लखनऊ: उत्तर प्रदेश में भीषण बिजली संकट के चलते उपभोक्ताओं की हो रही समस्याओं, सिस्टम ओवरलोड होने, 1912 पर उपभोक्ताओं की शिकायतों (Petition filed over consumer complaints) पर ज्यादातर मामलों में फर्जी रिपोर्ट लगाने मुआवजा कानून को 1912 से प्रभावी तरीके से लागू न किए जाने, बिजली विभाग की रेटिंग खराब होने के बावजूद विभाग में तीन आईएएस की नई तैनाती किए जाने के प्रस्ताव के विरोध में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने यूपी विद्युत नियामक आयोग (UP Electricity Regulatory Commission) में याचिका दाखिल कर दी है. "ईटीवी भारत" ने कस्टमर केयर हेल्पलाइन 1912 पर शिकायत दर्ज न होने के चलते मुआवजे का फायदा उपभोक्ताओं को कैसे मिलेगा? इसको लेकर आवाज उठाई थी.
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने नियामक आयोग के चेयरमैन आरपी सिंह, सदस्य बीके श्रीवास्तव व संजय कुमार सिंह से मुलाकात की. लोक महत्त्व याचिका दाखिल करते हुए यूपी विद्युत नियामक आयोग से विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 42 (1) के तहत हस्तक्षेप करने की मांग की (ETV Bharat Impact). यह भी मांग की है कि जब 1912 पूरी तरीके से प्रभावी नहीं है वहां पर उपभोक्ताओं के फोन तक नहीं उठते तो उसके माध्यम से उपभोक्ताओं को मुआवजा कैसे मिलेगा? इसलिए विद्युत नियामक आयोग बिजली कंपनियों को निर्देश दें कि जिन इलाकों में विद्युत का व्यवधान हुआ है.
तय समय के तहत उसका निदान नहीं हुआ उस क्षेत्र के सभी विद्युत उपभोक्ताओं के बिजली बिलों में मुआवजा दिया जाए. जहां एक तरफ प्रदेश के विद्युत उपभोक्ता परेशान हो रहे हैं वहीं उन्हें मुआवजा से भी वंचित करना कानूनन गलत है. नियामक आयोग के चेयरमैन आरपी सिंह ने कहा कि उपभोक्ता परिषद की तरफ से उठाए गए मामले निश्चित तौर पर गंभीर हैं. नियामक आयोग विद्युत अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं को बेहतर विद्युत आपूर्ति सिस्टम सुधार और सुविधा के लिए उचित कार्रवाई करेगा.
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि बिजली कंपनियों की तरफ से पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन ने जो पीक डिमांड अधिकतम वर्ष 2023- 24 की 27,531 मेगावाट अनुमानित की, वह भी सही नहीं निकली, जबकि उपभोक्ता परिषद लगातार कह रहा है कि डिमांड 28,000 मेगावाट को पार करेगी. इसी प्रकार ब्रेकडाउन का मामला हो, चाहे अपनी लाइफ पूरी कर चुके वितरण ट्रांसफार्मर को बदलने का मामला हो, चाहे फिर 800 से ज्यादा ट्रांसफार्मर रोज जलने की वजह से विद्युत व्यावधन का मामला, सभी में बिजली कंपनियां तय समय से उसका निस्तारण करने में फेल हो रही हैं.
ऐसे में विद्युत नियामक आयोग का हस्तक्षेप करना बहुत जरूरी हो गया है. जिस प्रकार से भीषण बिजली संकट के दौरान 1912 से उपभोक्ताओं की शिकायतों का गलत निस्तारण दिखाया गया मुआवजा कानून पर कोई बात करने वाला नहीं है और अनेकों समस्याओं से उपभोक्ता जूझ रहे हैं. ऐसे में बिजली कंपनियों की तकनीकी दक्षता और तकनीकी जरूरत को आकलित करना बहुत जरूरी हो गया है.
उनका कहना है कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है जहां पर यदि ब्रेकडाउन को शामिल कर लिया जाए तो डिमांड 29 हजार मेगावाट के ऊपर चली गई है जो भारत में सबसे ज्यादा है. ऐसे में वर्तमान में बिजली कंपनियों की तकनीकी दक्षता पर गंभीरता से विचार विमर्श किए जाने की बहुत ही जरूरी है. उपभोक्ता परिषद ने अपनी याचिका में बिजली कंपनियों में सिस्टम सहित अनेकों मामलों में तकनीकी गिरावट और साथ ही पिछले दिनों भारत सरकार की रेटिंग में सी माइनस ग्रेड प्राप्त करने के बावजूद सुधार के नाम पर बिजली कंपनियों में तीन अतिरिक्त आईएएस की तैनाती पर विचार किया जाना तकनीकी पहलुओं को नजरअंदाज करने की साजिश है.
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