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शैक्षिक योग्यता, नैतिकता को किनारे रख जिताऊ और टिकाऊ प्रत्याशी को तरजीह देती हैं पार्टियां

चुनाव से पहले राजनैतिक दल तमाम बड़ी बातें करते हैं. वह चाहे शैक्षिक योग्यता की हो, अनुशासन की या फिर नैतिक आचरण की. चुनावी मैदान में तमाम मानकों को दरकिनार कर जिताऊ और टिकाऊ प्रत्याशी को ही तरजीह देती हैं. फिर चाहें प्रत्याशी आपराधिक प्रवृत्ति का ही क्यों न हो.

लोकसभा चुनाव
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Published : Mar 29, 2019, 3:20 PM IST

लखनऊ : चुनाव से पहले विभिन्न राजनीतिक दल प्रत्याशियों के चयन को लेकर तमाम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. बात चाहे फिर उनकी शैक्षिक योग्यता की हो, अनुशासन की या फिर नैतिक आचरण की. जब प्रत्याशी मैदान में उतारने का समय आता है तो पार्टियां सारी नैतिकता और तमाम मानकों को दरकिनार कर जिताऊ और टिकाऊ प्रत्याशी को ही तरजीह देती हैं. फिर चाहें प्रत्याशी आपराधिक प्रवृत्ति का ही क्यों न हो. ऐसे प्रत्याशियों से कोई भी दल अछूता नहीं है. दल चाहे भारतीय जनता पार्टी हो या कांग्रेस, सपा हो या बसपा या फिर अन्य दल। योग्यता, अनुशासन और नैतिकता सिर्फ कागजी बातें होती हैं.

जिताऊ और टिकाऊ प्रत्याशी को तरजीह देती हैं पार्टियां

प्रत्याशियों के चयन को लेकर पार्टियों ने कागज पर तो अपने तमाम मानक बना रखे हैं, लेकिन वास्तविकता में यह मानक कोई मायने नहीं रखते. जिस क्षेत्र में जिस प्रत्याशी की ताकत का एहसास पार्टियों को हो जाता है और उन्हें लगता है कि यह कैंडिडेट चुनाव में उनके लिए सही रहेगा तो सभी मानक किनारे रख दिए जाते हैं और प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया जाता है. कहने को तो पार्टियों ने शैक्षिक योग्यता के साथ ही नैतिक आचरण को अपने प्रत्याशी चयन का मुख्य आधार रखा है, लेकिन यह सब निराधार ही है. पार्टियां सिर्फ जिताऊ प्रत्याशी का चयन करती हैं. न कभी उनका आपराधिक रिकॉर्ड खंगालने की कोशिश करती हैं और न ही उनकी शिक्षा-दीक्षा या नैतिक आचरण की कोई फिक्र करती हैं. चुनावों में अब तक के प्रत्याशियों पर अगर नजर डाली जाए तो तमाम ऐसे प्रत्याशी राजनीति में आए आपराधिक रिकॉर्ड रहा है.

हमारी पार्टी के जो मानक हैं, उनमें कांग्रेस की विचारधारा के अंतर्गत कौन लोग आते हैं, कौन लोग कांग्रेस के झंडे के नीचे आना चाहते हैं और कौन-कौन कांग्रेस के परचम को लेकर चलना चाहते हैं. यह सब हमारे मानक हैं. जहां तक बात धनबल के बल पर चुनाव जीतने की है तो कांग्रेस पार्टी मानती है कि धन के बल पर कभी चुनाव नहीं जीता जा सकता. चुनाव जन बल के आधार पर ही जीतना संभव है.

लखनऊ : चुनाव से पहले विभिन्न राजनीतिक दल प्रत्याशियों के चयन को लेकर तमाम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. बात चाहे फिर उनकी शैक्षिक योग्यता की हो, अनुशासन की या फिर नैतिक आचरण की. जब प्रत्याशी मैदान में उतारने का समय आता है तो पार्टियां सारी नैतिकता और तमाम मानकों को दरकिनार कर जिताऊ और टिकाऊ प्रत्याशी को ही तरजीह देती हैं. फिर चाहें प्रत्याशी आपराधिक प्रवृत्ति का ही क्यों न हो. ऐसे प्रत्याशियों से कोई भी दल अछूता नहीं है. दल चाहे भारतीय जनता पार्टी हो या कांग्रेस, सपा हो या बसपा या फिर अन्य दल। योग्यता, अनुशासन और नैतिकता सिर्फ कागजी बातें होती हैं.

जिताऊ और टिकाऊ प्रत्याशी को तरजीह देती हैं पार्टियां

प्रत्याशियों के चयन को लेकर पार्टियों ने कागज पर तो अपने तमाम मानक बना रखे हैं, लेकिन वास्तविकता में यह मानक कोई मायने नहीं रखते. जिस क्षेत्र में जिस प्रत्याशी की ताकत का एहसास पार्टियों को हो जाता है और उन्हें लगता है कि यह कैंडिडेट चुनाव में उनके लिए सही रहेगा तो सभी मानक किनारे रख दिए जाते हैं और प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया जाता है. कहने को तो पार्टियों ने शैक्षिक योग्यता के साथ ही नैतिक आचरण को अपने प्रत्याशी चयन का मुख्य आधार रखा है, लेकिन यह सब निराधार ही है. पार्टियां सिर्फ जिताऊ प्रत्याशी का चयन करती हैं. न कभी उनका आपराधिक रिकॉर्ड खंगालने की कोशिश करती हैं और न ही उनकी शिक्षा-दीक्षा या नैतिक आचरण की कोई फिक्र करती हैं. चुनावों में अब तक के प्रत्याशियों पर अगर नजर डाली जाए तो तमाम ऐसे प्रत्याशी राजनीति में आए आपराधिक रिकॉर्ड रहा है.

