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दिल दिमाग पर न हावी होने दें कोई बात, वरना हो सकते हैं ओसीडी के शिकार - ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसआर्डर के मरीज

राजधानी के अस्पतालों में इन दिनों रोजाना चार से पांच ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसआर्डर (ओसीडी) के मरीज पहुंच रहे हैं. सिविल अस्पताल की साइकियाट्रिक एक्सपर्ट ने बताया कि इस बीमारी में मरीज को किस तरह की समस्या आती है.

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Published : Jan 6, 2023, 3:48 PM IST

सिविल अस्पताल की साइकियाट्रिक एक्सपर्ट डॉ. दीप्ति सिंह

लखनऊ : भारत में इन दिनों कई मरीज ओसीडी (ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसआर्डर) से ग्रसित देखे जा रहे हैं. अस्पताल की ओपीडी में इस बीमारी से ग्रसित मरीज पहुंच रहे हैं. सिविल अस्पताल की साइकियाट्रिक एक्सपर्ट डॉ. दीप्ति सिंह ने बताया कि ओसीडी बीमारी में ऑब्सेशन और कम्पलशन होता है. आब्सेशन का मतलब एक ही तरह का कोई विचार बार-बार मन में आना होता है. यह विचार सही नहीं है, इसका पता होता है, लेकिन लोग उसको कंट्रोल नहीं कर पाते. जिससे एंजायटी होने लगती है. इससे काम पर ध्यान न लगना, पढ़ाई में दिक्कत, परेशान रहना, बिजनेस में पीछे होना, रिश्तों पर ध्यान न लगना आदि जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं. इसके बाद इन विचारों को कंट्रोल करने के लिए लोग अपना ध्यान हटाने के लिए अन्य चीजों पर जबरदस्ती फोकस करने लगते हैं, जिसे कम्पलशन कहते हैं.

डॉ दीप्ति ने बताया कि ओपीडी में बहुत सारे ऐसे मरीज आते हैं जो ओसीडी से ग्रसित होते हैं, लेकिन ऐसे मरीज कभी भी अपनी हरकतों को हमसे बताते नहीं हैं. इसलिए एक विशेषज्ञ होने के नाते हमेशा हम ऐसे मरीजों को कहते हैं कि उन्हें जो भी विचार मन में आ रहे हैं, जिस तरह के भी विचार हैं, उन्हें एक कागज पर लिखें और जब अस्पताल की ओपीडी में आएं तो वह हमें दें. मरीज कभी भी गंदे विचारों वाली बात न तो स्वीकार करता है और न ही डॉक्टर से बताता है. ऐसे में मरीज बुरी तरह से ओसीडी से ग्रसित रहते हैं. कभी भी ओसीडी से पीड़ित मरीज स्वयं अस्पताल चलकर नहीं आता है. उसकी हरकतें वह खुद नहीं समझ पाता है. जब परिवार वाले उसकी हरकतें देखते हैं तब उसके बाद परिजन मरीज को लेकर अस्पताल आते हैं.

उन्होंने बताया कि ओसीडी के मरीजों को एक दिक्कत और भी होती है कि बार-बार हाथ धोना या फिर घर से बाहर निकलते समय कई बार ताले को चेक करना. अगर यह एक दो बार होता है तो नॉर्मल है, लेकिन अगर यह बार-बार 10 से 15 बार होता है तो यह नॉर्मल नहीं है. ओसीडी में बहुत व्यवस्थित रखने की आदत भी होती है. कोई भी चीज इधर से उधर न हो. अगर कोई व्यक्ति उस चीज को छू देता है तो व्यक्ति भड़क जाता है. रोजाना अस्पताल में चार से पांच केस ओसीडी में आते हैं, जिनके साथ उनके परिजन होते हैं. मरीज खुद अपनी बातों को कभी नहीं बताता, परिजन बोलने का दबाव बनाते हैं या फिर खुद ही उसकी हरकतों को बताते हैं. अस्पताल में जो मरीज आते हैं उन्हें हम यह बताते हैं कि यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह एक डिसऑर्डर है. जिससे मरीज अगर चाहे तो ठीक हो सकता है. बस थोड़ी संयम की जरूरत होती है.

उन्होंने बताया कि जब भी ओसीडी के मरीज आते हैं तो उन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट दिया जाता है. ओसीडी के मरीजों का इलाज थेरेपी के द्वारा भी हो सकता है. दवाइयों के जरिए और कुछ अन्य तरीकों से भी कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं. उदाहरण के लिए कोई मरीज है जो बार-बार हाथ धोने का आदी है, उसके दोनों हाथों में मिट्टी लगाकर उसके हाथों को बांध देते हैं. किसी तरह से वह चार पांच मिनट बर्दाश्त करता है. इसी तरह से उसका ट्रीटमेंट चलाते हैं धीरे-धीरे यह बीमारी कंट्रोल होने लगती है. दवाओं से केमिकल बैलेंस हो जाता है.

