लखनऊ: जिले में कोरोनावायरस से संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है. सैकड़ों की संख्या में रोजाना मरीज आइसोलेट किए जा रहे हैं. कोरोनावायरस से संक्रमित गंभीर मरीजों में प्लाज्मा थेरेपी की प्रक्रिया राजधानी के दो अस्पतालों में अपनाई जा रही है. अब संस्थागत रिसर्च के आधार पर डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में भी कोविड-19 के मरीजों में प्लाज्मा थेरेपी की प्रक्रिया शुरू की जाने वाली है.
डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के पैथोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ सुब्रत चंद्रा ने बताया कि कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों में प्लाज्मा थेरेपी की प्रक्रिया किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी और संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट में किया जा रहा है. लोहिया संस्थान की ओर से 2 महीने पहले आईसीएमआर से प्लाज्मा थेरेपी की प्रक्रिया कोविड-19 के मरीजों में शुरू करने के लिए अनुमति मांगी गई थी. यह अनुमति की प्रक्रिया अभी अधर में है.
डॉक्टर चंद्रा ने बताया कि प्लाज्मा थेरेपी प्रक्रिया पूरी करने के लिए एक प्रोसीजर अपनाया जाता है. इसे अब तक अन्य बीमारियों के इलाज में किया जाता रहा है. डॉक्टर चंद्रा कहते हैं कि हमारे संस्थान में कुछ ऑटोइम्यून डिजीज के मरीजों में प्लाज्मा थेरेपी दी जाती है और उन मरीजों में यह कारगर भी साबित हुई है. कोविड-19 के मरीजों के लिए सरकार की तरफ से एक गाइडलाइन सेट की गई थी. इस गाइडलाइन के तहत ही आईसीएमआर से कोविड-19 के मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी देने से पहले अनुमति लेना अनिवार्य है. इसी वजह से हम उनमें अभी तक प्लाज्मा थेरेपी की शुरुआत नहीं कर सके हैं.
इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च की ओर से यह कहा गया है कि यदि डॉक्टर अपने मरीज के लिए प्लाज्मा थेरेपी की प्रक्रिया को देना ठीक समझता है तो उन्हें वहां दिया जा सकता है. इसी क्रम में अब डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में इंटरनल सोर्सेस और इंट्रा म्यूरल प्रोजेक्ट के तहत कुछ मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है.
डॉक्टर चंद्रा ने बताया कि संस्थान में हमने एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत लगभग 100 मरीजों का डाटा इकट्ठा किया है. यह वे पेशेंट हैं जो कोविड-19 से संक्रमित होकर अस्पताल में भर्ती हुए थे और यहां से स्वस्थ होकर गए हैं. इन मरीजों के ठीक होने के बाद 10 से 20 दिनों के भीतर ही प्लाज्मफरेसिस के जरिए इनसे एंटीबॉडीज हम लेंगे और दूसरे कोविड-19 के मरीजों को दिया जा सकेगा. 10 से 20 दिनों के भीतर कोविड-19 से स्वस्थ हुए मरीज में एंटीबॉडीज की संख्या सर्वाधिक होती है.
डॉ चंद्रा ने बताया कि प्लाज्मा थेरेपी की प्रक्रिया में कई रिसर्च किए गए हैं किसी भी मरीज से प्लाज्मा एक लिमिटेड अमाउंट में लिया जाता है. गाइडलाइंस के अनुसार यह अमाउंट सिर्फ 500ml ताकि होता है. रिसर्च में यह सामने आया है कि 500ml में ही इतनी एंटीबॉडी मौजूद होती है कि यदि हम पेशेंट में प्लाज्मा चढ़ाते हैं तो 50% तक के मरीजों में इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं.
फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लोहिया संस्थान में भर्ती कोविड-19 से संक्रमित कुछ गंभीर रोगियों पर ही प्लाज्मा थेरेपी की प्रक्रिया अपनाई जाएगी. संस्थान अभी भी आईसीएमआर के प्लाजमा थेरेपी शुरू करने की प्रक्रिया की अनुमति का इंतजार कर रहा है.