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लखनऊ में राम भरोसे स्वास्थ्य विभाग, बगैर फायर एनओसी के चल रहे सैकड़ों अस्पताल - एनओसी के बिना चल रहे अस्पताल

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में करीब 900 ऐसे अस्पताल और क्लीनिक हैं, जिनके पास आग से बचने के इंतजाम ही नहीं हैं. नियमानुसार अस्पतालों के पास फायर एनओसी होना चाहिए, लेकिन जुगाड़ के जरिए बिना फायर एनओसी के ही अस्पतालों का संचालन किया जा रहा है.

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बिना एनओसी के हो रहा अस्पताल का संचालन.
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Published : Dec 9, 2019, 7:57 PM IST

लखनऊ: राजधानी में यूं तो करीब 900 निजी अस्पताल और क्लीनिक हैं, लेकिन इन अस्पतालों में आग से बचने के इंतजाम रामभरोसे ही हैं. तय गाइडलाइन के अनुसार इन अस्पतालों के पास फायर एनओसी होनी चाहिए, लेकिन स्वास्थ्य विभाग द्वारा इन अस्पतालों से हलफनामा लेकर हीलाहवाली की जा रही है.

बिना एनओसी के हो रहा अस्पताल का संचालन.

दरअसल स्वास्थ्य विभाग द्वारा निजी अस्पतालों और क्लीनिक से हलफनामा लिया गया है. हलफनामें में लिखा है "हम कसम खाते हैं अस्पताल में आग लगती है, तो हम खुद जिम्मेदार होंगे, इसके लिए कोई विभाग में से जिम्मेदार नहीं होगा". इस हलफनामे से समझा जा सकता है कि स्वास्थ्य विभाग में जुगाड़ किसी कदर हावी है. इन अस्पतालों में चंद फायर उपकरण टांग के अस्पतालों का पंजीकरण नवीकरण स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जा रहा है. इसी हलफनामे के सहारे राजधानी के अस्पताल, क्लीनिक और डायग्नोस्टिक सेंटर में अपना पंजीकरण करा रहे हैं. शहर में महज 50 अस्पताल ही ऐसे हैं, जो फायर के मानक पूरे कर रहे हैं. बाकी 915 अस्पताल इसी जुगाड़ पर राम भरोसे हैं.

निजी अस्पतालों फायर के मानकों को पूरा नहीं करते. निजी अस्पताल अपने यहां 2-3 सिलेंडर टांग कर उसकी रसीद संग शपथ पत्र देकर खुद ही अग्निकांड के लिए जिम्मेदार होने का दावा कर रहे हैं. स्वास्थ विभाग के अफसर द्वारा निजी अस्पतालों में सांठ-गांठ के चलते हर बार बिना फायर एनओसी के अस्पताल का नवीनीकरण भी हो रहा है.

शासन ने तय किए थे ये नियम
शासन द्वारा निजी अस्पतालों के लिए एक गाइडलाइन तैयार की गई थी, जिसमें फायर की एनओसी के लिए शासन ने सख्त निर्देश दिए थे. इन गाइडलाइंस में कहा गया था कि 10 मीटर की ऊंचाई वाले निजी अस्पतालों में फायर की गाड़ी अस्पतालों के चारों तरफ आसानी से घूमनी चाहिए. ऐसे में करीब 700 से अधिक निजी अस्पताल हैं, जिनकी बिल्डिंग के चारों तरफ फायर की गाड़ी तक नहीं घूम पाएगी. इसके बाद भी बिना फायर एनओसी के निजी अस्पतालों का संचालन हो रहा है. वहीं स्वास्थ्य विभाग के द्वारा जुगाड़ के सहारे अस्पतालों को शपथ पत्र देकर एनओसी की व्यवस्था की जा रही है.

अस्पतालों में रैंप तक नहीं
वहीं फायर विभाग के मुताबिक दो मंजिल वाले सभी निजी अस्पतालों में रैंप की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि आपात स्थिति में मरीजों को रैंप के जरिए बाहर निकाला जा सके. लेकिन अस्पतालों में रैंप तक की व्यवस्था नहीं है, जिसकी वजह से कभी भी किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए अस्पताल सक्षम नहीं है.

