मैं छोटा था तो मौलवी साहब हमें पढ़ाया करते थे. कभी-कभी वो नाराज होकर मार भी देते थे. उस समय हमें बहुत गुस्सा आता था और यह सभी के साथ होता है. लेकिन मुझे वह भी पल याद है जब मैं शिक्षा मंत्री बना. मौलवी साहब के गांव के बगल वाली सड़क से गुजरने वाला था. मौलवी साहब को भी यह पता था कि मेरा पढ़ाया हुआ बेटा आज शिक्षा मंत्री बन गया है और बगल गांव की सड़क से गुजरने वाला है.
मौलवी साहब आंखों से देख नहीं सकते थे, बुजुर्ग हो चुके थे. इसके बावजूद वह अपने दो बेटों के साथ उस सड़क पर पहुंचे. जैसे ही मेरी नजर मौलवी साहब पर पड़ी मैंने तुरंत अपनी गाड़ी रुकवाई और सीधे उतरकर मौलवी साहब के चरणो में नतमस्तक हो गया. बस यही सम्मान हमेशा बड़ों के लिए, अपने गुरुजनों के लिए सभी के अंदर होना चाहिए. मुझे उम्मीद है सभी मेधावी छात्र अपने गुरुजनों का सम्मान करेंगे. भविष्य में नई ऊंचाइयों को छुएंगे. मैं सभी बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं.
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