ETV Bharat / state

गेहूं निर्यात पर रोक से स्थिति संभालने की कोशिश, खरीद के साथ उत्पादन भी हुआ कम

डॉ. सत्येंद्र कुमार बताते हैं कि गत वर्षों की अपेक्षा गेहूं कम होने के कई कारण हैं. इसकी क्षेत्रीय परिस्थितियां भी हैं. खाद्य, बीज की कमी के चलते समय पर गेहूं की कई किसानों ने बुआई नहीं कर पाई. दूसरा आवारा पशु बड़े रकबे को चट कर गए हैं. वहीं, जिस समय गेहूं में पुष्प आ रहे थे, उस समय बारिश हो गई. इससे उत्पादन में 30 से 35 फीसद तक की गिरावट आई है.

etv bगेहूं निर्यात पर रोक से स्थिति संभालने की कोशिशharat
गेहूं निर्यात पर रोक से स्थिति संभालने की कोशिश
author img

By

Published : May 14, 2022, 8:06 PM IST

Updated : May 15, 2022, 11:10 AM IST

लखनऊ : भारत ने घरेलू कीमतों में वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है. सरकार का कहना है कि केवल निर्यात शिपमेंट की अनुमति होगी जो मूल रूप से सरकार द्वारा किया जाएगा. इसके पीछे की मुख्य वजह यूक्रेन-रूस युद्ध और इसके चलते उपजा खाद्य संकट है. इसे लेकर भारत में किसानों से आढ़तिया ऊंचे दामों पर गेहूं की खरीद कर रहे हैं जिसके चलते काला बाजारी की आशंका भी बढ़ गई है.

दरअसल, यूक्रेन-रूस युद्ध के शुरू होते ही वैश्विक स्तर पर भारत से गेहूं की मांग की जाने लगी. इसी बीच भारत में निजी कंपनियों ने किसानों से एमएसपी से भी ज्यादा दामों पर गेहूं खरीदना शुरू कर दिया. इसके चलते भारत सरकार की खरीद प्रक्रिया प्रभावित होने लगी. वहीं खराब मौसम के चलते इस बार देश में गेहूं का उत्पादन भी कम हुआ है. ऐसे में सरकार ने निजी कंपनियों के विदेश में गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी. वहीं किसानों से गेहूं खरीदकर स्टाक करने वाली कंपनियों पर भी चांप चढ़ाना शुरू कर दिया है.

गेहूं निर्यात पर रोक से स्थिति संभालने की कोशिश, खरीद के साथ उत्पादन भी हुआ कम

इसी क्रम में राज्य में भी किसान को गेहूं की कीमतें बिक्री केंद्रों पर सरकारी दरों के मुकाबले खुले बाजार में अधिक मिल रहीं हैं. इसके चलते सरकारी सेंटरों पर गेहूं खरीद नाकाफी रही है. यहां तक कि गांव-गांव सरकारी खरीद केंद्र खोलने की प्रक्रिया के बावजूद राज्य में गेहूं की खरीद बुरी तरह प्रभावित रही है. उधर, उत्पादन भी कम हुआ. ऐसे में संकट को भांपते हुए सरकार ने गेहूं निर्यात पर रोक लगाना जरूरी समझा है. यह कहना है लखनऊ के बीकेटी स्थित चंद्र भान गुप्त कृषि पीजी कॉलेज के विशेषज्ञ डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह का.

डॉ. सत्येंद्र कुमार बताते हैं कि गत वर्षों की अपेक्षा गेहूं कम होने के कई कारण हैं. इसकी क्षेत्रीय परिस्थितियां भी हैं. खाद्य, बीज की कमी के चलते समय पर गेहूं की कई किसानों ने बुआई नहीं कर पाई. दूसरा आवारा पशु बड़े रकबे को चट कर गए हैं. वहीं, जिस समय गेहूं में पुष्प आ रहे थे, उस समय बारिश हो गई. इससे उत्पादन में 30 से 35 फीसद तक की गिरावट आई है.

