लखनऊ : पर्यावरण के साथ लगातार हो रहा खिलवाड़ बाढ़ और सूखे सहित अन्य प्राकृतिक आपदाओं को न्यौता दे रही है. वृक्षों की अंधाधुंध कटान, अत्यधिक जल दोहन, लगातार बढ़ती जनसंख्या, फैक्ट्रियों से जहर उगता धुंआ, हर रोज घरों से बड़ी तादाद में निकलने वाला कचरा आदि ऐसी समस्याएं हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है. इसी कारण धरती का तापमान भी लगातार बढ़ रहा है, जिससे ग्लेशियर पिघल कर समुद्री जलस्तर भी बढ़ा रहे हैं. चिंता की बात यह है कि इस सबके लिए जिम्मेदार समाज का बड़ा तबका आज भी जागरूक नहीं हो सका है.
![उफान पर नदियां (फाइल फोटो)](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/28-07-2023/19119767_ni789.jpg)
इस समय प्रदेश ही नहीं, पूरे देश की नदियां उफान पर हैं. बाढ़ के कारण न सिर्फ जनहानि होती है, बल्कि करोड़ों की संपत्तियों का भी नुकसान होता है. अत्यधिक बाढ़, भीषण गर्मी और अकाल जैसी प्राकृतिक आपदाएं पर्यावरण संकट के कारण ही पैदा हो रही हैं. यदि लोग जागरूक हो जाएं, तो यह संकट कम हो सकता है. प्रदेश में जंगल लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं. जैसे-जैसे शहरीकरण हो रहा है, इमारती लकड़ी के लिए पेड़ों की कटान भी लगातार बढ़ती जा रही है. वहीं कोयला बनाने के लिए भी बड़ी मात्रा में लकड़ी का प्रयोग किया जाता है. प्रदेश में अधिकांश ईंट भट्ठे भी लकड़ी की काफी खपत करते हैं. जिस पेड़ के बड़े होने में दशकों लगते हैं, उसे मिनटों में काटकर नष्ट कर दिया जाता है. अच्छा हो कि लोग इसके स्थान पर विकल्पों का उपयोग करें.
![कानपुर में गंगा का जलस्तर बढ़ा](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/28-07-2023/19119767_ni9999.jpg)
यदि भूगर्भ जल की बात करें, तो प्रदेश की लगभग अस्सी फीसद फसलों की सिंचाई के लिए भूगर्भ जल का ही उपयोग किया जाता है. नहरों का तंत्र मांग के अनुरूप बढ़ नहीं पा रहा है. लोग अपने क्षेत्र में पानी की उपलब्धता को ध्यान में रखे बगैर ऐसी फसलें उपजा रहे हैं, जिनमें अत्यधिक पानी का उपयोग होता है. मसलन गन्ना और केले का प्रदेश में उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. इन फसलों के लिए किसानों को अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है, जिसे भूजल से पूरा किया जाता है. सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए कि जहां जिस तरह के जल संसाधन हों, वहां उसी तरह की फसलें उपजाई जाएं, लेकिन हमारी सरकारें स्थिति भयावह होने पर ही जागती हैं. व्यावसायिक उपयोग के लिए फैक्ट्री आदि में भी ज्यादातर भूजल ही लिया जाता है. यह वाकई चिंताजनक स्थिति है.
![यमुना नदी का जलस्तर बढ़ा](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/28-07-2023/19119767_ni23.jpg)
कभी न नष्ट होने वाली पॉलीथिन का प्रयोग रोकने की सरकारी कोशिशें भी हास्यास्पद हैं. 2007 से लेकर आज तक बसपा, सपा और भाजपा आदि की सरकारें सत्ता में आईं. सभी ने पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगाने के लिए आदेश दिए पर अनुपालन कोई भी नहीं करा सका. शायद यह इन दलों और सरकारों के लिए गंभीर विषय है ही नहीं. दुखद यह है कि लोग भी जागरूक नहीं हो रहे हैं. किसी भी बाजार और सब्जी मंडी आदि में लोग खरीदारी करते दिखेंगे, पर उनके पास थैला नहीं होगा. सब पॉलीथिन के सहारे ही बाजार निकलते हैं खरीदारी के लिए. ऐसा नहीं है कि इस पर प्रतिबंध लगा पाना सरकार के बस की बात नहीं है. असल बात यह है कि इसके लिए कई भी गंभीर नहीं है. यही पॉलीथिन शहरों में कूड़े का भंडार बढ़ा रही है और धरती की उर्वरा शक्ति का नाश भी कर रही है.
![बाढ़ से करोड़ों का नुकसान (फाइल फोटो)](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/28-07-2023/19119767_ni567.jpg)
इस संबंध में पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ डीके गुप्ता कहते हैं 'वनों और कृषि योग्य भूमि का क्षरण, जल दोहन, रेल और पत्थर आदि के खनन के लिए प्रकृति को बहुत नुकसान पहुंचाया जा रहा है. देश की आबादी भी तेजी से बढ़ रही है और हम आबादी के लिहाज से दुनिया के सबसे बड़े देश बन गए हैं. जाहिर है कि इतनी बड़ी आबादी के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन होगा, जो हमारे ही नहीं, हमारी भावी पीढ़ियों के लिए भी खतरनाक है. ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ना भी तय है. बाढ़, सूखा, चक्रवात आदि जैसी समस्याएं झेलने के लिए भी हमें तैयार रहना होगा. इन समस्याओं से निपटने का एक ही उपाय है कि जनसंख्या वृद्धि, बढ़ती संसाधनों की खपत और असमान वितरण आदि पर रोक लगाने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे. जाहिर है कि इसके लिए सरकार को जल्दी से जल्दी चेतना होगा.'