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तपोभूमि में नहीं है भगवान परशुराम और पिता जमदग्नि की एक भी मूर्ति

जौनपुर के जफराबाद थाना क्षेत्र स्थित जमैथा पावन स्थल जहां पर भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि और माता रेणुका ने परशुराम के साथ समय व्यतीत किया था. यह स्थान ऋषि जमदग्नि की तपोभूमि मानी जाती है. बावजूद इसके यहां पर भगवान परशुराम और जमदग्नि ऋषि की कोई भी मूर्ति नहीं है.

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भगवान परशुराम की नहीं है मूर्ति
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Published : Dec 23, 2020, 4:33 PM IST

जौनपुर: उत्तर प्रदेश की सियासत में भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने का बयान तेजी से चल रहा है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने की बात कही है. दूसरी तरफ भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि की तपोस्थली के तौर पर मशहूर जौनपुर को जमदग्निपुरम के नाम से भी जाना जाता है. मगर महर्षि जमदग्नि की तपोभूमि उपेक्षाओं की शिकार है.

भगवान परशुराम की नहीं है मूर्ति

जमैथा पावन नगरी की कहानी

मान्यता है कि जमैथा पावन नगरी जमदग्नि की तपोभूमि है. ऋषि जमदग्नि के मन में एक बार भगवान परशुराम की पिता भक्ति देखने की इच्छा जाहिर हुई. जमदग्नि ऋषि ने पुत्र परशुराम को माता रेणुका का वध करने का आदेश दिया था. पिता के आदेश का पालन करते हुए परशुराम ने माता का वध कर दिया. परशुराम के पिता भक्ति देखकर ऋषि जमदग्नि ने आशीर्वाद मांगने की बात कही. परशुराम ने माता रेणुका को जीवित करने और वध वाली घटना याद न रहने का वरदान मांगा. मां रेणुका को नया जीवन मिल गया और उनका नाम अखड़ देवी के नाम पर पड़ गया.

जमैथा उपेक्षा का शिकार

जमैथा पावन नगरी का इतिहास आदि प्राचीन होने के साथ-साथ उपेक्षाओं का भी शिकार रहा है. समय के साथ-साथ लोगों का विकास हुआ पर इस स्थान का विकास नहीं हो पाया. मंदिर आने-जाने वाले मार्ग भी सही से नहीं बने हैं. मंदिर की बात की जाए तो गोमती नदी के किनारे होने कारण भी पर्याप्त सुविधा नहीं है.

जनता और पुजारी की मांग

जौनपुर के जमैथा पावन स्थल पर भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि तपस्या करते थे. यहां पर भगवान परमहंस ने जीवित समाधि ली थी. मगर इस स्थान का किसी ने संज्ञान नहीं लिया. स्थान गोमती तट पर स्थित है, जहां पर ऋषि जमदग्नि ने तपस्या कर सिद्धियां प्राप्त की थीं. जमैठा में अखड़ देवी के नाम से मंदिर स्थापित है. अखड़ देवी मंदिर के पास ही भगवान परशुराम की समाधि स्थल है. मान्यता है कि यहां पर परशुराम ने जीवित समाधि ली थी. मंदिर में ही भगवान भोलेनाथ, दुर्गा और हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है. यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं. मंदिर तक आने-जाने का मार्ग सही नहीं है. मंदिर के पास से ही पुल का निर्माण किया जा रहा है जो अधूरा पड़ा हुआ है. मंदिर में दर्शन करने आए अजीत कुमार यादव ने बताया कि जौनपुर महर्षि जमदग्नि की तपोस्थली है. इसके अलावा उनकी पत्नी देवी माता अखड़ों देवी का मंदिर है. पहले चबूतरा होता था पर वर्तमान में यहां पर कुछ नहीं है. भगवान परशुराम और जमदग्नि ऋषि की तपोस्थली होने के बावजदूद यहां पर उनकी कोई मूर्ति नहीं है.

यह पावन नगरी जमैथा महर्षि जमदग्नि और भगवान परशुराम की तपोभूमि है. यहां पर किसी की मूर्ति स्थापित नहीं है. यहां पर गोमती आरती की शुरुआत होना चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग यहां दर्शन करने आएं. ग्रामीणों की ओर से दिए गए चंदे से ही गुजारा होता है.

राजन दास महाराज, पुजारी, मंदिर

ये जमदग्नि ऋषि की तपोभूमि है. मगर उनकी कोई मूर्ति यहां स्थापित नहीं है. यह मंदिर उपेक्षा का शिकार बना हुआ है. मंदिर के थोड़ा आगे परशुराम जी की माता अखड़ों देवी का मंदिर है. लोग बताते हैं कि बहुत पहले जमदग्नि ऋषि की मूर्ति हुआ करती थी, लेकिन मूर्ति गिर जाने के बाद वहां पर कोई मूर्ति नहीं लगाई गई.

