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विकास किस चिड़िया का नाम है 'साहब', आज भी खाट पर सवार हैं जिंदगियां

मैनपुर विकासखंड के धनौरा पंचायत के आश्रित गांव पतियालपारा और लोहारपारा के लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. लगभग 200 की आबादी वाले पतियालपारा में आज तक न हैंडपंप हैं और न ही यहां सड़कें बनीं है, जिसके चलते ग्रामीणों को हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

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आज भी खाट पर सवार हैं जिंदगियां
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Published : Jan 30, 2020, 12:56 PM IST

गरियाबंद: सरकार विकास के लाख दावे करे, लेकिन जमीनी हकीकत पर हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं, इसकी गवाही गरियाबंद का पतियालपारा गांव दे रहा है. जहां आजादी के 70 साल बाद भी एक पुल का निर्माण नहीं हो पाया है. इतना ही नहीं इस गांव में न तो सड़कें हैं, न ही पीने के लिए पानी की सुविधा है. अगर कोई बीमार पड़ गया, तो उसे अस्पताल तक ले जाने की सुविधा नहीं, जिससे मरीज को खाट पर ही ले जाना पड़ता है. यहां के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.

आज भी खाट पर सवार हैं जिंदगियां.

बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं लोग
मैनपुर विकासखंड के धनौरा पंचायत के आश्रित गांव पतियालपारा और लोहारपारा के लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. लगभग 200 की आबादी वाले पतियालपारा में आज तक न एक भी हैंडपंप हैं और न ही सड़कें बनीं है, जिससे ग्रामीणों को हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन गांवो में समस्याओं का अंबार है. इतना ही नहीं लोहरपारा के ग्रामीणों को पीने के लिए साफ पानी तक नसीब नहीं है. लोग झिरिया बनाकर पानी पीते हैं.

कच्ची पगडंडी पर चलने को मजबूर लोग
ग्रामीणों ने बताया कि यही हाल सड़कों का भी है. पंचायत मुख्यालय से तकरीबन 5 किलोमीटर की कच्ची पगडंडी के सहारे मेन सड़क तक वह जाते हैं, तब जाकर के एंबुलेंस मिलती है. सड़क नहीं होने के कारण मरीज को खाट पर ही ले जाना पड़ता है. प्रशासन ने बार-बार आवेदन करने के बाद भी हमारी गुहार नहीं सुनी, जिससे परेशान होकर गुजर बसर करने के लिए लकड़ी का पुल बनाकर आवागमन करते हैं, जो वो भी टूटने लगा है. इससे ग्रामीणों को जान जोखिम में डालकर पुल पार करना पड़ता है.

बुनियादी सुविधाओें के लिए तरस रहे लोग
सरपंच ने बताया कि ग्रामीणों के साथ जिम्मेदारों के पास जाकर कई मर्तबा बुनियादी सुविधाओं की मांग कर चुके हैं, लेकिन हमारे आवेदन को दरकिनार कर दिया जाता है. ऐसे में सवाल अब ये उठता है कि जो जनता नंगे पांव कई किलोमीटर पैदल चलकर वोट देने आती है. आज वही सरकार इन ग्रामीणों को बुनियादी जरुरतों के लिए तरसा रही है. जो एक चिंता का विषय है कि क्या राजनीतिक दल सिर्फ वादें करने के लिए है, उसे निभाने के लिए नहीं.

गरियाबंद: सरकार विकास के लाख दावे करे, लेकिन जमीनी हकीकत पर हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं, इसकी गवाही गरियाबंद का पतियालपारा गांव दे रहा है. जहां आजादी के 70 साल बाद भी एक पुल का निर्माण नहीं हो पाया है. इतना ही नहीं इस गांव में न तो सड़कें हैं, न ही पीने के लिए पानी की सुविधा है. अगर कोई बीमार पड़ गया, तो उसे अस्पताल तक ले जाने की सुविधा नहीं, जिससे मरीज को खाट पर ही ले जाना पड़ता है. यहां के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.

आज भी खाट पर सवार हैं जिंदगियां.

बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं लोग
मैनपुर विकासखंड के धनौरा पंचायत के आश्रित गांव पतियालपारा और लोहारपारा के लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. लगभग 200 की आबादी वाले पतियालपारा में आज तक न एक भी हैंडपंप हैं और न ही सड़कें बनीं है, जिससे ग्रामीणों को हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन गांवो में समस्याओं का अंबार है. इतना ही नहीं लोहरपारा के ग्रामीणों को पीने के लिए साफ पानी तक नसीब नहीं है. लोग झिरिया बनाकर पानी पीते हैं.

