लखनऊ : प्रदेश भर के जिला अस्पतालों में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र स्थापित किए गए हैं, ताकि मरीजों को सस्ती दरों पर दवाएं उपलब्ध हो सकें. इसके बावजूद सस्ती दवाएं मुहैया कराने के लिए खुले जन औषधि केंद्र दवाओं के मामले में कंगाल हैं. प्रदेश के अधिकतर जिलों के सरकारी अस्पतालों में स्थापित जन औषधि केंद्रों पर 60 से 70 फीसदी तक दवाएं नदारद हैं. दवाएं न होने के कारण कई केंद्र बंद हो चुके हैं तो कई बंदी की कगार पर हैं. हालांकि अधिकारी दवाओं की किल्लत को स्वीकार नहीं कर रहे हैं.
दवाओं की उपलब्धता के मामले में न सिर्फ लखनऊ बल्कि प्रदेश के अन्य जिलों का भी बुरा हाल है. यही कारण है कि दूरदराज से मरीज लखनऊ में इलाज के लिए पहुंचते है. कई जिलों में दवाएं उपलब्ध नहीं हैं. इस वजह से लोग लखनऊ पहुंच रहे हैं, लेकिन उन्हें यहां पर भी दवाएं नहीं मिल पा रही हैं. सबसे खराब हालात मुरादाबाद, कानपुर, बदायूं, मेरठ और पूर्वांचल मंडल के हैं. जिला अस्पताल परिसर में स्थित जन औधषि केंद्र में ही करीब 60 से 70 प्रतिशत दवाएं उपलब्ध नहीं है. संचालक खुद स्वीकार कर रहे है कि अगले तीन-चार दिनों में शेष दवाएं खत्म होने पर केंद्र बंद करना पड़ सकता है. प्रयागराज में भी डॉक्टरों द्वारा लिखी गई दवाओं में करीब 70 प्रतिशत दवाएं केंद्रों पर उपलब्ध नहीं है. खांसी, सूजन, दर्द तक की सामान्य दवाओं का भी अभाव है. मेरठ में भी सरकारी अस्पतालों के जन औषधि केंद्रों पर पिछले छह महीने से एंटीबायोटिक, एंटी एलर्जी समेत 40 से ज्यादा दवाओं की आपूर्ति बाधित है. बिजनौर में भी दवाओं की कमी है.
हजरतगंज से डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल में इलाज कराने के लिए पहुंचे शनिवार को मरीजों ने बताया कि दवाएं बहुत महंगी होती है. बहुत सी दवाएं अस्पताल में उपलब्ध नहीं होती है तो काउंटर से कहा जाता है कि जन औषधि केंद्र में जाकर खरीद लें, लेकिन यहां पर भी दवाएं नहीं मिल पाती हैं. कुछ दवाएं मिलती हैं, लेकिन जो भी महंगी दवाएं हैं, वह यहां पर भी नहीं मिलती है. इस कारण निजी पैथोलॉजी की तरफ रुख करना पड़ता है और बाजार में दवाओं की कीमत काफी महंगी होती है.
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