हमारी पार्टी के जो मानक हैं, उनमें कांग्रेस की विचारधारा के अंतर्गत कौन लोग आते हैं, कौन लोग कांग्रेस के झंडे के नीचे आना चाहते हैं और कौन-कौन कांग्रेस के परचम को लेकर चलना चाहते हैं. यह सब हमारे मानक हैं. जहां तक बात धनबल के बल पर चुनाव जीतने की है तो कांग्रेस पार्टी मानती है कि धन के बल पर कभी चुनाव नहीं जीता जा सकता. चुनाव जन बल के आधार पर ही जीतना संभव है.

Intro:शैक्षिक योग्यता, नैतिकता को किनारे रख जिताऊ और टिकाऊ प्रत्याशी को तरजीह देती हैं राजनीतिक पार्टियां

लखनऊ। चुनाव से पहले विभिन्न राजनीतिक दल प्रत्याशियों के चयन को लेकर तमाम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। बात चाहे फिर उनकी शैक्षिक योग्यता की हो, अनुशासन की या फिर नैतिक आचरण की। जब प्रत्याशी मैदान में उतारने का समय आता है तो पार्टियां सारी नैतिकता और तमाम मानकों को दरकिनार कर जिताऊ और टिकाऊ प्रत्याशी को ही तरजीह देती हैं। फिर चाहे प्रत्याशी आपराधिक प्रवृत्ति का ही क्यों न हो। ऐसे प्रत्याशियों से कोई भी दल अछूता नहीं है। दल चाहे भारतीय जनता पार्टी हो या कांग्रेस, सपा हो या बसपा या फिर अन्य दल। योग्यता, अनुशासन और नैतिकता सिर्फ कागजी बातें होती हैं।


Body:प्रत्याशियों के चयन को लेकर पार्टियों ने कागज पर तो अपने तमाम मानक बना रखे हैं, लेकिन वास्तविकता में यह मानक कोई मायने नहीं रखते। जिस क्षेत्र में जिस प्रत्याशी की ताकत का एहसास पार्टियों को हो जाता है और उन्हें लगता है कि यह कैंडिडेट चुनाव में उनके लिए सही रहेगा तो सभी मानक किनारे रख दिए जाते हैं और प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया जाता है। कहने को तो पार्टियों ने शैक्षिक योग्यता के साथ ही नैतिक आचरण को अपने प्रत्याशी चयन का मुख्य आधार रखा है, लेकिन यह सब निराधार ही है। पार्टियां सिर्फ जिताऊ प्रत्याशी का चयन करती हैं। न कभी उनका आपराधिक रिकॉर्ड खंगालने की कोशिश करती हैं और न ही उनकी शिक्षा-दीक्षा या नैतिक आचरण की कोई फिक्र करती हैं। चुनावों में अब तक के प्रत्याशियों पर अगर नजर डाली जाए तो तमाम ऐसे प्रत्याशी राजनीति में आए आपराधिक रिकॉर्ड रहा है।







Conclusion:बाइट
हमारी पार्टी के जो मानक हैं उनमें कांग्रेस की विचारधारा के अंतर्गत कौन लोग आते हैं, कौन लोग कांग्रेस के झंडे के नीचे आना चाहते हैं और कौन-कौन कांग्रेस के परचम को लेकर चलना चाहते हैं। यह सब हमारे मानक हैं। जहां तक बात धनबल के बल पर चुनाव जीतने की है तो कांग्रेस पार्टी मानती है कि धन के बल पर कभी चुनाव नहीं जीता जा सकता। चुनाव जन बल के आधार पर ही जीतना संभव है।

-डॉ. प्रमोद पांडेय, मुख्य संगठक, कांग्रेस सेवा दल

बाइट

हिंदुस्तान के संविधान में चुनाव लड़ने के लिए शैक्षिक आधार जरूरी नहीं है। सभी को चुनाव लड़ने का हक दिया गया है। भारतीय जनता पार्टी का एक सीधा सा सिद्धांत है कि जो हमारे परिवार में, हमारी आस्था में विश्वास रखता है, जो हमारी नीतियों में विश्वास रखता है, जो हमारे नेतृत्व में विश्वास रखता है उसे हम चुनाव लड़ाने के लिए मैदान में उतारते हैं। कार्यकर्ताओं की तरफ से जो फीडबैक भी आता है वह भी एक आधार होता है। जहां तक बात आपराधिक रिकॉर्ड चेक कराने की होती है तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने के बारे में उसने कितने अच्छे कार्य किए या कितने खराब कार्य, इसकी जानकारी विपक्ष और मीडिया को जरूर होती है। उसे भी आधार के रूप में प्रत्याशी के चयन के समय रखा जाता है।

हीरो बाजपेई, प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी
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