लखनऊ. पनियाला को जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) दिलाने की योगी सरकार की पहल औषधीय गुणों से भरपूर इस फल के लिए संजीवनी साबित होगी. इससे लुप्तप्राय (obsolescent) हो चले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर के इस फल की पूछ बढ़ जाएगी. सरकार द्वारा इसकी ब्रांडिंग से भविष्य में यह भी टेरोकोटा की तरह गोरखपुर का ब्रांड बन सकता है.
पहल परवान चढ़ी तो लाखों किसानों को मिलेगा लाभ : योगी सरकार की यह पहल सफल रही तो इसका लाभ न केवल गोरखपुर के किसानों को बल्कि देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती के लाखों किसानों-बागवानों को मिलेगा. क्योंकि ये सभी जिले एक एग्रोक्लाईमेट जोन (Groclimate Zone) (कृषि जलवायु क्षेत्र) में आते हैं. इन जिलों में जो भी उत्पाद होगा उसकी खूबियां भी एक जैसी होंगी.
उल्लेखनीय है कि योगी सरकार ने जिन उत्पादों को जीआई पंजीकरण के आवेदन के लिए चुना है. उनमें गोरखपुर का पनियाला (Paniyala of Gorakhpur) भी है. कुछ खट्टा, कुछ मीठा और थोड़ा सा कसैले स्वाद वाले इस फल को देखते ही नाम के अनुरूप मुंह में पानी आ जाता है. काफी हद तक जामुनी रंग का यह फल जामुन से कुछ बड़ा और आकर में लगभग गोल होता है. यूपी स्टेट बायोडायवरसिटी बोर्ड (UP State Biodiversity Board) की ई पत्रिका के अनुसार मुकम्मल तौर पर यह ज्ञात नहीं कि यह कहां का पेड़ है पर बहुत संभावना है कि यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश का ही है. पनियाला के पेड़ 4-5 दशक पहले तक गोरखपुर में बहुतायत में मिलते थे, पर अब यह फल लगभग लुप्तप्राय हैं.
दुर्लभ चीजों में रुचि रखने वाले गोरखपुर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर आलोक गुप्ता (Senior Physician Dr. Alok Gupta) के मुताबिक पनियाला गोरखपुर का विशिष्ट फल है. शारदीय नवरात्र के दिनों में यह बाजार में आता है. सीधे खाएं तो इसका स्वाद मीठा एवं कसैला होता है. हथेली या उंगलियों के बीच धीरे धीरे घुलाने के बाद खाएं तो मीठा लगता है. 2011 में एक हुए शोध के अनुसार इसके पत्ते, छाल, जड़ों एवं फलों में एंटी बैक्टिरियल प्रापर्टी (anti bacterial property) होती है. पेट के कई रोगों में इनसे काफी लाभ होता है. स्थानीय स्तर पर पेट के कई रोगों, दांतों एवं मसूढ़ों में दर्द, इनसे खून आने, कफ, निमोनिया और खरास आदि में इसका प्रयोग खूब किया जाता है. फल लीवर के रोगों में भी उपयोगी हैं. फल को जैम, जेली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक रखा जा सकता है. इस पेड़ की लकड़ी जलावन और कृषि कार्यों के लिए उपयोगी है.
पनियाला परंपरागत खेती से अधिक लाभ देता है. कुछ साल पहले करमहिया गांव सभा के करमहा गांव (Karamha Village of Karamahiya Gaon Sabha) में पारस निषाद के घर यूपी स्टेट बायोडायवरसिटी बोर्ड (UP State Biodiversity Board) के आर दूबे गए थे. पारस के पास पनियाला के नौ पेड़ थे. अक्टूबर में आने वाले फल के दाम उस समय प्रति किग्रा 60-90 रुपये थे. प्रति पेड़ से उस समय उनको करीब 3300 रुपये आय होती थी. अब तो ये दाम दोगुने या इससे अधिक होंगे. लिहाजा आय भी इसी अनुरूप. खास बात यह है कि पेड़ों की ऊंचाई करीब नौ मीटर होती है. लिहाजा इसका देखभाल भी आसान होती है.
जीआई टैगिंग के लिए भी शीघ्र किए जाएंगे आवेदन : पनियाला के अलावा जीआई टैगिंग के आवेदन के लिए योगी सरकार ने जिन उत्पादों को चुना है. उनमें मलवां एवं मथुरा का पेड़ा, फतेहपुर सीकरी की नमक खटाई, आगरा का पेठा, इग्लास अलीगढ़ की चमचम मिठाई, कानपुर नगर का सत्तू और बुकनू,लाल ज्वार, प्रतापगढ़ी मुरब्बा, मैगलगंज का रसगुल्ला, संडीला के लड्डू, बलरामपुर के तिन्नी चावल, हाथरस का गुलाब और गुलाब के उत्पाद, बिठूर का जामुन, फर्रूखाबाद का हाथी सिंगार (सब्जी), चुनार का जीरा-32 चावल, बाराबंकी का यकूटी आम, अंबेडकरनगर की हरी मिर्च, गोंडा का मक्का, सोनभद्र का सॉवा कोदों, बुलंदशहर का कठिया गेहूं, देशी अरहर जौनपुरी मक्का, लखनऊ की रेवड़ी, सफेदा आम, सीतापुर की मूंगफली, बलिया का साथी चावल (बोरो लाल व बोरो काला), सहारनपुर का देशी तिल, जौनपुरी मूली और खुर्जा की खुरचन जैसे उत्पाद हैं.
जीआई टैग का लाभ : जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले कृषि उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है. जीआई टैग द्वारा कृषि उत्पादों के अनाधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है. यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों का महत्व बढ़ा देता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में जीआई टैग को एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है. इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है. साथ ही स्थानीय आमदनी भी बढ़ती है तथा विशिष्ट कृषि उत्पादों को पहचान कर उनका भारत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात और प्रचार प्रसार करने में आसानी होती है.