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मैनपुरी उपचुनाव में बसपा व कांग्रेस उम्मीदवार नहीं, किसकी राह होगी आसान

मैनपुरी संसदीय सीट के उपचुनाव (Mainpuri parliamentary seat by election) में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नहीं हैं, ऐसे में इन दलों से जुड़े वोट बैंक जिस प्रत्याशी को मिलेंगे, उसकी सियासी राह आसान हो जाएगी. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बसपा और कांग्रेस उम्मीदवारों के ना होने से क्षेत्र की जनता का वोट सिर्फ सपा और भाजपा उम्मीदवार को ही जाएगा.

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Published : Nov 21, 2022, 3:40 PM IST

लखनऊ : मैनपुरी संसदीय सीट के उपचुनाव (Mainpuri parliamentary seat by election) में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नहीं हैं, ऐसे में इन दलों से जुड़े वोट बैंक जिस प्रत्याशी को मिलेंगे, उसकी सियासी राह आसान हो जाएगी. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बसपा और कांग्रेस उम्मीदवारों के ना होने से क्षेत्र की जनता का वोट सिर्फ सपा और भाजपा उम्मीदवार को ही जाएगा. पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी पर यह आरोप लगे थे कि उसने अपने वोट बैंक को भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में ट्रांसफर करा दिया, जिससे प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने में बड़ी मदद मिली.


दरअसल, मैनपुरी में सबसे ज्यादा यादव वोट बैंक है जो करीब साढ़े चार लाख है, इसके बाद शाक्य मतदाताओं की संख्या यहां दूसरे नंबर पर है. इनकी संख्या करीब सवा दो लाख है. यादव और शाक्य वोटर्स के बाद मैनपुरी में तीसरे नंबर पर ब्राह्मण वोटर्स हैं. ब्राह्मण वोटर्स की संख्या करीब 1 लाख है, इसके अलावा दलित वोटर्स की संख्या सवा लाख है. इसी तरह लोधी वोटर्स की संख्या एक लाख के आसपास है. इन सबके बाद मैनपुरी सीट पर मुस्लिम वोटर्स का नंबर आता है. यहां मुस्लिम वोटर्स की संख्या करीब 80 हजार है, यादव और मुस्लिम वोट बैंक पर मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी का एकाधिकार माना जाता है. बसपा और कांग्रेस की तरफ से प्रत्याशी न होने का फायदा भाजपा को मिल सकता है. बसपा के दलित समाज के वोट में जितना अधिक भाजपा सेंधमारी करेगी और बसपा का वोट बैंक जितना भाजपा के पक्ष में ट्रांसफर होगा उससे फायद भाजपा को ही होगा.

जानकारी देते राजनीतिक विश्लेषक राजबहादुर सिंह


समाजवादी पार्टी के लिए मुस्लिम और यादव वोट हमेशा से अहम माना जाता रहा है. इस पर मुलायम सिंह यादव के समय से ही सपा का राज है, लेकिन पाल, कठेरिया और कश्यप वोट भी लाखों में हैं. जिन पर बहुजन समाज पार्टी का एकाधिकार भी माना जाता है. चुनावी लड़ाई में तो इसका फायदा स्वाभाविक रूप से भाजपा को मिलता हुआ नजर आता है. भाजपा की अगर बात करें तो उनके लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय और लोधी वोट बैंक आरक्षित माना जाता है. ऐसे में भाजपा को जीत के लिए बची हुई अन्य जातियों का वोट हासिल करना होगा, जिससे उसकी जीत हो सके.


मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में बसपा ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है. जाटव वोट हमेशा से ही बसपा का कोर वोट बैंक माना जाता रहा है. लोकसभा मैनपुरी क्षेत्र में सवा लाख से अधिक जाटव समाज के वोट हैं. ऐसे में ये वोट बैंक निर्णायक सिद्ध हो सकता है. खास बात यह है कि यह वोट बैंक जिस दल की तरफ जाएगा उसकी जीत लगभग सुनिश्चित हो जाएगी. देखना दिलचस्प होगा कि सपा और भाजपा इस वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए कोई कोरकसर नहीं छोड़ रहे हैं. खास बात यह है कि 2019 में मुलायम सिंह यादव की करीब 94 हजार वोटों से जीत हुई थी, यह तब हुआ था जब बसपा से गठबंधन था. इस बार गठबंधन नहीं है और बसपा का उम्मीदवार भी नहीं है. ऐसे में बसपा का वोट बैंक किधर जाएगा यह महत्वपूर्ण है.


राजनीतिक विश्लेषक राजबहादुर सिंह कहते हैं कि दो प्रमुख दल चुनाव लड़ रहे हैं समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी. दोनों कोशिश करेंगे कि बहुजन समाज पार्टी से जुड़ा वोट बैंक है, उसे अपने पक्ष में ला सकें. मुख्य बात यह है कि इधर जो ट्रेंड है कि जहां भी बसपा कैंडिडेट नहीं होता है वहां भाजपा उस वोट को अपनी तरफ खींचने में तुलनात्मक रूप से ज्यादा कामयाब होती रही है, यह देखने में आ रहा है. इस लिहाज से बीजेपी इस बार पूरी ताकत मैनपुरी में लगा रही है कि उपचुनाव में सपा का जो गढ़ है उसे अपनी ओर खींच लें.