निर्यात पर रोक का क्या रहेगा असर : डॉक्टर सत्येंद्र कुमार के मुताबिक यूक्रेन और रूस में युद्ध चल रहा है. ऐसे में कई देशों में गेहूं का निर्यात प्रभावित है. देश के व्यापारी सरकारी रेट से अधिक कीमत पर गेहूं खरीदकर उसे विदेश निर्यात करने के फिराक में थे. यह रोक लगाकर सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. इससे देश को गेहूं के संकट से उबारने में मदद मिलेगी. वहीं, गरीबों को मुफ्त राशन वितरण में गेहूं की जगह चावल देने का फैसला किया है. यह निर्णय भी सरकारी स्टॉक को नियंत्रित करने में मददगार बनेगा.

यह भी पढ़ें : 'बाबरी के बाद नहीं खोना चाहते दूसरी मस्जिद' ज्ञानवापी मामले पर बोले ओवैसी

सेहत पर क्या होगा असर : लोहिया संस्थान के डॉक्टर सुब्रत चंद्रा के मुताबिक कई राज्यों में चावल से ज्यादा गेहूं के आटे की रोटी का इस्तेमाल होता है. ऐसे में स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो गेहूं में फाइबर अधिक और चावल में कम है. गेहूं में ग्लूटिन प्रोटीन अधिक होती है और चावल में कम होती है. इसके अलावा गेहूं में माइक्रो न्यूट्रिएंट होते हैं जैसे आयरन, कैल्शियम, जिंक जो चावल में बहुत कम होते हैं. यही नहीं प्रोटीन, फाइबर, एंटी ऑक्सीटेंड बेस्ट अनाज गेहूं है.

यूपी के अफसरों ने लिखा पत्र : यूपी के खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने केंद्र सराकर को चिट्ठी लिखी है. इसमें कहा कि मुफ्त राशन योजना के तहत पूर्वांचल में तो गेहूं की जगह चावल बांट देंगे. मगर पश्चिम के लोगों को कैसे गेहूं न दें. खाद्य आपूर्ति विभाग के अपर आयुक्त खाद्य अरुण कुमार सिंह ने कहा कि योजना में केंद्र सरकार ने गेहूं की जगह चावल ही आवंटित किया है. उन्होंने कहा कि पश्चिम के सात मंडलों में लोग चावल खाना पसंद नहीं करते. इसलिए केंद्र को अनुरोध पत्र भेजा है.

लखनऊ : भारत ने घरेलू कीमतों में वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है. सरकार का कहना है कि केवल निर्यात शिपमेंट की अनुमति होगी जो मूल रूप से सरकार द्वारा किया जाएगा. इसके पीछे की मुख्य वजह यूक्रेन-रूस युद्ध और इसके चलते उपजा खाद्य संकट है. इसे लेकर भारत में किसानों से आढ़तिया ऊंचे दामों पर गेहूं की खरीद कर रहे हैं जिसके चलते काला बाजारी की आशंका भी बढ़ गई है.

दरअसल, यूक्रेन-रूस युद्ध के शुरू होते ही वैश्विक स्तर पर भारत से गेहूं की मांग की जाने लगी. इसी बीच भारत में निजी कंपनियों ने किसानों से एमएसपी से भी ज्यादा दामों पर गेहूं खरीदना शुरू कर दिया. इसके चलते भारत सरकार की खरीद प्रक्रिया प्रभावित होने लगी. वहीं खराब मौसम के चलते इस बार देश में गेहूं का उत्पादन भी कम हुआ है. ऐसे में सरकार ने निजी कंपनियों के विदेश में गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी. वहीं किसानों से गेहूं खरीदकर स्टाक करने वाली कंपनियों पर भी चांप चढ़ाना शुरू कर दिया है.

