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बेसुध सरकार : जान जोखिम में डालकर गोमती नदी पार करते हैं लोग

लखनऊ में लोग हर रोज अपनी जान जोखिम में डालकर लकड़ी के पुल से नदी पार करते हैं. लोगों का कहना है कि नेता पक्का पुल बनवाने के वादे तो करते है लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई उनकी सुध नहीं लेता.

जान जोखिम में डालने को मजबूर
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Published : Apr 21, 2019, 10:04 AM IST

लखनऊ : प्रदेश की राजधानी सियासत का गढ़ मानी जाती है. यहां आये दिन नेताओं का आना जाना लगा रहता है. इसके बावजूद भी पिछले कई दशकों से लोग अपनी जान जोखिम में डालकर लकड़ी के खस्ताहाल पुल से गुजरने को मजबूर हैं. इसके चलते कई बड़े हादसे भी हो चुके है. लोगों का कहना है कि नेताओं ने पुल बनबाने के तमाम वादे किए लेकिन हालात में कोई सुधार नहीं हुआ.

स्थानीय लोगों से बात करते संवाददाता

जान जोखिम में डालने को मजबूर

  • राजधानी में लोग हर रोज अपनी जान जोखिम में डालकर लकड़ी के पुल से नदी पार करने को मजबूर हैं.
  • लोगों का कहना है कि चुनावी मौसम आते ही यहां नेताओं का तांता लग जाता है.
  • नेता पक्का पुल बनवाने के तमाम वादे भी करते हैं.
  • चुनाव जीतने के बाद इस इलाके में बाद दिखते भी नहीं हैं.
  • स्थानीय लोगों की का कहना है कि अब तक दर्जनों लोग लकड़ी के पुल की वजह से अपनी जान गवा चुके हैं.
  • लेकिन किसी को हमारी कोई परवाह नहीं.

इलाके के लोगों का कहना है कि बारिश में यह पुल हटा लिया जाता है और तब नदी पार करने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है. लेकिन प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है.
मो. बसीम, स्थानीय

लखनऊ : प्रदेश की राजधानी सियासत का गढ़ मानी जाती है. यहां आये दिन नेताओं का आना जाना लगा रहता है. इसके बावजूद भी पिछले कई दशकों से लोग अपनी जान जोखिम में डालकर लकड़ी के खस्ताहाल पुल से गुजरने को मजबूर हैं. इसके चलते कई बड़े हादसे भी हो चुके है. लोगों का कहना है कि नेताओं ने पुल बनबाने के तमाम वादे किए लेकिन हालात में कोई सुधार नहीं हुआ.

स्थानीय लोगों से बात करते संवाददाता

जान जोखिम में डालने को मजबूर

  • राजधानी में लोग हर रोज अपनी जान जोखिम में डालकर लकड़ी के पुल से नदी पार करने को मजबूर हैं.
  • लोगों का कहना है कि चुनावी मौसम आते ही यहां नेताओं का तांता लग जाता है.
  • नेता पक्का पुल बनवाने के तमाम वादे भी करते हैं.
  • चुनाव जीतने के बाद इस इलाके में बाद दिखते भी नहीं हैं.
  • स्थानीय लोगों की का कहना है कि अब तक दर्जनों लोग लकड़ी के पुल की वजह से अपनी जान गवा चुके हैं.
  • लेकिन किसी को हमारी कोई परवाह नहीं.

इलाके के लोगों का कहना है कि बारिश में यह पुल हटा लिया जाता है और तब नदी पार करने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है. लेकिन प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है.
मो. बसीम, स्थानीय

Intro:उत्तर प्रदेश की राजधानी सियासत का गढ़ मानी जाती है, यहां पर तमाम राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेताओं का लगभग रोज ही आना जाना लगा रहता है लेकिन राजधानी लखनऊ का एक इलाका ऐसा भी है जहां पर बड़ी आबादी होने के बावजूद पिछले कई दशकों से बड़े बूढ़े और पढ़ने वाले छात्र अपनी जान की बाजी लगाकर लकड़ी के खस्ताहाल पुल से रोज गुजरते हैं, जिसके चलते कई बड़े हादसे भी हो चुके हैं। इलाके के लोगों का कहना है कि कई दशक गुजर गए लेकिन नेताओं ने अब तक सिर्फ वादे किए जिसके चलते आज भी जान जोखिम में डालकर लोगों को इस रास्ते को रोज़ पार करना होता है।


Body:लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है ऐसे में तमाम सियासी पार्टियों के नुमाइंदे जनता से अपनी पार्टी के लिए वोट करने की अपील करते दिखाई दे रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का एक इलाका ऐसा भी है जहां पर बुनियादी सुविधाएं तो दूर की बात यहां तक कि इलाके में जाने के लिए गोमती नदी पर बना एक ऐसे लकड़ी के पुल को पार करना पड़ता है जिससे कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। स्थानीय लोगों की माने तो दर्जनों जाने इस लकड़ी के पुल की वजह से अब तक जा चुकी हैं। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि चुनाव के वक्त में तमाम नेता पक्का पुल बनाने का वादा करते है लेकिन चुनाव निकल जाने पर आज तक इस इलाके में पक्का पुल नही बना।


Conclusion:गौरतलब है कि लकड़ी का टूटा हुआ यह पुल पीपे वाले पुल के नाम से मशहूर है जो दशकों पुराना है लेकिन आज तक यहाँ पर पक्का पुल किसी भी पार्टी की ओर से नही बनवाया गया है जिसकी वजह से इस टूटे हुए पुल को रोजाना पार करने वालों को अपनी जान की बाजी लगाना पड़ती है जिसमें औरतें बच्चों के साथ स्कूल के छात्र छात्राएं भी होती हैं। वहीं इलाके के लोगों की अगर माने तो बारिश में यह पुल हटा लिया जाता है और तब नदी पार करने के लिए लोगों को नाव का सहारा लेना पड़ता है, ऐसे में सवाल यह उठता है कि विकास के नाम पर वोट मांगने वाली तमाम सियासी पार्टिया आखिर कब इस पुल का निर्माण कराएंगी।
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