लखनऊ: राजधानी में यूं तो करीब 900 निजी अस्पताल और क्लीनिक हैं, लेकिन इन अस्पतालों में आग से बचने के इंतजाम रामभरोसे ही हैं. तय गाइडलाइन के अनुसार इन अस्पतालों के पास फायर एनओसी होनी चाहिए, लेकिन स्वास्थ्य विभाग द्वारा इन अस्पतालों से हलफनामा लेकर हीलाहवाली की जा रही है.

बिना एनओसी के हो रहा अस्पताल का संचालन.

दरअसल स्वास्थ्य विभाग द्वारा निजी अस्पतालों और क्लीनिक से हलफनामा लिया गया है. हलफनामें में लिखा है "हम कसम खाते हैं अस्पताल में आग लगती है, तो हम खुद जिम्मेदार होंगे, इसके लिए कोई विभाग में से जिम्मेदार नहीं होगा". इस हलफनामे से समझा जा सकता है कि स्वास्थ्य विभाग में जुगाड़ किसी कदर हावी है. इन अस्पतालों में चंद फायर उपकरण टांग के अस्पतालों का पंजीकरण नवीकरण स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जा रहा है. इसी हलफनामे के सहारे राजधानी के अस्पताल, क्लीनिक और डायग्नोस्टिक सेंटर में अपना पंजीकरण करा रहे हैं. शहर में महज 50 अस्पताल ही ऐसे हैं, जो फायर के मानक पूरे कर रहे हैं. बाकी 915 अस्पताल इसी जुगाड़ पर राम भरोसे हैं.

निजी अस्पतालों फायर के मानकों को पूरा नहीं करते. निजी अस्पताल अपने यहां 2-3 सिलेंडर टांग कर उसकी रसीद संग शपथ पत्र देकर खुद ही अग्निकांड के लिए जिम्मेदार होने का दावा कर रहे हैं. स्वास्थ विभाग के अफसर द्वारा निजी अस्पतालों में सांठ-गांठ के चलते हर बार बिना फायर एनओसी के अस्पताल का नवीनीकरण भी हो रहा है.

शासन ने तय किए थे ये नियम
शासन द्वारा निजी अस्पतालों के लिए एक गाइडलाइन तैयार की गई थी, जिसमें फायर की एनओसी के लिए शासन ने सख्त निर्देश दिए थे. इन गाइडलाइंस में कहा गया था कि 10 मीटर की ऊंचाई वाले निजी अस्पतालों में फायर की गाड़ी अस्पतालों के चारों तरफ आसानी से घूमनी चाहिए. ऐसे में करीब 700 से अधिक निजी अस्पताल हैं, जिनकी बिल्डिंग के चारों तरफ फायर की गाड़ी तक नहीं घूम पाएगी. इसके बाद भी बिना फायर एनओसी के निजी अस्पतालों का संचालन हो रहा है. वहीं स्वास्थ्य विभाग के द्वारा जुगाड़ के सहारे अस्पतालों को शपथ पत्र देकर एनओसी की व्यवस्था की जा रही है.

अस्पतालों में रैंप तक नहीं
वहीं फायर विभाग के मुताबिक दो मंजिल वाले सभी निजी अस्पतालों में रैंप की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि आपात स्थिति में मरीजों को रैंप के जरिए बाहर निकाला जा सके. लेकिन अस्पतालों में रैंप तक की व्यवस्था नहीं है, जिसकी वजह से कभी भी किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए अस्पताल सक्षम नहीं है.

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राजधानी लखनऊ में यूं तो 900 के आसपास निजी अस्पताल व क्लीनिक है। लेकिन इन अस्पतालों में आग से बचने के इंतजाम राम भरोसे है। गाइडलाइन के अनुसार इन अस्पतालों के पास फायर एनओसी होना चाहिए लेकिन स्वास्थ्य विभाग द्वारा इन अस्पतालों से हलफनामा लेकर हिला हवाली चल रही है।