ये होती है समस्या : अकेला रहना अच्छा लगना, अंदर ही अंदर घुटते रहना, बॉडी के फंक्शन पर प्रभाव, पढ़ाई या ऑफिस में मन न लगना, चिड़चिड़ापन, आत्महत्या के विचार या कोशिश.

यह भी पढ़ें : घने कोहरे व ठंडी हवाओं से कांपा उत्तर प्रदेश, पूर्वी तथा पश्चिमी इलाकों में जनजीवन अस्त व्यस्त

सिविल अस्पताल की साइकियाट्रिक एक्सपर्ट डॉ. दीप्ति सिंह

लखनऊ : भारत में इन दिनों कई मरीज ओसीडी (ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसआर्डर) से ग्रसित देखे जा रहे हैं. अस्पताल की ओपीडी में इस बीमारी से ग्रसित मरीज पहुंच रहे हैं. सिविल अस्पताल की साइकियाट्रिक एक्सपर्ट डॉ. दीप्ति सिंह ने बताया कि ओसीडी बीमारी में ऑब्सेशन और कम्पलशन होता है. आब्सेशन का मतलब एक ही तरह का कोई विचार बार-बार मन में आना होता है. यह विचार सही नहीं है, इसका पता होता है, लेकिन लोग उसको कंट्रोल नहीं कर पाते. जिससे एंजायटी होने लगती है. इससे काम पर ध्यान न लगना, पढ़ाई में दिक्कत, परेशान रहना, बिजनेस में पीछे होना, रिश्तों पर ध्यान न लगना आदि जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं. इसके बाद इन विचारों को कंट्रोल करने के लिए लोग अपना ध्यान हटाने के लिए अन्य चीजों पर जबरदस्ती फोकस करने लगते हैं, जिसे कम्पलशन कहते हैं.

डॉ दीप्ति ने बताया कि ओपीडी में बहुत सारे ऐसे मरीज आते हैं जो ओसीडी से ग्रसित होते हैं, लेकिन ऐसे मरीज कभी भी अपनी हरकतों को हमसे बताते नहीं हैं. इसलिए एक विशेषज्ञ होने के नाते हमेशा हम ऐसे मरीजों को कहते हैं कि उन्हें जो भी विचार मन में आ रहे हैं, जिस तरह के भी विचार हैं, उन्हें एक कागज पर लिखें और जब अस्पताल की ओपीडी में आएं तो वह हमें दें. मरीज कभी भी गंदे विचारों वाली बात न तो स्वीकार करता है और न ही डॉक्टर से बताता है. ऐसे में मरीज बुरी तरह से ओसीडी से ग्रसित रहते हैं. कभी भी ओसीडी से पीड़ित मरीज स्वयं अस्पताल चलकर नहीं आता है. उसकी हरकतें वह खुद नहीं समझ पाता है. जब परिवार वाले उसकी हरकतें देखते हैं तब उसके बाद परिजन मरीज को लेकर अस्पताल आते हैं.

उन्होंने बताया कि ओसीडी के मरीजों को एक दिक्कत और भी होती है कि बार-बार हाथ धोना या फिर घर से बाहर निकलते समय कई बार ताले को चेक करना. अगर यह एक दो बार होता है तो नॉर्मल है, लेकिन अगर यह बार-बार 10 से 15 बार होता है तो यह नॉर्मल नहीं है. ओसीडी में बहुत व्यवस्थित रखने की आदत भी होती है. कोई भी चीज इधर से उधर न हो. अगर कोई व्यक्ति उस चीज को छू देता है तो व्यक्ति भड़क जाता है. रोजाना अस्पताल में चार से पांच केस ओसीडी में आते हैं, जिनके साथ उनके परिजन होते हैं. मरीज खुद अपनी बातों को कभी नहीं बताता, परिजन बोलने का दबाव बनाते हैं या फिर खुद ही उसकी हरकतों को बताते हैं. अस्पताल में जो मरीज आते हैं उन्हें हम यह बताते हैं कि यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह एक डिसऑर्डर है. जिससे मरीज अगर चाहे तो ठीक हो सकता है. बस थोड़ी संयम की जरूरत होती है.

उन्होंने बताया कि जब भी ओसीडी के मरीज आते हैं तो उन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट दिया जाता है. ओसीडी के मरीजों का इलाज थेरेपी के द्वारा भी हो सकता है. दवाइयों के जरिए और कुछ अन्य तरीकों से भी कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं. उदाहरण के लिए कोई मरीज है जो बार-बार हाथ धोने का आदी है, उसके दोनों हाथों में मिट्टी लगाकर उसके हाथों को बांध देते हैं. किसी तरह से वह चार पांच मिनट बर्दाश्त करता है. इसी तरह से उसका ट्रीटमेंट चलाते हैं धीरे-धीरे यह बीमारी कंट्रोल होने लगती है. दवाओं से केमिकल बैलेंस हो जाता है.

ये होती है समस्या : अकेला रहना अच्छा लगना, अंदर ही अंदर घुटते रहना, बॉडी के फंक्शन पर प्रभाव, पढ़ाई या ऑफिस में मन न लगना, चिड़चिड़ापन, आत्महत्या के विचार या कोशिश.

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