गेहूं निर्यात पर रोक से स्थिति संभालने की कोशिश, खरीद के साथ उत्पादन भी हुआ कम

इसी क्रम में राज्य में भी किसान को गेहूं की कीमतें बिक्री केंद्रों पर सरकारी दरों के मुकाबले खुले बाजार में अधिक मिल रहीं हैं. इसके चलते सरकारी सेंटरों पर गेहूं खरीद नाकाफी रही है. यहां तक कि गांव-गांव सरकारी खरीद केंद्र खोलने की प्रक्रिया के बावजूद राज्य में गेहूं की खरीद बुरी तरह प्रभावित रही है. उधर, उत्पादन भी कम हुआ. ऐसे में संकट को भांपते हुए सरकार ने गेहूं निर्यात पर रोक लगाना जरूरी समझा है. यह कहना है लखनऊ के बीकेटी स्थित चंद्र भान गुप्त कृषि पीजी कॉलेज के विशेषज्ञ डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह का.

डॉ. सत्येंद्र कुमार बताते हैं कि गत वर्षों की अपेक्षा गेहूं कम होने के कई कारण हैं. इसकी क्षेत्रीय परिस्थितियां भी हैं. खाद्य, बीज की कमी के चलते समय पर गेहूं की कई किसानों ने बुआई नहीं कर पाई. दूसरा आवारा पशु बड़े रकबे को चट कर गए हैं. वहीं, जिस समय गेहूं में पुष्प आ रहे थे, उस समय बारिश हो गई. इससे उत्पादन में 30 से 35 फीसद तक की गिरावट आई है.

निर्यात पर रोक का क्या रहेगा असर : डॉक्टर सत्येंद्र कुमार के मुताबिक यूक्रेन और रूस में युद्ध चल रहा है. ऐसे में कई देशों में गेहूं का निर्यात प्रभावित है. देश के व्यापारी सरकारी रेट से अधिक कीमत पर गेहूं खरीदकर उसे विदेश निर्यात करने के फिराक में थे. यह रोक लगाकर सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. इससे देश को गेहूं के संकट से उबारने में मदद मिलेगी. वहीं, गरीबों को मुफ्त राशन वितरण में गेहूं की जगह चावल देने का फैसला किया है. यह निर्णय भी सरकारी स्टॉक को नियंत्रित करने में मददगार बनेगा.

यह भी पढ़ें : 'बाबरी के बाद नहीं खोना चाहते दूसरी मस्जिद' ज्ञानवापी मामले पर बोले ओवैसी

सेहत पर क्या होगा असर : लोहिया संस्थान के डॉक्टर सुब्रत चंद्रा के मुताबिक कई राज्यों में चावल से ज्यादा गेहूं के आटे की रोटी का इस्तेमाल होता है. ऐसे में स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो गेहूं में फाइबर अधिक और चावल में कम है. गेहूं में ग्लूटिन प्रोटीन अधिक होती है और चावल में कम होती है. इसके अलावा गेहूं में माइक्रो न्यूट्रिएंट होते हैं जैसे आयरन, कैल्शियम, जिंक जो चावल में बहुत कम होते हैं. यही नहीं प्रोटीन, फाइबर, एंटी ऑक्सीटेंड बेस्ट अनाज गेहूं है.

यूपी के अफसरों ने लिखा पत्र : यूपी के खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने केंद्र सराकर को चिट्ठी लिखी है. इसमें कहा कि मुफ्त राशन योजना के तहत पूर्वांचल में तो गेहूं की जगह चावल बांट देंगे. मगर पश्चिम के लोगों को कैसे गेहूं न दें. खाद्य आपूर्ति विभाग के अपर आयुक्त खाद्य अरुण कुमार सिंह ने कहा कि योजना में केंद्र सरकार ने गेहूं की जगह चावल ही आवंटित किया है. उन्होंने कहा कि पश्चिम के सात मंडलों में लोग चावल खाना पसंद नहीं करते. इसलिए केंद्र को अनुरोध पत्र भेजा है.

Last Updated : May 15, 2022, 11:10 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.