लखनऊ: उत्तर प्रदेश में खिलाड़ियों को तैयार करने वाले अधिकांश कोच संविदा पर तैनात हैं, जिनको कई-कई महीने वेतन नहीं मिलता है. दूसरी ओर खेल हॉस्टल और स्टेडियम का भी बुरा हाल है. ओलिंपिक एसोसिएशन भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है. खुद ओलिंपिक एसोसिएशन महासचिव महिला खिलाड़ी के यौन शोषण में फंसे हुए हैं. देश की सबसे बड़ी आबादी वाला प्रदेश पदक तालिका में काफी निचले पायदान पर नजर आ रहा है. कॉमनवेल्थ, एशियाड और ओलंपिक्स में यूपी (Commonwealth Asiad and Olympic games in up) का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा है.
इस बार देश को मिलने वाले 61 पदकों में से 73 फीसदी पदक पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के खिलाड़ियों ने दिलाए हैं. वहीं, उत्तर प्रदेश के 83 फीसदी खिलाड़ी खाली हाथ लौटे हैं. तेलंगाना और चंडीगढ़ के सभी खिलाड़ियों ने पदक जीते हैं. यहां हम बता रहे हैं कि किस राज्य के कितने खिलाड़ी राष्ट्रमंडल खेलों का हिस्सा बने थे और उनमें से कितने फीसदी खिलाड़ियों ने पदक जीते हैं या पदक में अपना योगदान दिया है. भारत को 61 पदक दिलाने में कुल 107 खिलाड़ियों का योगदान है. उत्तर प्रदेश से कुल 12 खिलाड़ियों ने विगत राष्ट्र मंडल खेलों में भाग लिया था जिनमें से दो ने पदक जीते. पंजाब और हरियाणा जैसे यूपी से छोटे राज्यों ने कहीं ज्यादा पदक जीते जिसके पीछे पर्याप्त वजह हैं.
संविदा कोचों की आवाज उठाने वाले विकास यादव ने बताया कि उत्तर प्रदेश खेल निदेशालय और ओलिंपिक एसोसिशन दोनों में ही समस्या है. खेल निदेशालय ने अधिकांश को संविदा पर रखा है. वह भी जरूरत से 75 फीसदी कम है. उत्तर प्रदेश में 550 संविदा कोच की आवश्यकता है. मगर केवल 125 कोच तैनात हैं. इस व्यवस्था को भी ठेके पर दे दिया है. 25000 रुपये महीना कोचों को दिया जाता है जो कि निजी एजेंसी के माध्यम से मिलता है. इसका मतलब सरकार निजी एजेंसी को अतिरिक्त भुगतान कर रही है. इसकी क्या आवश्यकता है. इस संबंध में कोई जवाब किसी अधिकारी के पास नहीं है.
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इसके अलावा ओलंपिक एसोसिएशन के महासचिव पर जो आरोप लगा वह जगजाहिर है. इन सारी चीजों से खेलों का नुकसान हो रहा है. विकास का कहना है कि उत्तर प्रदेश हरियाणा और पंजाब की तरह खेलों में तभी आगे निकलेगा, जब यहां खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों की आवश्यकताओं को पूरा किया जाएगा. वास्तविकता यह है कि उत्तर प्रदेश में केवल ढांचागत निर्माण पर भी जोर दिया जा रहा है जिसमें जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है. दूसरी ओलंपिक एसोसिएशन भी सिलेक्शन और खिलाड़ियों के प्रशिक्षण में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है. जिसकी वजह से कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश को वह कामयाबी नहीं मिल पा रही है, जो मिलनी चाहिए.
ओलंपिक एसोसिएशन इस तरह से हो रहा खेलों का बंटाधार
उत्तर प्रदेश ओलंपिक एसोसिएशन में सिलेक्शन से लेकर प्रशिक्षण तक भ्रष्टाचार के आरोप हैं. महिला खिलाड़ियों के साथ दुर्व्यवहार होना, शोषण किया जाना, ये तमाम आरोप कभी हवाओं में तो कभी कागजों में शिकायतों के रूप में सामने आते रहते हैं. हालिया घटना उत्तर प्रदेश ओलंपिक एसोसिएशन के महासचिव आनंदेश्वर पांडे को लेकर है. सशस्त्र सीमा बल में काम करने वाली एक हैंडबॉल खिलाड़ी ने राजस्थान में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है कि केडी सिंह बाबू स्टेडियम में एक प्रशिक्षण शिविर के दौरान उन्होंने उसके साथ बलात्कार किया. इस मामले में मुकदमा दर्ज हुआ. मगर उत्तर प्रदेश पुलिस राजस्थान की इस एफआईआर पर कुछ नहीं कर रही है. ऐसे ही कई अन्य मामले भी सामने आते रहते हैं. इस मामले में आनंदेश्वर पांडे अपने आप को दोषमुक्त बताते हैं. उनका कहना है कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए. यह मांग वह खुद कर रहे हैं. यह महिला खिलाड़ी टीम से भी निकाली जा चुकी है. वह लगातार झूठे आरोप लगाती रहती है.
खेलकूद विभाग के अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल का इस बारे में कहना है कि अभी मैंने हाल ही में इस पद को ग्रहण किया है. मुझे कुछ समय सारी व्यवस्थाओं को समझने में लगेगा. इसके बाद में बता पाऊंगा कि आने वाले समय में किस तरह से खेल विभाग में बेहतर व्यवस्थाएं करके खेल और खिलाड़ियों की स्थिति को सुधारा जाएगा. दूसरी ओर सरकार की ओर से भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हीरो बाजपेई ने कहा कि खेलों में सुधार के लिए योगी सरकार के पिछले 6 साल में काफी काम हुए हैं. पदक विजेता खिलाड़ियों के लिए नगद पुरस्कार राशि बढ़ाई गई है. खिलाड़ियों के लिए ओएसडी पद आरक्षित किए जा रहे हैं और मेरठ में फिर विश्वविद्यालय की स्थापना बहुत जल्द हो जाएगी.
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