लखनऊ: ज्ञानी सुखदेव सिंह ने मंगलवार को बड़े घल्लूघारे (बड़े नरसंहार) में हुए शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित किए. इस मौके पर उन्होंने बताया कि बड़ा घल्लूघारे 9 फरवरी 1762 को कुपरहिरा से लगभग 12 किमी दूर मलेरकोटला पंजाब में अहमद शाह दुर्रानी को सूचना मिलने पर सिक्खों पर हमला करने के लिए आया. उस समय 40 हजार लोग समाज के थे. इसमें 10 हजार महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे. पुरुष अपनी महिलाओं को सुरक्षा के लिए बीकानेर ले जाना चाहते थे.
अहमदशाह था क्रूर आक्रमणकारी
अहमदशाह ने अगले दिन उन्हें पूरी तरह से मारने का इरादा कर लिया था. भीखन खान मालेरकोटला के जैन खान ने 9 फरवरी 1762 को 20 हजार लोगों और तोपों के साथ हमला किया. अब्दाली भी 30 हजार लोगों के साथ हमले में शामिल हुआ. सरदार जस्सा सिंह और चरत सिंह ने अपनी महिलाओं को घेरने का आदेश दिया और युद्ध की रणनीति के रूप में बरनाला की ओर आगे बढ़ते रहे. सिक्ख पुरुषों का एक मात्र उद्देश्य अपनी महिलाओं को किसी तरह से बचाना था और दुश्मन से लड़ना था, जिससे आक्रमणकारियों का अधिकतम नुकसान हो सके. इस प्रक्रिया में सिक्ख भारी पड़ गए थे.
25 हजार से 30 हजार लोग मारे गए थे
इस संहार में लगभग 25 हजार से 30 हजार लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. 19 लोगों के साथ सरदार छत्र सिंह को मार दिया गया था, लेकिन सिक्खों ने इस नरसंहार के बाद भी कभी मनोबल नहीं खोया. 1762 के दौरान एक बार फिर लाहौर को घेरने में सक्षम हो गए. दल के रक्षक सरदार जस्सा सिंह अहलूवालिया को कई मौकों पर शाह की टुकड़ियों ने घेरा और असहाय असंतुष्टों को मौत के घाट उतार दिया. सिखों के जीवन के नुकसान का अनुमान 20 हजार से 50 हजार तक हुआ. यह सिक्खों के लिए एक गंभीर झटका था, लेकिन उनका मनोबल फिर भी कम न हुआ.
शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित किए
दीवान की समाप्ति के उपरान्त लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष स. राजेन्द्र सिंह बग्गा ने घल्लूघारे में हुए शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित किए. कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया. उसके बाद श्रद्धालुओं में लंगर वितरित किया गया.