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दरअसल स्वास्थ्य विभाग द्वारा निजी अस्पतालों व क्लीनिक से हलफनामा लिया गया है। जिसमें लिखा है " हम कसम खाते हैं अस्पताल में आग लगती है,तो हम खुद जिम्मेदार होंगे इसके लिए कोई विभाग से में जिम्मेदार नहीं होगा" इस हलफनामे से समझा जा सकता है कि स्वास्थ्य विभाग में जुगाड़ किसी कदर हावी है। तो वही यह जुगाड़ भी मरीजों के लिए कभी भी जानलेवा बन सकता है। इन अस्पतालों में चंद फायर उपकरण टांग के अस्पतालों का पंजीकरण नवीकरण स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जा रहा है। इसी हलफनामे के सहारे राजधानी के अस्पताल क्लीनिक व डायग्नोस्टिक सेंटर में अपना पंजीकरण करा रहे हैं।शहर में महज 50 अस्पताल ही ऐसे हैं।जो फायर के मानक पूरे कर रहे हैं। बाकी बचे 915 अस्पताल इसी जुगाड़ पर राम भरोसे हैं। निजी अस्पतालों में फायर के मानको को पूरा नहीं करते तो वही अस्पताल में अपने यहां 2-3 सिलेंडर टांग कर उसकी रसीद संग शपथ पत्र देकर खुद ही अग्निकांड के लिए जिम्मेदार होने का दावा कर रहे हैं। स्वास्थ विभाग के अफसर निजी अस्पतालों में सांठगांठ के चलते हर बार बिना फायर एनओसी के अस्पताल का नवीनीकरण भी हो रहा है।स्वास्थ्य विभाग फायर विभाग के अफसर आंखें मूंदे बैठे हुए हैं।

शासन ने तय किए थे यह नियम

शासन द्वारा निजी अस्पतालों के लिए एक गाइडलाइंस तैयार की गई थी।जिसमें फायर की एनओसी के लिए शासन ने सख्त निर्देश दिए थे।इन गाइडलाइंस में कहा था कि 10 मीटर की ऊंचाई वाले निजी अस्पतालों में फायर की गाड़ी अस्पतालों के चारों तरफ आसानी से घूमना चाहिए। ऐसे में करीब 700 से अधिक निजी अस्पताल है।जिनकी बिल्डिंग के चारों तरफ फायर की गाड़ी तक नहीं घूम पाएगी इसके बाद भी बिना फायर एनओसी के यह निजी अस्पतालों का संचालन हो रहा है। तो वहीं उसके बाद स्वास्थ्य विभाग के द्वारा मिलीभगत जुगाड़ के सहारे अस्पतालों को शपथ पत्र देकर एनओसी की व्यवस्था भी की जा रही है।

किराए पर अस्पताल तो वही अस्पतालों में रैंप तक नहीं

राजधानी में चल रहा है छोटे मझोले निजी अस्पतालों की बिल्डिंग में सब किराए पर तो यहां की स्वास्थ्य सेवाएं तो निजी अस्पतालों द्वारा दी जा रही है। यह भी एक किराए के मूल्य पर ही चल रही है। यहां आने वाले स्टाफ भी परमानेंट नहीं होते इनको भी ठेके की व्यवस्था पर रखा जा रहा है। यानी कोइ अनहोनी होती है तो स्टाफ अस्पताल संचालक मालिक सब एक चुटकियों में फरार हो जाएंगे और स्वास्थ्य विभाग हाथ मलता रह जाएगा।हालांकि संचालक के बताए पते का सत्यापन भी स्वास्थ्य विभाग नहीं करा रहा है।इसकी वजह से अस्पताल संचालकों को बचाने में स्वास्थ्य विभाग अहम भूमिका निभा रहा है।तो वहीं फायर विभाग के मुताबिक दो मंजिल वाले सभी निजी अस्पतालों में रहने की व्यवस्था होनी चाहिए।ताकि आपात स्थिति में मरीजों को रैंप के जरिए बाहर निकाला जा सके। लेकिन अस्पतालों में रैंप तक की व्यवस्था नहीं है। जिसकी वजह से कभी भी किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए अस्पताल सक्षम नहीं है।

बाइट- विजय कुमार सिंह, मुख्य अग्निशमन अधिकारी, लखनऊ

बाइट- डॉ- नरेंद्र अग्रवाल, सीएमओ, लखनऊ




Conclusion:एन्ड पीटीसी
शुभम पाण्डेय
7054605976
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