मंगल दास, मंदिर के मुख्य महंत

जौनपुर: उत्तर प्रदेश की सियासत में भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने का बयान तेजी से चल रहा है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने की बात कही है. दूसरी तरफ भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि की तपोस्थली के तौर पर मशहूर जौनपुर को जमदग्निपुरम के नाम से भी जाना जाता है. मगर महर्षि जमदग्नि की तपोभूमि उपेक्षाओं की शिकार है.

भगवान परशुराम की नहीं है मूर्ति

जमैथा पावन नगरी की कहानी

मान्यता है कि जमैथा पावन नगरी जमदग्नि की तपोभूमि है. ऋषि जमदग्नि के मन में एक बार भगवान परशुराम की पिता भक्ति देखने की इच्छा जाहिर हुई. जमदग्नि ऋषि ने पुत्र परशुराम को माता रेणुका का वध करने का आदेश दिया था. पिता के आदेश का पालन करते हुए परशुराम ने माता का वध कर दिया. परशुराम के पिता भक्ति देखकर ऋषि जमदग्नि ने आशीर्वाद मांगने की बात कही. परशुराम ने माता रेणुका को जीवित करने और वध वाली घटना याद न रहने का वरदान मांगा. मां रेणुका को नया जीवन मिल गया और उनका नाम अखड़ देवी के नाम पर पड़ गया.

जमैथा उपेक्षा का शिकार

जमैथा पावन नगरी का इतिहास आदि प्राचीन होने के साथ-साथ उपेक्षाओं का भी शिकार रहा है. समय के साथ-साथ लोगों का विकास हुआ पर इस स्थान का विकास नहीं हो पाया. मंदिर आने-जाने वाले मार्ग भी सही से नहीं बने हैं. मंदिर की बात की जाए तो गोमती नदी के किनारे होने कारण भी पर्याप्त सुविधा नहीं है.

जनता और पुजारी की मांग

जौनपुर के जमैथा पावन स्थल पर भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि तपस्या करते थे. यहां पर भगवान परमहंस ने जीवित समाधि ली थी. मगर इस स्थान का किसी ने संज्ञान नहीं लिया. स्थान गोमती तट पर स्थित है, जहां पर ऋषि जमदग्नि ने तपस्या कर सिद्धियां प्राप्त की थीं. जमैठा में अखड़ देवी के नाम से मंदिर स्थापित है. अखड़ देवी मंदिर के पास ही भगवान परशुराम की समाधि स्थल है. मान्यता है कि यहां पर परशुराम ने जीवित समाधि ली थी. मंदिर में ही भगवान भोलेनाथ, दुर्गा और हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है. यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं. मंदिर तक आने-जाने का मार्ग सही नहीं है. मंदिर के पास से ही पुल का निर्माण किया जा रहा है जो अधूरा पड़ा हुआ है. मंदिर में दर्शन करने आए अजीत कुमार यादव ने बताया कि जौनपुर महर्षि जमदग्नि की तपोस्थली है. इसके अलावा उनकी पत्नी देवी माता अखड़ों देवी का मंदिर है. पहले चबूतरा होता था पर वर्तमान में यहां पर कुछ नहीं है. भगवान परशुराम और जमदग्नि ऋषि की तपोस्थली होने के बावजदूद यहां पर उनकी कोई मूर्ति नहीं है.

यह पावन नगरी जमैथा महर्षि जमदग्नि और भगवान परशुराम की तपोभूमि है. यहां पर किसी की मूर्ति स्थापित नहीं है. यहां पर गोमती आरती की शुरुआत होना चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग यहां दर्शन करने आएं. ग्रामीणों की ओर से दिए गए चंदे से ही गुजारा होता है.

राजन दास महाराज, पुजारी, मंदिर

ये जमदग्नि ऋषि की तपोभूमि है. मगर उनकी कोई मूर्ति यहां स्थापित नहीं है. यह मंदिर उपेक्षा का शिकार बना हुआ है. मंदिर के थोड़ा आगे परशुराम जी की माता अखड़ों देवी का मंदिर है. लोग बताते हैं कि बहुत पहले जमदग्नि ऋषि की मूर्ति हुआ करती थी, लेकिन मूर्ति गिर जाने के बाद वहां पर कोई मूर्ति नहीं लगाई गई.

मंगल दास, मंदिर के मुख्य महंत

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