लखनऊ. कांग्रेस पार्टी ने यूपी में 32 साल का वनवास खत्म करने के लिए तमाम जतन किए लेकिन उसके वनवास की अवधि चुनाव परिणाम आने के बाद 5 साल और बढ़ गई है. कांग्रेस पार्टी ने यूपी फतह के लिए देश के विभिन्न राज्यों से आधा दर्जन से अधिक राष्ट्रीय सचिवों को यूपी की कमान सौंपी थी. यह फौज पिछले काफी समय से प्रदेश के विभिन्न जिलों में काम भी कर रही थी. हालांकि जब नतीजे आए तो इस फौज का परफॉर्मेंस सिफर रहा.
ऐसे में पार्टी के कार्यकर्ताओं की आलाकमान से मांग है कि प्रदेश अध्यक्ष से इस्तीफा लेने के बाद अब राष्ट्रीय सचिवों से भी सवाल-जवाब होना चाहिए. आखिर उन्होंने किस तरह से मेहनत की जिससे कांग्रेस का मत प्रतिशत गिरकर 2.33 ही रह गया. सीटें भी घटकर 2 ही रह गईं.
कांग्रेस पार्टी के नेता लगातार कहते रहे कि पहली बार बूथ स्तर तक पार्टी का संगठन खड़ा हो गया है. वहीं, जब यूपी चुनाव का रिजल्ट आया तो संगठन की कलई खुल गई. आलम यह है कि प्रदेश की तमाम विधानसभाओं में ब्लॉक और न्याय पंचायत स्तर पर गठित किए गए संगठन का एक व्यक्ति भी नहीं मिला.
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तमाम जगह कांग्रेस पार्टी का बस्ता उठाने वाला भी कोई नहीं था. पार्टी की तरफ से जो संगठन सृजन अभियान चलाया गया था, उसकी भी पोल विधानसभा चुनाव में खुल गई. पार्टी के 6 से ज्यादा राष्ट्रीय सचिवों की फौज पूरे विश्वास के साथ वक्तव्य देती थी कि यूपी में कांग्रेस पार्टी पूर्ण बहुमत की सरकार बना रही है. परिणामों ने इन सभी राष्ट्रीय सचिवों की फौज को शर्मिंदा होने पर मजबूर कर दिया. यह अलग बात है कि अब वे लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की बात कहकर हाईकमान को बरगलाने में लग गए हैं.
दरअसल, कांग्रेस पार्टी यूपी विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सके, इसके लिए देश के विभिन्न राज्यों से यूपी कांग्रेस को संजीवनी देने आए राष्ट्रीय सचिव को अलग-अलग जिलों का प्रभार सौंपा गया था. राष्ट्रीय सचिव अपने-अपने प्रभार क्षेत्रों में लगातार सभाएं और संपर्क करते रहे.
यही नहीं, वे प्रत्याशियों का सर्वे कर रिपोर्ट आलाकमान को सौंपते रहे लेकिन प्रत्याशियों के चयन में घोर लापरवाही इन सह प्रभारियों की भी उजागर हुई है. बेहद कमजोर प्रत्याशियों का चयन किया गया जिससे जीत के दरवाजे पर प्रत्याशी दस्तक तक नहीं दे पाए.
यूपी कांग्रेस में पिछले कई साल से प्रत्याशियों के चयन का काम कर रहे राष्ट्रीय सचिवों पर टिकट बिक्री के गंभीर आरोप लगे. पहले कई जगहों पर प्रत्याशियों के चयन को लेकर सवाल खड़े हुए तो कई जगह पर प्रत्याशी को टिकट मिलने के बाद टिकट काटकर दूसरे प्रत्याशी को टिकट देने पर सवाल खड़े हुए.
यूपी के विभिन्न जनपदों की विधानसभाओं से तमाम ऐसी शिकायतें और ऑडियो सामने आए, जिसमें राष्ट्रीय सचिवों पर ही प्रत्याशियों के चयन में पैसे लेने का आरोप लगाया गया.
यह हैं राष्ट्रीय सचिव, इन जिलों का था प्रभार
1. धीरज गुर्जर (11 जिले) : गाजियाबाद, गौतम बुद्धनगर, हापुड़, मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर, बागपत, बिजनौर, मेरठ, बुलंदशहर, अमरोहा.
2. रोहित चौधरी (10 जिले) : आगरा, मथुरा, फिरोजाबाद, हाथरस, एटा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, औरैया.
3. बाजीराव खाड़े (11 जिले): प्रयागराज, कौशांबी, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, चंदौली, जौनपुर, गाजीपुर, आजमगढ़, मऊ, बलिया.
4. राजेश तिवारी (13 जिले): बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थ नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, वाराणसी, प्रतापगढ़, अंबेडकर नगर, बाराबंकी, सुल्तानपुर, अयोध्या.
5. सत्यनारायण पटेल (12 जिले): कानपुर, कानपुर देहात, हरदोई, लखनऊ, सीतापुर, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, बहराइच, अमेठी, रायबरेली उन्नाव.
6. तौकीर आलम (10 जिले): संभल, कासगंज, अलीगढ़, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, मुरादाबाद, पीलीभीत, लखीमपुर, रामपुर.
7. प्रदीप नरवाल (8 जिले): ललितपुर, जालौन, झांसी, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, बांदा, फतेहपुर.
कांग्रेस यूपी प्रवक्ता आसिफ रिजवी ने कहा कि कहीं न कहीं यूपी विधानसभा चुनाव में जनता के बीच हम अपनी बात और मुद्दों को पहुंचाने में नाकाम रहे. लिहाजा हमारी पार्टी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई. जहां तक बात राष्ट्रीय सचिवों के परफॉरमेंस की है तो पंचायत स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक समीक्षा की जा रही है. इसका जो भी नतीजा निकलेगा, वह सामने आ जाएगा.
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