लखनऊ : उत्तर प्रदेश का बजट 22 फरवरी को पेश होगा. इस बजट में पुलिसकर्मियों को अपने जर्जर आवासों में सुधार होने की आस है. एक तरफ पुलिस महकमे के आला अफसर भारी सुरक्षा के बीच वातानुकूलित घरों में रह रहे हैं तो दूसरी तरफ पुलिसकर्मियों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है. न ही कोई उन्हें देखने वाला है. जनता की सेवा में 24 घंटे तत्पर रहने वाले पुलिसकर्मियों का परिवार दहशत में जीने को मजबूत है.
लखनऊ स्थित पुलिस लाइन में 1300 से ज्यादा पुलिस कर्मियों के लिए आवास बने हुए हैं. इनमें से कई आवासों की हालत खराब है. जर्जर आवासों में दीवारों ने दरवाजों का साथ छोड़ दिया है. छतों का प्लास्टर गिर रहा है. बारिश में टपकते पानी ने आवासों की स्थिति और भयावह बना दी है. पुलिस लाइन में कौन सी बिल्डिंग कब ढह जाए, कोई नहीं जानता. इसी दहशत के बीज पुलिसकर्मियों के परिवार रहने के लिए मजबूर हैं.
जर्जर है पुलिसकर्मियों के आवास
लखनऊ स्थित पुलिस लाइन के कई ब्लॉक जर्जर घोषित हो चुके हैं. इनमें आज भी पुलिसकर्मियों के परिवार रहने को मजबूर है. यकीन नहीं हो रहा है कि जिन्दगी इतनी सस्ती हो गई है. न तो आला अधिकारी इसको लेकर चिंतित हैं और न ही सरकार. लखनऊ पुलिस लाइन का हाल जानने की ETV भारत ने कोशिश की, तो बदहाल तस्वीर सामने आई. यहां रखरखाव के लिए धन तो आवंटित हो रहा है, पर जा कहां रहा है कुछ पता नहीं.
इन आवासों में रहने वाले पुलिस कर्मियों के परिवारों ने खुलकर ETV भारत से अपना दर्द बयां किया. पिछले 15 सालों से पुलिस आवास में रहने वाली ममता यादव बताती हैं कि उनके पति एसटीएफ में हैं. उनके आवास की हालत इतनी खराब है कि उन्हें डर लगता है. कई घरों में छतों से प्लास्टर गिर रहा है. इसके कारण अब सरिया भी दिखाई देने लगी है. कुछ भी टूट-फूट होने पर पुलिसकर्मियों को अपने पैसों से ही मरम्मत करानी पड़ती है.
50 हजार लगाकर कराई मरम्मत
पुलिसकर्मी के अभिषेक सिंह बताते हैं कि उनके आवास की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि अभी उन्होंने 50 हजार लगाकर मरम्मत कराई है. तब जाकर कुछ रहने लायक घर हुआ है. यहां मरम्मत का कोई काम नहीं होता है. अधिकारी आते हैं और देख कर चले जाते हैं. यहां बने आवास इतने जर्जर हो चुके हैं कि कब ढह जाएं, कहा नहीं जा सकता.
आवासों की मरम्मत के लिए दिए गए हैं 600 करोड़
पुलिस के लिए बजट में फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए 20 करोड़ रुपये का बजट दिया गया था. इसके अलावा पुलिस विभाग के अनावासीय भवनों के लिए 650 करोड़, पुलिस कॉलोनियों के लिए 600 करोड़, नवसृजित जनपदों में पुलिस विभाग के लिये 300 करोड़, पुलिस अपग्रेडेशन के लिए 122 करोड़ का प्रावधान किया गया था.