लखनऊ: कानपुर के बालिका गृह में 57 लड़कियों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद तमाम तरह के सवाल प्रशासन पर उठाए जा रहे हैं. इस मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्ताओं में काफी रोष व्याप्त है. उनका कहना है कि इस तरह की अव्यवस्था सरकार के संरक्षण में रह रहे बच्चों के साथ होना बेहद गैर जिम्मेदाराना है.
महिलाओं के हक के लिए लड़ रही लीगल एडवाइजर और अधिवक्ता रेणु मिश्रा कहती हैं कि कानपुर शहर के नारी निकेतन में 57 लड़कियां कोविड-19 से संक्रमित पाई गई हैं. इनमें से 7 लड़कियां गर्भवती हैं. यह बहुत बड़ी घटना है. खास करके ऐसे समय, जिसमें सरकार ने लॉकडाउन घोषित किया था. ताकि लोग सुरक्षित रह सकें और सोशल डिस्टेंसिंग समेत तमाम ऐसी चीजों का पालन किया जा सके. ऐसे में बालिका संरक्षण गृह में रह रही लड़कियों में कोरोना संक्रमण हो जाना सवाल खड़े करता है.
जिम्मेदार अधिकारियों पर दर्ज हो प्राथमिकी
रेणु मिश्रा कहती हैं कि इस मामले में त्वरित तौर पर प्राथमिकी दर्ज करवाई जानी चाहिए और इसके जिम्मेदार जो अधिकारी हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. साथ ही इसका इन्वेस्टिगेशन लंबा नहीं चलना चाहिए. इसकी कार्रवाई जल्द से जल्द पूरी की जानी चाहिए. इसके अलावा मैं याद दिलाना चाहूंगी कि कानपुर के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट कानूनी रूप से 18 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों के आधिकारिक गार्जियन होते हैं. ऐसे में उनकी जवाबदेही भी सुनिश्चित की जानी चाहिए.
संवासिनी गृहों में हैं अव्यवस्थाएं
बालिका गृहों और संवासिनी गृहों में लड़कियों के हित के लिए काम कर चुकी सामाजिक कार्यकर्ता शालिनी माथुर ने बताया कि संवासिनी गृहों की व्यवस्था आमतौर पर सभी जगह बहुत ही खराब है. मैंने स्वयं कई साल संवासिनी गृहों के लिए काम किया है. वहां जाकर हमने वहां लड़कियों की काउंसलिंग का काम किया था. तब हमने यह देखा कि उसमें से अधिकांश लड़कियां ऐसी थीं, जिन्होंने अपनी पसंद से विवाह किया था. उनके पिता की पुलिस से शिकायत के बाद लड़कियां भाग गई हैं, पर उन्हें रेस्क्यू कर वहां भर्ती करवा दिया गया था.
लड़के छूट जाते हैं बेल पर
शालिनी कहती हैं कि लड़के बेल पर छूट जाते हैं, लेकिन लड़कियां संवासिनी गृहों में ही रह जाती हैं. अपनी कॉउंसलिंग के दौरान हमने यह भी देखा था कि उनमें से कुछ लड़कियां ऐसी थी, जो गर्भवती भी थी. क्योंकि पहले से वह अपने पसंद के लड़कों के साथ रह रही थीं. माता-पिता की शिकायत करने पर उन्हें वहां पर रखा गया था.
लड़कियों को नहीं मुहैया होते वकील
शालिनी कहती हैं कि यह सारी चीजें और सारे अधिकार अदालत के विचाराधीन रहते हैं और इसकी तारीख लगातार बढ़ती रहती हैं. लड़कियों को कभी वकील मुहैया नहीं होता है, क्योंकि वह संवासिनी गृहों से न बाहर जा सकती हैं, न वकील अंदर आ सकते हैं. इनमें से कई लड़कियां तो ऐसी होती हैं, जो 15 साल की आयु में संवासिनी गृहों में आईं और वह 25 साल की हो गयीं, तब तक वहीं रह गईं. उनको कोई मदद नहीं मिली. ऐसे में इस तरह की बहुत सारी निर्णय लेने की क्षमता संवासिनी गृहों के अधिकारी को दी जानी चाहिए.
सावधानी बरतने की जरूरत
शालिनी कहती हैं कि इन बालिका गृहों में पहले कई ऐसी लड़कियां भी रहती थीं, जो मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होती थीं या फिर जो वेश्यावृत्ति से रेस्क्यू कर लाई जाती थीं. यह एक ऐसी स्थिति है, जिस पर पुनर्विचार करने की बेहद जरूरत है. अपनी काउंसलिंग के दौरान मैंने संवासिनी गृहों में यह तो देखा था कि गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन केला और अंडा दिया जाता था. लेडी डॉक्टर भी होती थीं, लेकिन कोरोना काल में और सावधानी बरतने की बात की जा रही है. ऐसे में संवासिनी गृहों में रहने वाली लड़कियों के लिए भी इन बातों का ध्यान रखना चाहिए.
संवासिनी गृहों में क्षमता से अधिक लड़कियां
संवासिनी गृहों में क्षमता से अधिक लड़कियां रहती हैं. ऐसे में वहां पर सैनिटाइजेशन समेत तमाम अन्य व्यवस्थाओं का होना बहुत मुश्किल है. उनके लिए क्वारंटाइन सेंटर और कुछ अन्य व्यवस्थाएं भी की जानी चाहिए. फिलहाल बालिका गृह में लड़कियों के कोरोना संक्रमण पाए जान के बाद इलाज के लिए प्रशासन तमाम तरह से कार्यरत है और एडवाइजरी जारी कर रहा है
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