मैनपुरी में जातीय समीकरण
- यादव- 4.40 लाख
- शाक्य- 2.25 लाख
- क्षत्रिय- 02 लाख
- जाटव- 1.25 लाख
- लोधी- 1.20 लाख
- ब्राह्मण- 01 लाख
- मुसलमान- 80 हजार
- कठेरिया- 70 हजार
- पाल - 70 हजार
- कश्यप- 70 हजार
- दिवाकर धोबी- 50 हजार

यह भी पढ़ें : भाजपा के नवनिर्वाचित विधायक को विधानसभा अध्यक्ष ने दिलाई शपथ

लखनऊ : मैनपुरी संसदीय सीट के उपचुनाव (Mainpuri parliamentary seat by election) में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नहीं हैं, ऐसे में इन दलों से जुड़े वोट बैंक जिस प्रत्याशी को मिलेंगे, उसकी सियासी राह आसान हो जाएगी. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बसपा और कांग्रेस उम्मीदवारों के ना होने से क्षेत्र की जनता का वोट सिर्फ सपा और भाजपा उम्मीदवार को ही जाएगा. पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी पर यह आरोप लगे थे कि उसने अपने वोट बैंक को भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में ट्रांसफर करा दिया, जिससे प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने में बड़ी मदद मिली.


दरअसल, मैनपुरी में सबसे ज्यादा यादव वोट बैंक है जो करीब साढ़े चार लाख है, इसके बाद शाक्य मतदाताओं की संख्या यहां दूसरे नंबर पर है. इनकी संख्या करीब सवा दो लाख है. यादव और शाक्य वोटर्स के बाद मैनपुरी में तीसरे नंबर पर ब्राह्मण वोटर्स हैं. ब्राह्मण वोटर्स की संख्या करीब 1 लाख है, इसके अलावा दलित वोटर्स की संख्या सवा लाख है. इसी तरह लोधी वोटर्स की संख्या एक लाख के आसपास है. इन सबके बाद मैनपुरी सीट पर मुस्लिम वोटर्स का नंबर आता है. यहां मुस्लिम वोटर्स की संख्या करीब 80 हजार है, यादव और मुस्लिम वोट बैंक पर मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी का एकाधिकार माना जाता है. बसपा और कांग्रेस की तरफ से प्रत्याशी न होने का फायदा भाजपा को मिल सकता है. बसपा के दलित समाज के वोट में जितना अधिक भाजपा सेंधमारी करेगी और बसपा का वोट बैंक जितना भाजपा के पक्ष में ट्रांसफर होगा उससे फायद भाजपा को ही होगा.

जानकारी देते राजनीतिक विश्लेषक राजबहादुर सिंह


समाजवादी पार्टी के लिए मुस्लिम और यादव वोट हमेशा से अहम माना जाता रहा है. इस पर मुलायम सिंह यादव के समय से ही सपा का राज है, लेकिन पाल, कठेरिया और कश्यप वोट भी लाखों में हैं. जिन पर बहुजन समाज पार्टी का एकाधिकार भी माना जाता है. चुनावी लड़ाई में तो इसका फायदा स्वाभाविक रूप से भाजपा को मिलता हुआ नजर आता है. भाजपा की अगर बात करें तो उनके लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय और लोधी वोट बैंक आरक्षित माना जाता है. ऐसे में भाजपा को जीत के लिए बची हुई अन्य जातियों का वोट हासिल करना होगा, जिससे उसकी जीत हो सके.


मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में बसपा ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है. जाटव वोट हमेशा से ही बसपा का कोर वोट बैंक माना जाता रहा है. लोकसभा मैनपुरी क्षेत्र में सवा लाख से अधिक जाटव समाज के वोट हैं. ऐसे में ये वोट बैंक निर्णायक सिद्ध हो सकता है. खास बात यह है कि यह वोट बैंक जिस दल की तरफ जाएगा उसकी जीत लगभग सुनिश्चित हो जाएगी. देखना दिलचस्प होगा कि सपा और भाजपा इस वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए कोई कोरकसर नहीं छोड़ रहे हैं. खास बात यह है कि 2019 में मुलायम सिंह यादव की करीब 94 हजार वोटों से जीत हुई थी, यह तब हुआ था जब बसपा से गठबंधन था. इस बार गठबंधन नहीं है और बसपा का उम्मीदवार भी नहीं है. ऐसे में बसपा का वोट बैंक किधर जाएगा यह महत्वपूर्ण है.


राजनीतिक विश्लेषक राजबहादुर सिंह कहते हैं कि दो प्रमुख दल चुनाव लड़ रहे हैं समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी. दोनों कोशिश करेंगे कि बहुजन समाज पार्टी से जुड़ा वोट बैंक है, उसे अपने पक्ष में ला सकें. मुख्य बात यह है कि इधर जो ट्रेंड है कि जहां भी बसपा कैंडिडेट नहीं होता है वहां भाजपा उस वोट को अपनी तरफ खींचने में तुलनात्मक रूप से ज्यादा कामयाब होती रही है, यह देखने में आ रहा है. इस लिहाज से बीजेपी इस बार पूरी ताकत मैनपुरी में लगा रही है कि उपचुनाव में सपा का जो गढ़ है उसे अपनी ओर खींच लें.



मैनपुरी में जातीय समीकरण
- यादव- 4.40 लाख
- शाक्य- 2.25 लाख
- क्षत्रिय- 02 लाख
- जाटव- 1.25 लाख
- लोधी- 1.20 लाख
- ब्राह्मण- 01 लाख
- मुसलमान- 80 हजार
- कठेरिया- 70 हजार
- पाल - 70 हजार
- कश्यप- 70 हजार
- दिवाकर धोबी- 50 हजार

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