कच्ची पगडंडी पर चलने को मजबूर लोग
ग्रामीणों ने बताया कि यही हाल सड़कों का भी है. पंचायत मुख्यालय से तकरीबन 5 किलोमीटर की कच्ची पगडंडी के सहारे मेन सड़क तक वह जाते हैं, तब जाकर के एंबुलेंस मिलती है. सड़क नहीं होने के कारण मरीज को खाट पर ही ले जाना पड़ता है. प्रशासन ने बार-बार आवेदन करने के बाद भी हमारी गुहार नहीं सुनी, जिससे परेशान होकर गुजर बसर करने के लिए लकड़ी का पुल बनाकर आवागमन करते हैं, जो वो भी टूटने लगा है. इससे ग्रामीणों को जान जोखिम में डालकर पुल पार करना पड़ता है.

बुनियादी सुविधाओें के लिए तरस रहे लोग
सरपंच ने बताया कि ग्रामीणों के साथ जिम्मेदारों के पास जाकर कई मर्तबा बुनियादी सुविधाओं की मांग कर चुके हैं, लेकिन हमारे आवेदन को दरकिनार कर दिया जाता है. ऐसे में सवाल अब ये उठता है कि जो जनता नंगे पांव कई किलोमीटर पैदल चलकर वोट देने आती है. आज वही सरकार इन ग्रामीणों को बुनियादी जरुरतों के लिए तरसा रही है. जो एक चिंता का विषय है कि क्या राजनीतिक दल सिर्फ वादें करने के लिए है, उसे निभाने के लिए नहीं.

Intro:स्लग---विकास की जरुरत
एंकर----एसी कमरों में बैठने वाले अधिकारी और चमचमाती गाडियों में घूमने वाले नेता विकास के कितने ही दावे करें मगर गरियाबंद जिले में ऐसे गॉवों की कमी नही है जो नही जानते कि विकास किस चिडिया का नाम है, देखिए एक रिपोर्ट..........
Body:वीओ 1----कई बार कुछ कहने के लिए कुछ बोलने की भी जरुरत नही पडती, तस्वीरें या परिस्थितियां अपने आप ही सबकुछ ब्यां कर देती है, इन तस्वीरों को देखकर भी कुछ कहने की जरुरत नही है, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहॉ किस तरह का विकास हुआ है, अपने आप सबकुछ ब्यां करती ये तस्वीरें मैनपुर विकासखंड के धनौरा पंचायत के आश्रित गॉव पतियालपारा और लोहारपारा की है, जहॉ के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के मोहताज है, लगभग 200 की आबादी वाले पतियालपारा में एक हैंडपंप है जो हमेशा खराब रहता है और 17 परिवारों के लोहारपारा में कोई हैंडपंप ही नही है, इसलिए दोनों गॉव के लोग मजबूरी में झेरिया का पानी पीते है, यही हाल यहॉ के पहुंच मार्ग का है, पंचायत मुख्यालय से 5 किमी की कच्ची पगडंडी के सहारे ही ग्रामीण अपना सफर तय करते है, बरसात के दिनो में बीच रास्ते में पडने वाले नाला में बाड आने के कारण अवाजाही पुरी तरह बंद हो जाती है, तस्वीरों में नजर आने वाला लकडी से बना रपटा भी ग्रामीणों ने खुद ही बनाया है, ताकि कम से कम मरीजो को तो चार पाई पर लेटाकर अस्पताल तक ले जाया जा सके।
बाइट 1----ग्रामीण.............
बाइट 2----ग्रामीण...............
वीओ 2----ऐसा नही है कि ग्रामीणों ने कभी अपना दुख दर्द जिम्मेदारों को ना बताया हो बल्कि अपनी पहुंच के मुताबिक ग्रामीणों ने कई बार जनपद कार्यालय में आवेदन देकर बुनियादी सुविधाओं की मांग की मगर हर बार उनकी मांग और आवेदन को दरकिनार किया गया, डर के मारे गॉव के सरपंच भले ही दो साल से आवेदन देकर मांग करने की बात कह रहे हो जबकि ग्रामीणों की माने तो वे कई सालों से आवेदन करते आ रहे है, मगर आज तक उनके आवेदनों पर गोर नही किया गया।
बाइट 3----नीलांबर मांझी, सरपंच...............
Conclusion:फाईनल वीओ-----जब असलियत की तस्वीरें सामने हो तो बहाना करना या झुठ बोलना मुश्किल हो जाता है, बेहतर होता है कि कुछ भी ना बोला जाये, इस मामले में भी अधिकारियों का रवैया कुछ ऐसा ही रहा, अधिकारी बात करने से कतराते नजर आये, मगर क्या आंखो पर पर्दा डाल लेने से सच्चाई छुप जायेगी या फिर ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान हो जायेगा, जिम्मेदार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को इस पर खुद चिंतन करने की जरुरत है।
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